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कविता 001

हूँ आप सुन रहे हैं को काॅल किताब का नाम है भक्ति भारत के शान है मेरे भारत की पहचान है जैसे लिखा है हरीशचंद्र और मैं हूँ आरजे अर्जुनदेव ऍम सुने जो मनचाहे कवित अरे हाँ रिहा सादा ही रहोगे खुशहाल के साथ गुरु चरणों में सादा ही लगा के रखो ध्यान कहाँ से आए हो कहाँ पर जाना है इसकी तुम कर लो पहचान के सब गुरु वचनों पर चल कर देखो तुम मिलेगा वो तुमको करता जन्म मरण से अगर तुम्हें बचना है तो कहो गुरु नाम का आधार मिला जो मानुष तन करले सही में भजन ऐसा अवसर मिले न बारंबार के सच को मान लो तो हूँ खुद को पहचान लो तुम लोग अपनी बुरी आदत को सुधार के योग जुगत सीख लोग सब संगत का छूकर लोग कहता हरीश कविता का विचार कहता हरीश कविता का विचार है हूँ

कविता 002

हूँ कभी तो कोई जाने का गुरु जानी यह घटको अकथ कहानी मानेंद्र की पहुंच नहीं जहाँ साखी सबका नवाणी कहन सुनन से जो है न्यायालय कोई कोई बिजली जानी सिंगला से पिंगला को मिला वे सुखमनी सूरत सामान्य कुंडली ने शक्ति जब वही जागे सुधबुध सब ही है रानी कुमार की छोड सुमति को धारे बोले अमृत वाणी काम क्रोध मद, लोभ को त्यागी लोग मोह नहीं आनी समदर्शी बन जज मेरे डोले रागद्वेष मिसरानी हरीश कभी कहीं जांच पुकारी फिर हो आवन जानी कोई जाने का गुरु जानी ये घटको अकथ कहानी

कविता 003

हूँ कभी तीन मेरे सतगुरु के दरबार में सत्य लगाया जाता है जन्म मरण का दुख है भारी उस को मिटा या जाता है जो लोगों के दाग लगे जो उसको छोडा या जाता है । मेरे सद्गुरु के दरबार में सत्य लगाया जाता है सब अवगुण को दूर है करते सब गुण सिखाया जाता है जिनको शंका है आकर देखले हर दुविधा मिटा या जाता है मेरे सद्गुरु के दरबार में सत्य लगाया जाता है । विषय आ सकती से दूर है करते आनंद दिलाया चाहता है साढे कबीर गोपाल दया से हरीश कभी उतर जाता है । मेरे सब गुरु के दरबार में सत्य लगाया जाता है ।

कविता 004

पवित्र था सुन ना ज्यादा इंसान क्यों करता है घुमा मानुष तन अनमोल मिला है मातृ में ना इंसान सुन ऍम बडे बडे आए गुमानी जगह में चलाना कोई का घुमा संघीय साथ ही कुटुंब कबीला तेरे संग न कोई जान सुन नादा इंसान क्यों करता है कुमार अब भी समय चेंज लेते आ रहे नहीं तो होगी बडी बहन कोटि जन्मों से भटकता आया लिया ना गुरु से ज्ञान सुनने ऍम क्यों करता है गुमान लेते चौकसी फिर भ्रम आवे जो छोडा ना अभिमान जिसका या का गर्व है तो उसको खाक बने हैं संस्थान उडकर पंद्रह से आवे तब कहाँ जावे अभिमान सुन नादा इंसान क्यों करता है घुमा जो चाहो यही भाव से डर ना तो गुरु भक्ति लो था हरीश कभी मैं साठ कहता साहेब गोपाल धर्मा सुन नादा इंसान क्यों करता है कुमार

कविता 005

हूँ और कभी पाउँगा । हाँ मेरे मन साहेब का नाम तो बदले मेरे मन धीरा ऐसा मानुष तन मिला क्यों खोजते इसे थोडी बदले आया कहाँ से जाना कहा है इसकी तो पहचान कर ले मेरे मन साहेब का नाम तो पहले मेरे मन बाल आपन सब खेल गवाया आई जवानी मत जाने दे साहेब से मिलने की यही घर ही है । इस अवसर को मत जाने दे मेरे मन साहेब का नाम तो फॅमिली मेरे मन ।

कविता 006

कवित अब तुम बन काहे को होवे उदास गगन मंडल बीस भैया प्रकार अब क्या जाऊँ तीरथ मूरत में अरिजीत मिल गए विजय के बस हरीदर्शन से पाप मिटे सब मिट गए जन्म मरण दुखता अब मान का ही को होवे उदास धल्ली भई गुरु गोपाल जी से मिल गए नहीं तो जगत में फिरते उदास तो वो जो लोगों से थी खुद से दूरी गुरु दया से हुए खुद के पास अब मान काहे को होवे उदास जब से साहेब ने सत्य लगाया कट गए कर्म धमकी फाॅर्स हरीश कभी गुरु नाम न छोटे छोड फैला झूठे जगत कि आज अब मान हो गया था

कविता 007

கவித்து ஸ்ழ் எழிஅ ஸ்ழ்ச் ஸ்ழ்ச் பேச்செல்லாம் கொடுத்தீயா ஜுஸ் ஒவ்கெய் ஸம் டெல்ஹிஇல் ப்லெய்டெய்க்கு ஸ்ழ் மோசே நாதா தோடு த்தியா ஆயா ஹரி பஜன் கர்ணனுக்கோ ஒவ்கெய் வா தாக்கிய தாத்தா தோடு தியா ழிபெழ் ஸ்ழ்ச் எல்லாம் க்யு கொடுத்தீயா மாயாவதி ஃபுல் கயா ஹெய் அன்ட் லவ் வித்யா தாரமே தூண் ரேகா சந்தோஷ் சேன் ஆத்தா தோடு தியா ப்ழிபெழ் ஆழ் ஸச் செல்லம்னா கொடுத்தீயா ஹ பழ்ஸ்ட் தூக்கி டு ஜான் சன் க்ழெக்ட் ஹரி ஜான் பச் அன்ட் க்யு சூடு தியா ஹரீஷ் கவி கு மத்தி சங்கு சூடு க்கே சத்து குரு சே நாத் தா ஜூலியா இதே பெயரே ஸ்ழ்ச் ஸ்பிச் எல்லாம் வைக்கும் சூடு தீயா

कविता 008

ऍम चल रह संभाल लेन जाये नहीं रे चल रह संभल जाए नहीं रे झुक कर के चलना नहीं आवे चलता है सीना ताने सत्य कहें तो पालने रोड थे झूठ को ही सच मान नहीं चल रहा है संभाल अॅधेरे फॅसे सफल जाने दे न गुरुभक्ति न साधु की सेवा भूत प्रेत को मानने आया था खरीद भजन करने को माया देख भुलाने ऍम नहीं रहे चल रहा है संभल जाए नहीं रहेगी राग द्वेष एड शिया कारण चौरासी हर्ट बिका नहीं छोड कुसंग सत्संग कर होगी तेरी नहीं ठिकाने ऍम संभल जाए नहीं रही ऍम संभाल हम जाने दे चोरी हिंसा नशा सब त्यागो छोडो झूठे बाहर नहीं विश्व अमृत एक मिला है भेज दी कोई तो जाने चल रह संभल जाए नहीं रे चल रह संभल जाए नहीं थे अबकी मारना फिर नहीं मारना छोटे जंग के फसा नहीं हरीश कवि सद्गुरु की दया से का मददगार मिट जाता नहीं ऍम संभाल अनजाने रे ऍम अल ऍम नहीं नहीं

कविता 009

okay కవిత్వం no మనతో బట్టకు, బట్టకు, దుఃఖ papaya తోనే హీరా జనం గ వాయ జోగి, జోగి సేతు బతక తాయా చేయిస్తున్న తుక్కు, ఆయా మాయా కాయ ధన దౌలత్ అభిమానం సత్ ఆయ మనతో బట్టకు, బట్టకు, దుఃఖ రూపాయ కామ క్రోధ కృష్ణ కి car అని చౌ రాసి యోని భూమయ్య మాత పితా. సూరత్ బంధువు తృతీయ పోయి అంత కాము నహీ యా యా మన్నుతో, బట్టకు, బట్టకు, దుఃఖ, రూపాయ రాగ్, ద్వేషం, ఈర్ష్య, మే భూముల ఆత్మ ముఖ్య నిన్న papaya చూడు కుమతి సత్త సంఘం యొక్క భర్త భవసాగరం అత్త రాయ మనతో బట్టకు, బట్టకు, దుఃఖ రూపాయ హరీష్ కవి సూరత్ సే శబ్దం లే జన్మ మరణ కు మిఠాయ్ ఆ ache గురువుకి భక్తి వినా పోయినా భగవత రూపాయ మనతో, బట్టకు, బట్టకు, దుఃఖ రూపాయ

कविता 010

ఓం క విత్ ద స్ చలో సాక్షీ సత్సంగ్ చూడవ కు సంగ రి మ అంక భయము బహదూర్ food జాబే మాయ కురంగ రే చలు సాక్షీ సత్సంగ్ చూడు పుస అంగ రే జగన్ జగన్ కే నిత్య నయా హే భక్తి ఇక రంగ రే చలో సఖి సత్సంగ్ చూడు సంగ రే కాం రోజుకి అగ్ని జలేజ జోక్ జల్ జల్ది మడత పతంగ్ సరే చలో సాక్షీ సత్సంగ్ చూడు సంగ రే, లోభ మోహ కే ధర్మ హతః నిత్య హి జా గేహే తృష్ణ తరంగ రే చలో సాక్షీ సత సంఘ చూడు గుస అంగ రే రాగ ద్వేష షేర్ షా త్యాగ సే నిత్య హీ జాగే నై నై ఉమ ముగ్గురే చలో సఖి సత్సంగ్ మూడు కు సంగ రి సుఖము శాంతి ఒక బహుళ పావే భ్రమే చౌ రాసి న హో వే ఉద్ధరణ రే చలో సాక్షీ సత్సంగ్ చూడు కు సంగ రే జోనర్ నా రీచ్ సాహు భవసాగరం ధరణ జాయిగా హు సద్గురు ఒక శరణ రే చలో సఖి ఈ సత్సంగ్ చూడవు. సంగ రే పరీక్ష కవి గోపాల్ దయా సే మిటు జాబే బావ గవర్నర్ రే చలో సాక్షి. సత్యసంధత చూడు కు సంగ రి హ్మ్

कविता 011

हूँ कवित ग्यारह चलो मोरी सखिया अमरपुर देश देते जहाँ पे रहते हैं ऍम ले देखते हैं जहाँ के गए कवनो दुख नहीं व्यापते संयम संघ से जिसपे सौ वो हमेश रही चलो मोरी सक्रिया अमर पूरे देश सात सौ नदियाँ कुमार भगाओ धूमती साउथ दुनिया के चले नहीं एक रे चलो मोरी सखियाँ अमर पूर्व देश दें पांच पच्चीस के जहाँ झगडा नही तीन गुना धम्मा न विष्णु महेश अरे चलो मोरी सखिया अमरपुर देश दें काम क्रोध के अपनी बुझाओ सत्र संघ गंगा है बहती हमे रे चलो मोरी सखिया अमर पूर्व देश रहे विवेक विचार के फूल खेल अलवा शील संतोष के सुगंध हमें शहरे चलो मोदी सखिया अमर पूर्व देश काल जंजाल निकट नहीं आवे मोहमाया के नही परवेश रे चलो मोर्य सक्रिया अमर पूर्व देश थे मान के इंडिया जो दूर तुम चाहो तो ज्ञान के ज्योति ले करो परिवेश दे चलो मोदी सखिया अमर पूर्व देश दी हरीश कभी चला आशा जग छोड के सद्गुरु नाम में हो के लवलेश रे चलो मोरी सखिया अमर पूरे देश

कविता 012

ఓం okay కవిత్వ ప్రజలే సత్తు గురు నాము భవసాగరం ఇద్దర్ జాయిగా యవ సర్ జోబీలు గయా తో పేరే తిరుపతి స్థాయిగా సేవా అక్కర్లే సంతోష్ ఒక భాగం తేరా బన్ జాయిగా ప్రజలే సద్గురు నామ్ భవసాగరం ధర జాయిగా కామ క్రోధ తృష్ణ కి కారణం అభిరుచులు రాసి జాయిగా నెత్తురు సత్సంగ్ కర్బూజా కి బ్రహ్మ తేరా మిటు జాయిగా ప్రజలే సత గురు నా భవసాగరం ధర జాయిగా గురువు వినా జబ్బు తప్పు తేరా సభ హీ నిష్ఫలం జాయిగా గురువు వినా నాన్న ముక్తి హే వేద పురాణ మీ పైగా ప్రజలే సద్గురు నా భవసాగరం ధర జాయిగా గురుభక్తి మై సభ హి పూజ సాహెబ్ ఒక్క వీరు గాయనిగా పరీక్ష కవి గురు మిల పూర జన్మ మరణ మిటు జాయిగా భజనే సద్గురు నాము భవసాగరం ఆర్థర్ జాయిగా

कविता 013

हूँ और कवित तेरह बेजान मूर्तियों में कुछ भी नहीं है । मिलता ढूंढे जिसे तो बंदे को तेरे ही दिल में रहता हूँ मैं ही नहीं हूँ कहता सम सकीर कहते ढूंढ ले अपने दिल में दिल में ही सबको मिलता बेजान मूर्तियों में कुछ भी नहीं है मिलता मंदिर और मस्जिदों में जाकर के हमने देखा जो भेड चाहिए था उनसे नहीं है मिलता बेजान मूर्तियों में कुछ भी नहीं है मिलता पत्थर की मूर्ति पूजे जिसमें नजीव रहता मूर्ति जो जीती जागती उसको न पूजे कोई बेजान मूर्तियों में कुछ भी नहीं मिलता रहम दया है कहते रहम दया न दिल में सर काटकर गिराव में कैसा दया क्या है बेजान मूर्तियों में कुछ भी नहीं मिलता मुर्दे को जाके पूछे जीवित को है सताते बे धर्मियों ने ऐसा धंधा बना लिया है बेजान मूर्तियों में कुछ भी नहीं मिलता नफरत की आंधियों में ये सारा जग घिरा है रे मोर भाव दिल नहीं न किसी के दिखता बेजान मूर्तियों में कुछ भी नहीं मिलता सद्गुरु कबीर ने कहा वह बात सब सही है कुकर्मियों ने जंग को गन्दा बनाओ के रखता है बेजान मूर्तियों में कुछ भी नहीं मिलता हरीश कभी है कहता सुन लो तुम मेरे बंधु गुरु ज्ञान वो पारस है पारस बना के रहता बेजान मूर्तियों में कुछ भी नहीं मिलता हाँ,

कविता 014

கவித்து சவிதா யாரு பஜ்ஜி லேசா ஹி இஜ் னொழ்மல் ஸ்ழ் கிட்டே பன்னி இங்கே தெரு. காமராஜ் சூடு ராகு தேஷ் கே. கிருஷ்ணா, கரூர். பத்தி நிஷ்காம ஒரே யாரு? பதிலே சஹேரி கண்ணா மாதிரி! சரி விஜய் சக ஜிம்மி இலக்கே சமாதி மேலே பூரா ஆத்ம தியானம். ஒரே யாரே பதிலே சாஹிப் காணாமலே சந்தத்தை. ஆ. சபை கி. பி. கருத்தை திருத்தி சதா நெருப்பாக நிறைய யாரே பதிலே சஹேரி! காணாமலே ஹரிஷ் கவி சகஜ ஜுஸ் வாரத்துக்கா பூ! ச்சே! என்னையே திமுகா முறை யாரே. பதிலே சகி கானா முதல்

कविता 015

कवित हूँ भजन करो पल पर स्वास्थ्य बीती जाए प्यारे तेरे बचने का बस यही रूपा अब वही सवेरा है सीट करोड नहीं तो यमदूत सकड लेंगे आए भजन करो फल फल स्वास्थ्य बीती जाए भजन करें तो सुख शांति पावे नहीं तो दुखों के घेरे में घिर जाए । ऐसा ना करो फल फल स्वास्थ्य भी थी जाए काम क्रोध के अग्नि में जले जगह जो जो चले हैं जल जल के मर जाए बच्चन करो पल पल स्वास्थ्य बीती जाए लोग मोहन की धर रहे हैं सब जगह दो दूर मर जाए भजन करो फल फल स्वास्थ्य दीति जाए साहेब कवीर सब संतन नहीं कहा है जो न वजन करें चौरासी जाए भजन करो पल पल स्वास्थ्य पीती जाए हरीश अब कभी गुरु नाम तो भजन ले लख चौरासी के ठंडा कट जाए । भजन करो पल पल स्वास्थ्य बेचती जाए ।

कविता 016

క విత్ సోలార్ జరా సూచ విచారం basin కి దివాను శర్మ, హయ్య సబ్బు కోయ దియా హే బిడి చాలు జర ఉస్కో సుధా రు జర సూచ విరిచారు. Lesson దివాను మానుష నన్ను మూల మిల హే కుక్కర్ మకర కే nice గోపిగాడు జర సూచన ఇచ్చారు. Lesson కి దివాను helmet గీ rest rent బుధుల అభిమాని బంకర్లు పెడితేనే మారే మారి జ రాసుకోవచ్చు విచారణ lesson కి దివాను దయ ధర్మన్న hit విధుల్ని రక్తి నిజ స్వాతి కే పీల్చే బహు జీవులకు మరి జర సూచ విడిచారు lesson కే దివాను మాతా పితా సూరత్ బంధువు తృతీయ కుటుంబ క విలా న సంఘ జాగింగ్ ఎత్తు హరి జర సూచి విడిచారు. Lesson k దివాను గురువు వినా shook దేవాది మోక్ష నలపై వేద శాస్త్రము, టాకీ దిక్కు సారి జర సూట్ చూపిచారు lesson దివాను పరిషత్ రవిక హే సున్ ఓనర్ నారి సద్గురు శరణ్య హు దగ్గే వారే ధర సూత్రం విడిచారు. Lesson కి దివాను

कविता 017

కవిత్వ సత్రం హరి భజన రేమండ్ మీరే నీ గోడే ఒక సారి ఉ మారుతూనే దూకే మే కో విదియ అత్తు చేత్ దీన్ని రహిత ఎత్తు ఇప్పుడే కర్ హరి భజన ది మనం మీరే నీ గోడే photo k song will will bake way సంవత్సరం సే హరితం రహీమ్ ముక్కు మూడే హరి ప్రజలది మరి మేరే నీకు గోడే కామ క్రోధ కి అగ్నిని జనతా సత్సంగ్ గంగకు బాగే చూడే కథ హరి భజన రి మళ్ళీ మీరే ఓడి నా గురు భక్తి ప్రసాదుకి సేవ కామని మాయా అనిపిచే నిత్తు దొడ్డే ఆఖరి హరి ప్రజలందరి మరి! నువ్వు వేరే గుడి సభ హీ సంతకం హే ముక్తి జోతి సాహు వసంత భక్త మ్ సే నత రాహు చూడే కర్ర హరి భజన రే మరి మేరే ఎన్ని ఓడే హరీష్ శక వికారి సుఖము మనము మూలకు కలక కుంద బెంగే గురు తోడే ఎకరం హరి భజన దే మనం మేరు ఎన్ని గోడే

कविता 018

கவித்து ஹெக்டாழ் கரி சூரி மண்ணு வா அமைச்சே கரி சூரி மண்ணு வாட்டும் செய் லாக் கைபர் இருக்ககா நம் ஆனே கரைச் சூரி பச்சை பண்ணு செய் கருதிக் ஆவா பூ பாகர் சேகரிக்கப்பட்டு ராஜா யை மனுசே கரிய சூரி மௌலிவாகம் சே கரி சூரி மண்ணு வாத்தும் செய் சு வார்த்த மே சங்கீ பன்னி ரோஜாவே அவசரப் பே கோவில் காமன் ஆவே சத்து சங்க சோடுகு சங்கு க ரே குமார் ஜாய் தண்ணி செய் க்ழிஜ்~ சூரி மண்ணு ஹம்ஸ் கரி சூரி மண்ணு வாக்கும் சரி பட்டா வித்து பன்க்கு காமிச்ச லாவே லே சவுரா ஸி மெய் பரமாத்மாவே இதாசே சூழ்ச்சி விசாரிக்க ரோமன் குமார்ன்னு சோளோ தன் மனு செய்! கரிய சூரி மனு வாக்கம் செய் கரிய சூரி மனு வாதம் செய்ய சங்கு செய் கரி சூரி மண் வாகும் சேர் சரி, சூரி மனு வாக்கும் சரி

कविता 019

కవిత్వం కొన్ని గురువు చరణమే పేరు ల గాలు login అమృత్ సరస్సు చూడ కే పారే విషయం ఏక హేతువు నువ్వే మగని గురువు చరణమే పేరు ల గాలు login రాగ ద్వేష ఈర్ష హీన కిసీ సే ప్రేమకి ఏసి చల్ ఆదో చలం గురు చరణమే గారు లగా లో login చూడు కపట హౌర్ మాను బడాయి సాహెబ్ కి భక్తీ కరు చూడు అక్కడ గురువు చరణమే ఆరు ల గాలు login జోనర్ సాహో తుంబ వ సాగర్ తరుణ బుజ్జాయి బహు సద్గురు కే శరణ్ గురువు ఉచ్చారణ మీ అయ్యారు ల గాలు login కామము క్రోధము అది జల్ కే ఖాకీ పని విరహ కి ac జల్ ఆ దువ్వ గన్ గురువు చరణమే తయారు ల గాలు ఉన్న గని చదువు లగ్న హు వేద య సత్ గురుకి tablet మిట గినా వ గమనం గురుచరిత్ర మ్ మీ పేరు లగా లో login సూచ హో తుమ్ నిజ కి ముక్తి తో చూడు యా హీ తృష్ణ తరం గురుచరిత్ర నమ్మే చెప్పారు లంగాలు login హరే ష కవి గురు నా ముత్తు ప్రజలే నిర్మల్ హో వేగా తేరా తన్ మన్ ముగ్గురు చరణమే పేరు లగా లో ఉన్నదండి

कविता 020

ఓం okay కవిత bees అప్ప నాను భవతు అనేస్తున్నావు చిత్ కరు హ మరియు మనము మాయకి ఎక్కించ లేన గురు రాజ్యానికి మచి ఘన గోరు అపర్ణ అనుభవం అనేస్తున్నావు చిత్ కరో హ మరియు గురువునే సచ్చి కీ రాహు భవత్ ఆయ దయా ధర్మ కి రాధికా య మత్తు అంక రణ చోరీ హింస రహ నాగ్ గానికి and జు అప్పుడు నా అనుభవ ఉత్తు ముగిస్తున్నాం చిత్తూర్ కరో హ మరియు జబ్బు బీ ముఖేష్ ఏయే కుల e తుమ్హారా సాహెబ్ యొక్క వీరికి కథ సున్నా న సగమే మమత ప్రేమ ద్వేషం upn ఆనుభవం తురే సున్నా వు చిత్ ఊహ మరియు సంత సంగతి సేక భీమః ఘటన సంత జనులకి సేవా కర్ణ చాలా వృక్క పట్టు కభీ నా కరణ విషయం నరక ఘన ఘోర అప్పుడు నా అనుభవం తుది ఇస్తున్నాం చిత్ కరు uh మరియు గురు మంత్ర శ్వాస దయా శీల సంతోష ధ్యాన జో చూడు గురువు మంత్రిగా వార బని చౌరా శిఖర్ horror సాహెబ్ గోపాల్ మిల్ ఏడుగురు పూర్ ఆకులే భ్రమకి poll పరీక్ష కవినే సంవత్స హు గత కడ జ్ఞానికి మంజూరు అప్పుడు నా అనుభవంతో చేస్తున్నాం. చిత్ ఒకరు మరియు హ్మ్ అవును

कविता 021

हूँ फॅस मन तू का ही को हम बुलाया खट्टर ने राम मर्म नहीं पाया मृगतृष्णा के पीछे पढकर अपना तो कमाया माँ पिता सूत्र दादी दादा नारी मोहर उलझाया मान तू काहे को हम खिलाया काम क्रोध लोग मोह अंधकार खुद दुःख पाया । चित्र मित्र से बहुत ने लगाया धन संग्रहण मित्र उठाया मन्टू का ही को हम धुलाया अब भी चेंज केतकर साहेब से जन्म मरण को मिटाया प्रदेश कभी साहेब गोपाल ने अपना आप लगाया, मन्टू का ही को धर्म खिलाया ।

कविता 022

हूँ और कवित बाइस लागी रे लाकी रेला धीरे लागी रे लागी लगन गुरु नाम सच की राह पे निकल पडे उन्हें फिकर नहीं अंजाम की छोड जगत कि आज निराशा भक्ति करते निष्काम की लागे रे लागे रे लागे लाख की रे लागी लगन गुरु नाम की मान बडाई कृष्णा कारण बने चौरासी खान की छोड कपट यह राज दिवेश को बातें सीख लें ज्ञान की लाख धीरे लागी लाख ही थे लागी रे लागी लगन गुरु नाम की ना कि लगन हर स्वास्थ्य जिनकी पावे पद निर्मान कि हरीश कभी मैं साथ हूँ कहता साहेब गोपाल फरमान की लागी रे लाख धीरे लागे रे लागे रे लागी लगन गुरु नाम की लेकिन हूँ

कविता 023

ఓం okay కవిత్వం కబీర్ నామక సుం ఐరన్ కథలే భౌ సాగర్ జాయిగా ఇంక వీరు నామక సుం ఐరన్ కథలే భవసాగరం ధర జాయిగా మాన్ అనుష్క నన్ను మూర్ మిల హే బీహార్ జోక్యం అని గా అగర విషయమే పడరు. మహతో తిరుచానూరు రాసి జాయిగా కబీర్ నామక సుం ఐరన్ కథలే భవసాగరం ధర జాయిగా మాతా పితా సుత్తి బంధుత్వం రియ పోయి ఇక మొన్న ఇగా తను మనక రాదే సాహెబ్ కు వర్క్ పన్ను భక్తి యాభై పద పైగా క వీరు నామక సుం ఐరన్ అక్కర్లే బహుశా గర్ ధర్ జాయిగా సద్గురు దయ జాగృత క్ రాహువే చౌ రాసి భర్మ హాయిగా హరీష్ కవి గురు శరణ్య హో రే జన్మ మరణం మిటు జాయిగా కబీర్ నా ముక్క సుం ఐరన్ కార్లే భవసాగరం ధర జాయిగా

कविता 024

हूँ और कवित चौबीस मेरे मन सोच समझ ले मोरक् क्यों तो फिरता गली गली ये दुनिया से प्रीत न करना हर पल रहती जली जली स्वार्थ में सब संगी साथी अवसर पर रहते तली टली मेरे मन सोच समझ ले मोरक् क्यों तो फिर गली के लिए बाहर से दो ज्ञानी बनता भीतर मैं ले है भरी भरी पांच विषय की धारा है बहती सबकी हरेक फॅमिली मेरे मन सोच समझ ली मोरक् क्यों तो फिरता गली गली अब भी समय है चेत्र मेरे मन अंत सभी बिसरी बिसरि रीश कभी भवपार सो उतरा जिनकी गुरु से बनी बनी नहीं रेमंड सोच समझ ले मूरख क्यों तो फिरता गाली ली

कविता 025

हूँ और कवित अच्छे दो हजार पूरी दुनिया लल का सके ऐसा कोई जगह नहीं आया नहीं साथ चीज बात को कहने में मेरा सब करो कबीर डेरा या नहीं पूरी दुनिया ललकारा रहा है एक साहेब कवीर हमारा है साफ साफ एक सत्य है कहते हैं झूठों सही नहीं करने वाला है जान जान में जो सामान आ गया ऐसा गुरुपीठ हमारा है पूरी दुनिया ललकारा है एक साहेब कवीर हमारा है मानव मानो एक बताया समता दृष्टि पसरा है उन से नीचे का भेद मिटाया हिन्दू मुस्लिम फटका रहा है पूरी दुनिया लल करा रहा है एक साहे कबीर हमारा है करोडों सूरज का प्रकाश अपने दिल में धारा है पक्ष बात दिल में रखते हैं छुआछूत धुत्त का रहा है पूरी दुनिया ललकारा रहा है एक साहे कबीर हमारा है जगह नहीं अनूखा नाम कवीर जो प्रेम से जीतना हारा संतों की है कमी नहीं पर कबीर नाम ही प्यारा है पूरी दुनिया ललकारा रहा है एक साहेब कवीर हमारा है देश विदेश हरेक नगर में क्या भक्ति प्रचारा है घट घट में राउंड ऍम भेद बताओ वन हारा है पूरी दुनिया लडका रहा है एक साहेब कवीर हमारा है धर्म के धन देवारों सुन लो अब ना चले तुम्हारा है हरीश कवि सद्गुरु की दया से ये पद को गांव हारा है । पूरी दुनिया लंका रहा है एक साढे कबीर हमारा है हूँ ।

कविता 026

हूँ और कवित छब्बीस जागी है रे जागी है सोई सुरत या जागी है पांच विषय को छोडी साहेब दक्षिण में लागी जागी हैरी जागी है सोई सूरत या जागी है छोड के जगह की माननी बढाई आप ही में हर शांति है पांच विषय से जो है न्यारा उस सही ओर भागी है जागी है रे जागी है सोई सूरत या जागी है काम क्रोध लोग मुंह रु अहंकार भी त्यागी है सच चक्करों को भेद के देखो मेरूदंड चढ जाती है जागी है रे जागी है सोई सूरत या जागी है इंग्लैंड से देखो पिंगला मिलाई सहस्त्र में जाती है ये आनंद ना तीन लोग में संत सभी दर्शाते हैं जागी है तो इच्छा जागी है सोई सूरत या जागी है गुरु दया बिन भेद में लेना जानने सकल ओसामाजी है समझाए से समझे दुनिया विषय भोग में मानती है जागी है रे जागी है तो सोई सूरत या जागी है मानुश मूल मिला है फिर भी न कभी मिल पाती है हरीश कभी मैं सांस हूँ कहता बडे जतन से चाहती है जागी है रे जागी है सोई सुरत दिया जागी है हूँ

कविता 027

हूँ और कवित सत्ताइस छोड दिया है हमने यारो जब के सभी फंसाने को जोड लिया सद्गुरु से नाता तोड के जगह के नातों को दूर हो दुनिया वालों ना छेडो हरी दीवाने को छोड दिया है हमने या रूम जाग के सभी फंसाने को यारो हमने पहन लिया है सद्गुरुदेव के बाद को मानुष तन मूल मिला है गुरु से नहीं लगा नहीं को छोड दिया है हमने यार ऊँ जगह के सभी फसा नहीं को सच्चाई पर चलना है अब छोड के सभी बहाने को अब मोड कर रहे नहीं देखना ये झूठे जमाने को छोड दिया है हमने यारो जाग के सभी फंसाने को निर पक्षी हरिभक्ति हैं करना तोड के सभी तरह को हरीश कभी सद्गुरु की दया से फिर वो आने जाने को छोड दिया है हमने यारोप जबकि सभी फंसाने को

कविता 028

हूँ और कवित अट्ठाईस विश्व एकता साहेब कवीर का यही सत्य विचार जी क्यों आपस में लडते झगडते छोडो मेरे ये भावजी हिंदू मुस्लिम, सिख, ईसाई सब वही एक समान जी विश्व एकता साहेब कवीर का है यही सत्य विचार जी नहीं ही न कहता कहते सब वही संत फकीर पुकार जी ज्ञान ध्यान और आत्म पूजा इबादत बिना बेकार जी विश्व एकता साहेब कवीर का है यही सत्य विचार रजीन मुझे में कुछ में सब में रहता हूँ वही अल्लाह वही राम जी प्रेम भाव से मिल लो जो उन लोग जीवन है दिन चार जी विश्व एकता साहेब कवीर का है यही सत्य विचार जी जो जन आते गुरु शरण में दिन का है बडा भाग जी छोड कपट जो साहेब भजन करें जन्म मरण मिट जात जी विश्व एकता साहेब कवीर का है यही सत्य विचार जी तैयार रहन से धर्म दीन बने बाकी झूटी दुनिया जी हरीश कवि विचार तहत हूँ चाहे वो गोपाल फरमान जी, विश्व एकता साहेब कवीर का यही सत्य विचार जी हूँ ।

कविता 029

ఓం okay కవితాత్మ న్ this భజన been ఆభరణము గయా సం sir భజన వినా భ్రమ జగ్గయ్య సంస్థ లాఖుజి తురాయి క్యా నడుపుతూనే పడ చౌ రాసి ధార్ భక్తి భావన హృదయ నహీ ధార దియా అక్క ముద్దగా హార్బర్ భజన భిన్న బ్రహ్మ పాయసం sir జహి లోతుకు అప్పన్న జాని సో యిక రేగి తెర తిరస్కారం భర్త భజన భిన్న ప్రముఖ యాస అంస తనంత తన సొత్తు నరికే కారణం కియా బహుత్ అపరాధ ఆత్మ జిల్లాకే లే తు భజన విసా రా సంఘ మైన జావ న హార్ట్ భజన బిన్న బ్రహ్మ జగ్గయ్య సంస మా అనుష్క నన్ను మూల మిల హే నిల ఐన బారం బార్ హరీష్ కవి చోత రణ చా హు తో గ హు గురు నామ ఆధార్ అర్చన విన బ్రహ్మ దయ సంసారం

कविता 030

कवित्व तीस ऐसी है मान तेरी कामना हर पल रहती कमी कमी लाखों करोड धन दौलत हैं फिर भी आशा लगी लगी तू कहता है विषय आसक्त नहीं विश्व सागर स्तर भरी भरी ऐसी है मन से काम ना हर पल रहती कमी कमी समदर्शी का ढोंग है करता भीतर रहती तनी तनी ठोक ठोक के बजाय के देखा हमने हर एक गली गली ऐसी है मन तेजी कामना फिर फल रहती कमी कमी झूठ ही कहता प्रेम है सबसे राग द्वेष सी बानी बनी बडो बडों को हम ने देखा सब लगता है कभी कभी कैसी है मतलब तेरी का मन्ना हर पल रहती तमीन कमी लाख चोरासी सेना बचेंगे ठग सुविधा जब तक बनी बनी हरीश कभी दोनों नाम तू बांजले कुछ कुछ लगता कमी कमी कैसी है बंद तेरी काम हर फल रहती कमी कमी

कविता 031

கவிதை கத்தி ரே பந்தை சூடக்கப்பட்டப்பின் மாநகரைப் அந்தே கொடுக்கப்பட்டு அப்பறம்மா ஏய் அபிமானம் என்ன கோவித்துக் காரி வேத புராண அனுப்புறோமா ஜின் ஜின்னு எப்படிமா நோக்கியா பின் தின்க் ஆகுவான் படி ஆண் பந்தே சோறு ஆக்கப்பட்டு அபிமான வந்து கொடுக்கப்பட்டு அப்படி என்பார்கள் தன் தன் கா விமான க்ழெக்ட் ஆ காக்கு பனி வேஷம் சான் ஹி இஜ் அ மே சேத்து லைப் யாரு என்ன ஹி தூக்கி படி ஆ வந்து சோறு கபடு அம்மா ஒன்று வந்து சூடு கபடு அப்படின்னுவாங்க படி படி ஐ குமார் இனி ஜகமே செல் ஆன கூவிக் ஆகுமா மீறி தெரிவிக்க பாத்து ஹபி யாரை சக்தி கத்தி, தேக்கு சமமான்றத வந்து சோ கொடுக்கப்பட்டு அப்படி மா என்று வந்து சோ கொடுக்கப்பட்டு அப்படி மா சாட்சி பாத்து காகவுமே அப்படி நீங்க சுண்ணாம்புச்சத்து தேக்க இருக்கான். சரி சரி கவி சத்து குருக்கே பஜன பின் அப்படி சவுரா சி. காந்தி பந்தே கொடுக்கப்பட்டு அப்படின்னு மாமா என்று வந்து சூடு கபடு அப்பறமா.

कविता 032

कवित्व बत्तीस शब्द की महिमा भारी । सोनू भाई शब्द की महिमा भारी शब्द ही से ये दुनिया उपजी शब्द ही से नर नारी । शब्द ही से सब काम बहोत है । शब्द ही भ्रम । बेचारी शब्द की महिमा भारी सुनो भाई शब्द की महिमा भारी शब्द ही से सब धनी होता है । शब्द बिना है अधिकारी शब्द वही से गुरु शिष्य होता है । शब्द ही सबको उबारी शब्द की महिमा भारी सुनु भाई शब्द की महिमा भारी । सर्वानंद को शब्द से मारा बने चरण के पुजारी वेद पुराण को दूर बहाया । अभिमान को सर से उतारी । शब्द की महिमा भारी सुनो भाई शब्द की महिमा भारी । लागी चोट वीर देव को बन के आई अधिकारी शमा न करी हो सही कबीर तो चल के मारी हो वो नर नारी शब्द की महिमा भारी सुनो भाई शब्द की महिमा भारी शासनकर्ता सिकंदर लोदी तो हर स्वास्थ्य में पीडा, भारी दया हुई । सदगुरु कबीर रोगन व्यापार दुबारी शब्द की महिमा भारी सुनो भाई शब्द की महिमा भारी शब्द की चोट लगी । पहले तो को छोड दिया संसारी शब्द की महिमा बहुत ही का एक शब्द के जो अधिकारी शब्द की महिमा हरी सुनो भाई शब्द की महिमा भारी शब्द की महिमा जो जान जान लें ऍन सब देखें बारी शब्द ही से मैं शब्द ही से तो शब्द ही से संसारी शब्द की महिमा भारी सुनो भाई शब्द की महिमा भारी शब्द ही से सब सुखी होता है । शब्द बिना है दुखारी, हरीश कभी गोफान दया से गावे शब्द की महिमा बिचारी । शब्द की महिमा भारी । किलो भाई शब्द की महिमा हरी

कविता 033

கவித்து டெத்தீஸ் குரு தேவதை ஆவின் லக்கு தீப்தி துணியாக சீக்கிம் சிக்கி தை ஆகியா தயாநிதி ஜாப் மெரி துணியா குகை மெட்டி மெட்டி ஆப்பு கி மே மனு ஆப்பு சமானம் உள் டி வைரவர் வீதி ரீதி குரு தேவதை ஆவின் இலத்தீன் துணியா பீட்டி கீர்த்தி சு வாரத்துக்கே சபு சங்கி சாத்தி சாரத்தை சக்தி பிரீத்தி பிரீத்தி சாப்பிடு சாப்பிடு நகர் ஜல்லி குரூப் ஜோதி ஜோதி குருதேவர் தயா பின் இல்ல குத்தி துணியா அப்படின்னா கரும்பு சங்கத்து ஜாய் ஒரு கன் இல்லையா? சி. பி. சி ஹரிஷ் கவின்ஜெர் மச்சா சூடு கிழிச்ச? க்கு? பிரீத்தி பிரீத்தி குருதேவர் தயாரிப்பின் இலக்கு தீ துணியாக

कविता 034

कवित्व होती है तेरे नाम का दीवाना बन फिरता हूं मैं गली गली तो ही हाँ तो ही बस रहा है मेरी हर एक नली नली तेरे नाम की चर्चा गुरूवर होती है हर गली गली तेरे नाम कर दीवाना करता हूँ मैं गाली गाली दे रहा कि अगली मेरे मन में जब से तेरी जली जली मूंग की जैसी ये माया अब दिख रही गली गली तेरे नाम का दीवाना बन करता हूँ मैं गली गली दूध में जैसे नींबू पडे हैं नीरज से जो टल इटली तेरे नाम का जब से हृदय पडा है मान माया दिखे फॅमिली तेरे नाम का दीवानापन फिर ता हूँ मैं गली गली कोर्टेज जन्मों से पडी थी बंद जो गली गली हरी निश्चित कभी खुल गई गुरूदेव दया वो बिलिंग कर ली तेरे नाम का दीवाना फिर ता हूँ मैं गाली

कविता 035

कवित्व तेज तेरे नाम पर अर्पण है चीज रन सारा तो ही नहीं जी टूटी भैया के सहारा भाऊ की धारा में पडी मेरी नहीं या तुम बिन गुरूवर न कोई खेवन हारा जब लग गया न हो तो भारी फिर का लागे है ये संसारा मेरे नाम पर अर्पण है जीवन सारा अगर छूटता है तो छोटे जमाना तेरह नौ छोडना जीना है गवारा महत्व पिता स्वास्थ्य के लोग भी कुछ तुम कबेला सब परिवार तेरे नाम पर अर्पण है जीवन सारा हरीश कभी की अरज गुरूवर भक्ति दाना दो मुझको निर्धारण तेरे नाम पर अर्पण है जीवन सारा

कविता 036

हूँ कवित छत्तीस ॅ सतगुरु मेरे यार क्यों तो डरे है बार बार सत्र की नहीं ज्ञान की डंडी विवेक विचार आधार शील संतोष के ऊपर वो थी वैराग्य त्याग है सारे खेवट क्या है सतगुरु मेरे यार क्यों तोड रहे हैं बार बार काम क्रोध की धार है बहती लोग मोह अहंकार कृष्णा तरंग घर पर लोग बजे राग द्वेष डूब हार खेवट दिया है सतगुरु मेरे यहाँ क्यों तो डर रहे हैं बार बार सब जगह उलझा ये मैं यहाँ नहीं पडा चौरासी की धार सतगुरु राम को जो जान भजते सहज उत्तरे भवपार खेवट दिया है सतगुरु मेरे यार क्यों तो डरें बार बार मेरे खेवडिया साहेब दुख गोपाल हैं, पार्टी करेंगे उस पर साहेब कवीर दिल्ली बीच में बैठे देखा हरीश निहार खेवन किया है सतगुरु मेरे लिया क्यों तो डरें बारंबार हैं ।

कविता 037

हूँ और हूँ कवित्व पैंतीस कहाँ हो गए वो सन्त हमारे जिनकी महिमा यही दो उचारे रामानन कभी रवीना भाव नानक टीपा दरिया रहे श्रुति गोपाल इदा दू कमाल पलटू से नवीर हमारे कहाँ हो गई वसंत हमारे जिनकी महिमा मेरे दो चार रहे ग्राम कृष्ण बुद्ध महावीर सोच रही हूँ खरीद बुला रहे तो पहला भीषण गोरख भरतरी सुखदेव मेरे कहाँ हो गई वसंत हमारी जिनकी महिमा ईद उचारे ऍम तीर तुलसी रु । काली शिवरी विवेकानंद से प्यारे अनुसूया नर्मदा सावित्री मीरा सहजो रत्ना रे कहाँ हो गई उस संत हमारी जिनकी महिमा वीत उचारे जिनकी भक्ति अखंड थी जगह में तीन से नहीं आ रही समता दृष्टि सब पे जो रखते राग द्वेष से न्याय रही कहाँ खो गई वो सन्त हमारे जिनकी महिमा वेद चाहते सब जीवों पर दया जो करते भवसागर से पार रही नीरव पक्षी जो भक्ति करते बंद था पंथी से सारी कहाँ हो गए वह संत हमारे जिनकी महिमा वेद उच्चार ऊंचा नीचा कोई न देखे छुआछूत दुत्कारी ट्रेनी बन के जगह मैं फिर से करते सब पे आपका रही कहाँ हो गए वो सन्त हमारे जिनकी महिमा वेद उचारे न बनवाते मंदिर मस्जिद गिरजा गुरूद्वारे काम क्रोध मद लोग को त्यागे अहंकार से नहीं आ रही कहाँ हो गई वो जानता हमारे जिनकी महिमा भी तो जा रहे हैं जिनकी रहनी व्यापार थी जगह मैं केवल हरी नाम के प्यारे न कोई बैरी नहीं मित्र हैं फिरते पुकारे तो का रहे कहाँ हो गए वह संत हमारे जिन की महिमा तेज उचारे आत्मराम में हर पल रमते मेठी वाणी उचारे आत्म पूजा देव दूजा सत्य दया को धारी कहाँ हो गयी वो सन्त हमारे जिनकी महिमा दो उचारे सत्संग में हर पल रहते खांसी में ध्यान अंधारे हरीश कभी ऐसे संतों पर तनमन सब देखो वारी कहाँ हो गई वो सन्त हमारे जिनकी महिमा पहुँचा रहे लोग हूँ

कविता 038

हूँ और कवित तेज फॅसे ट्रेनर चेस रेंद्र छेत्र हर इसे कर लेते हैं तो रेंजर हरी से कर ले हे तेरे संत असंगत नहीं जा के मिलत है पुराने आत्मक का भेज देते बिना गुरु जा नरक पढत हैं गांवे सब ही दे रहें फॅारेन चेस रेनाॅल्ड्स कहाँ से आया कहाँ चाहता हूँ क्यों भूल गया निचे देश मेरे काम क्रोध मध्य लोग चोर है का दगा बहुउद्देश्य चेस तरह नरेंद्र से फिल रेनर चेस रेनाॅल्ड्स मान बडाई राग द्वेष और हम का ठग लेते रहे यह संसार सार्क का लो भी स्वार्थ बस करता है तेरे चेस रेनाॅल्ड्स चेंज रही नर्सेज सत्य, दया और आत्म पूजा पूर्ण सब सुख देते थे । सात से संत से हितकर ओनर भाव से पार कर दे रे चेस रेनर चेंज रेनर चेक रेनर चेत्री मानुष तन अनमूल मिला है फिर ना मिले ये देहरे हरीश कवि गुरु शब्द से चेता जगह से भैया अभी रे फॅारेन अगर चेस रेनाॅल्ड्स

कविता 039

हूँ कवित्व उन छाले कोई सुनता है सब तो सुखाना अनहद शब्द घट में निर्बाध ना रहे तीन । कालम में तीनों का तोडे बाप को नहीं आना जाना काम क्रोध मद लोग को त्यागे अहंकार नहीं आना कोई सुनता है संयुक्त सुखाना बिन नई लो जग परे देखें बिलकुल जी में गुण गाना बिन उपग्रह के भवपार जात है शब्द सुने दिन का ना कोई सुनता है संयुक्त सुखाना रागद्वेष शिवा को नहीं व्यापे मान बडा ही तजे ना सब घट अपनी आत्म देखें प्रेम भाव मनमाना कोई सुनता है संत सुखाना हर पल रहे उन मुनि दसा में नेट के फॅर सद्गुरु दया जब से हुई है परमानंद है जाना कोई सुनता है संत सुखाना हरीश कभी जगह आशा छुट्टी भक्ति, भजन मनमाना यही शब्द का भेद जो जानें तो कोई संत सुजाना, कोई सुनता है संत सुखाना अनहद शब्द घट में निर्वाणा

कविता 040

हूँ । कवित्व चालीस तो चल चल रहे हो साल से चल रहे हैं क्यों मोहन इशारों में सोता है बढकर माया के फेरे में क्यों तू क्या रोता है? मानुष तन अनमोल मिला है । ये अवसर क्यों होता है? सत्र संगत में आकर क्यों ना फॅमिली सदर या होता है जान मंजन पापों की कंट्री क्यों सर पर ले होता है तो फॅमिली मुसाफिर चल रही क्यों? मोहन निशान होता है जहाँ जहाँ का या तो बंधा या क्यों निर्बंध धन होता है एक हरी की भक्ति वेना चौरासी में खाता होता है तो चल चल रहे मुसाफिर चले थे । क्यों मोहनेश में होता है सद्गुरु दया जब से हुई है आनंद मंगल बहु होता है । हरीश कभी जगह आशा छूट्टी भाव से बारे चाहता है तो चल चल रहे मुसाफिर कैमरे क्यों? मोहन ने शामने सोता है

कविता 041

ఓం okay కవిత్వం వ్యక్త లిస్ అమ్మాయితో చూడ చలా సంసార జూచుట హే జరగక వ్యవహార అమెరికా కృష్ణం ఏడుపు జాన్ ఏసే పోత నహీ ఇవ్వర మాయా నే సౌ రాహు బంధువుకి గురు బిన్న హీన ఇస్తార ఫోబియా చ తురాయి జగ కి భక్తి భావులు ధర అమ్మాయితో చూడు చలా సంసార జ్యూట్ ఆహే జరగక వ్యవహార పకపక మాయా ని కట్టే which i e పోయి బిర్లా జాన హార అ గాని మాయా కి సంఘ జా పడే చౌరా సి కే ధర అమ్మాయితో హోరు చలా సంసార సూట్ ఆహే జరగక వ్యవహార సద్గురు పూరణం బ్రహ్మ ల కాయ ఘట హీ మేకర్ తారా హరీష్ శక విజయ ఘాష్ ఆ చోటి అబ్బో నా ఆపు నిహార అమ్మాయితో చోటు చలా సంసార జ్యూట్ ఆహే జరగక వ్యవహార

कविता 042

हूँ कवित्त बयालीस कैसे इनको समझाओं में सम सेना मुर्ख नाडी है निकले थे भक्ति करने को क्या कर रहे अनाडी है निजी आतंक का भेद न जाने चलते अगर छाडि है कैसे इनको समझा हूँ मैं समझे ना मुर्ख अनाडी है माया देख वो राई गए हैं बन बैठे दुराचारी है होगी बन के जगह मैं फिरते कुकर्मी बडे भारी है कैसे इनको समझा हूँ मैं समझे ना मुर्ख अनाडी है कहने को तो हरिभक्त है अरे भक्ति नहीं जान रहे हैं सात से संतों का नाम डुबाते ये तो विषय विकारी है कैसे इनको समझा हूँ मैं समझे ना मुर्ख अनाडी है धनसंपत्ति लोग के कारण गोली बंदूक चलाते हैं ग्राम क्रोध की अग्नि में जलते आत्मशांति न पाते हैं कैसे इनको समझा हूँ मैं समझे ना मुर्ख अनाडी हैं उदय अस्त तक ॅ जिनकी सोजन मुझको भागते हैं हरीश कभी मैं साथ हूँ कहता आवाज गवर्नस आते हैं कैसे इनको समझा हूँ मैं समझे ना मुर्ख अनाडी

कविता 043

कवित्त बयालीस मानवता के विरोधी बन बैठे राजनेता, नेता, सिपाही मिलकर जनता को धोखा देता एक वोट की खातिर मुर्गा बकरे का गला रेता मानवता के विरोधी बन बैठे राजनेता । झूठी दिलासा देकर जगह लूटते हैं ये नेता हर गुंडे पर हर मुजरिम को बढाते हैं ये नेता । मानवता के विरोधी बन बैठे राजनेता, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई के नामों पर दंगा फसाद जगह में करवाते हैं ये नेता । मानवता के विरोधी बन बैठे राजनेता, जज वकील मिलकर सांसों की बोली देता का जी ओर पंडित मिलकर बिगाडे हर ही देशा मानवता के विरोधी बन बैठे राजनेता ।

कविता 044

कवित्त चौवालीस दुनिया की जंजीरों से अब हमनवां रहेंगे या रूम जहाँ साथ देता कोई वहाँ हम न रहेंगे या रूम हम छोड चले ये दुनिया तुम्हें फिर न मिलेंगे यारो दुनिया की जंजीरों से अब हम न बंधेंगे आरोप जो सच्ची बात है दिल की हम सबसे कहेंगे या रहूँ स्वार्थ बस सब है आपने फिर छोड चलेंगे यार हूँ दुनिया की जंजीरों से अब हम न बाँध देंगे यार हूँ जो कहते हम तेरे तेरे रहे हैं वही देते दुख घनेरे पहचान रहे हम सबको पर कुछ न कहेंगे यार ऊँ दुनिया की जंजीरों से अब हम न बाँध देंगे या रूम नहीं रोक सकेगा कोई हम सबको तलेंगे यारो उधर रह से वाकिफ है हम हम चलते चलेंगे यार हूँ दुनिया की जंजीरों से अब हम न बंधेंगे यारो कोई साथ में या न हो हम फिर भी चलेंगे यारो अपनी ही याद में अब हम जल जल के मारेंगे यारो दुनिया की जंजीरों से अब हम नवन देंगे यार चाहे लाखों गम दे दुनिया खस हस के सहेंगे यारो हरीश चले हम जगह से अब कुछ नहीं कहेंगे यारो दुनिया की जंजीरों से अब हम नवन देंगे यार हूँ

कविता 045

कवित्व पैंतालीस जिंदगी के सफर को चलकर हमने देखा है झूठ रहे हैं ये दुनिया वाले हर कदम पर देते धोखा है अपना सा बनकर पास आते हैं जब अपना मतलब होता है जिंदगी के इस सफर को चल कर हमने देखा है जब मतलब निकल गया तो न कोई किसी का होता है हमने देखा है ये जहाँ को यहाँ झूठा हर एक नाता है जिंदगी के सफर को चल कर हमने देखा है मुख है मीठी बातें करते दिल में कपट छल होता है हरीश कभी तो अब भी सफल जा यही तो अच्छा मौका है जिंदगी के इस सफर को चलकर हमने देखा है

कविता 046

with chillies బుర్రే హమ్మ హోతే తురాయి నః ధోతి సాగర్ జోక్ కిసీ పర్ కాసే హమ్ నాకు పోతే హ్మహు జగ సాయి బుర్ ఆయిన ఆహుతి నాకు కత్తి హోల్కర్ ఈసారి జ హాకి అ గర్ మేరే దిల్ కి కథ అయిన ఆహుతి బు రాయి ఆహుతి న కర్త సీతం ముచ్చట పరి సమాన అగర మేరీ కర్నూలుకి నాయిన ఆహుతి బుర్ ఆయిన ఆహుతి న జాన్ ఏక హమ్ పటక్ తీ జాతి అ గర్ గురు గానికి జల తిన్న జ్యోతి బుర్ర అయిన పూర్తి హరీష్ బాబు హే గల అని ఏమన్నా virus ని లగే హే కోసెం ఒత్తి బుర్ ఆయిన ఆహుతి

कविता 047

कवित्व सैंतालीस हारते आए हैं हूँ सब कुछ इस जमाने से जीतकर जश्न मनाते हैं ये दुनिया वाले हमें खुशी है हर जाने से हारते आए हैं हम सब कुछ इस जमाने से मुझे न जान सका कोई मेरे दिल खाने से दूर रहते हैं इसलिए हम अरे हसाने इससे हारते आए हैं हम सब कुछ इस जमाने से भूल पाया हूँ बडी मुश्किल से दर्द पाया था जो जमाने से हारते आए हैं हम सब कुछ जमाने से छोटी दुनिया से बहुत दूर चले जाएंगे दिल की दुनिया में घर बसाने इससे हारते आए हैं हम सब कुछ इस जमाने से भूलना पाएगा जमाना मुझे बुलाने से तसल्ली मिलती है यारो ऍम छुपाने से हारते आए हैं हम सब कुछ इस जवान से दूर हो पास में ना हूँ बेचैनी बढती है मेरी तुम्हारे आने से हारते आए हैं हम सब कुछ जमाने से मेरा अपना न कोई पराया है प्यारे हमको है सभी जो है उस प्यार से हारते आए हैं हम सब कुछ इस जमाने से फिर मिले तुमसे कभी क्या भरोसा जीवन से ढूंढ लेना हरीश को तुम हरीश के गानों से हारते आए हैं हम सब कुछ इस जमाने से

कविता 048

कवित्त अडतालीस यारों मैं अजनवी हूँ मुझे अजनबी ही रहने दो मत छेडो मुझको यारों मेरी हालत में मुझको रहने दो अगर लघु बन के आंसू बहते हैं तो बहने दो यार हूँ मैं ही हूँ मुझे अजनवी ही रहने दो देखा है जब को हमने हमदर्दी का नाटक रहने दो कहने को सब है आपने छोडो मुझको मरने दो यारों मैं अजनवी हूँ मुझे आज नवी ही रहने दो रोक नहीं कोई आना झूठी दुनिया से हम को चलने दो मेरे नाम की आग में ही जल जल के रहने दो या तो मैं अच्छी हूँ मुझे अजनवी ही रहने दो बेदर्द है जमाना दर्द को देख के हस्ता है हरीश चला है छोड सबको जब हस्ता है तो हसने दो यारो मैं नवी हूँ मुझे अजनवी ही रहने दो

कविता 049

कवित उनचास मत करो प्रीत परदेसी से परदेश तो चले जाते हैं दिल में आकर बस जाते हैं फिर हर पल तडपाते हैं जीना मरना मुश्किल कर दे ऐसा ने हाल लगाते हैं मत करो प्रीत परदेशी से देशी तो चले जाते हैं उनकी यादें पीछा न छोडें नींद से ले जाते हैं मीठी मीठी बातें हैं करते दिल को चुरा ले जाते हैं मत करो प्रीत परदेशी से परदेशी तो चले जाते हैं न जा नहीं कहाँ हो जाते हैं लौट न वापस आते हैं आते जाते हर परदेशी में वही नजर फिर आते हैं मत करो रीत परदेशी से परदेशी तो चले जाते हैं हम तुम भी है परदेशी इसलिए ये गीत सुनाते हैं यार ओ जो हम से गुजरी वहीं सुनाते जाते हैं मत करो प्रीत परदेशी से परदेशी तो चले जाते हैं लाखों परदेशी दुनिया में आते हैं फिर जाते हैं हरीश कवि मैं साथ हूँ कहता कोई ये दिल से न जाते हैं मत करो प्रीत परदेशी से परदेशी तो चले जाते हैं

कविता 050

कवित्व पचास देखा है जिंदगी को हमने बहुत करीब से हर कोई यहाँ पे मतलब निकालता, हर एक से मिलते हैं तो है सभी यहाँ पर मिलते हैं अरे वैसे देखा है जिंदगी को हमने बहुत करीब से करते हैं यहाँ धोखा छल करते हैं हर एक से यहाँ कोई न किसी का है बस स्वार्थ है हर एक से देखा है जिंदगी को हमने बहुत करीब से इसलिए हम भी आरोपों अब रहते हैं सचेत से हरीश कभी अलग ही हम रहते हैं हर एक से देखा है जिंदगी को हमने बहुत करीब से

कविता 051

ప్ర విత్ pic కావలి అయినే కః ఎయారు భరోసా ఆహా అయిన గిరిజ మీ పర్ టూట్ జాతే మెల్లని వాళ్ళం పోయారు ఎక్కి హ్ ఏకః మిల్ ఇవ్వాలి తు మిల్క్ ఆర్ which shoot జాతీయ genco అప్నా యః స సమస్యే సదా సత్య బాబు లో గుణ సే లూటి జాతీయ హే ఆయనే హే అయ్యారు భరోసా కః యారు సారా సమాన మత్ లక్క హే యహ మతలబ్ శేఖర్ కోయి ఇప సత్తి హే ఆయనే ఇంకా here భరోసా alcohol is సమానమే మెతుకు రహీమ్ రీతిన కర్ ఖచ్చితంగా గేటు boxer హీ టూట్ జాతే అయినా ఇంకా hair భరోసా కః తమ్మి దేఖ hair ఈసారి రా జ హా హరికథ చర్య కాపర్ బదులు జాతి అయినా ఇంకా here భరోసా కః అయ్యారో weather కి సమాన యహా దర్ దేకర్ మెహర్ పోయి ముసుకు రాత హే అయిన అనేక hair ప్రోత్సాహం లాక్కో గం మంకు అదైతే ధోని అవ్వాలే అభిరుద్ధి సర్గం కు సహక రామ్ ముసుకు రాత హే ఆయనే కహే ఆరు భరోసా హా చూడు ఒక్కరికి చలే హమ్ చేస్తారా సహా సహా జాగర్ నకు ఇది లోటు అయితే అయిన ఇక here బరోస ఆహా పుష్కర హు త్వం బహు సాహితీ సహా దేనికే తుక్కు హరీష్ ద్వా జాతే అయిన ఇంకా here బరువు సహా ఆయనే గిరిజ మీ per too జాతే

कविता 052

हूँ कवित्व बावन हमें क्या लेना है इस दुनिया से मस्त फकीर दीवाने हैं यहाँ करें किसी से प्रीत क्या आखिर तो सब देगा नहीं हैं ये तो दुनिया बडी जालिम है हर एक पल देती तले हैं हस हस के इन के जुलुम सहते फिर भी ये जुल्म में न माने हैं हम जानते दगा करें दुनिया फिर भी सबसे अनजाने हैं हमें क्या लेना इस दुनिया से हम मैं तो फकीर दीवाने हैं यहाँ क्या मेरा क्या दे रहा है यहाँ सार्क का ही थे रहा है हम जानने रहे हैं स्वार्थ का स्वार्थ में ही दुख घने रहा है और के डर जो अपना साथ जाने वही तो सबसे दीवाने हैं जिस पर आकर मरती शर्माएं हम यारो वही परवाह नहीं हैं हमने क्या लेना इस दुनिया से काम मस्त ऐसा कीर दीवाने हैं मस्तानों की क्या होती है मस्ती दुनिया के लोग जान रहे हैं चाहे माने या न माने दुनिया हरीश तो कहते जाने हैं हमें क्या लेना इस दुनिया से हम मस्त फकीर दीवाने हैं

कविता 053

हूँ कवित्व तेरे इस दुनिया में अक्सर लोग यहाँ आते हैं फिर जाते हैं हम दिल से दुआ सबको देते फिर भी सब हमको सताते हैं हमने तो सबको प्यार दिया फिर भी सब हमें ठुकराते हैं हमने तो देखा है सारा जहाँ स्वार्थ के यहाँ हर बनाते हैं हमने तो क्षमा करना से खा फिर भी सब हम से टकराते हैं तन धन सब करते हो मान अभिमान में हर कोई मानते हैं कोई विरले छोडे हैं सारे गुमान जो भाव से पास हो जाते हैं जो बात है यारो दिल की वो सबको बताते चाहते हैं यहाँ अपना न कोई पराया है हरीश ये कहते जाते हैं इस दुनिया में अक्सर लोग यहाँ आते हैं फिर जाते हैं

कविता 054

हूँ ऍम साहेब साहेब बोल रे बंदे सहित साढे बोल रहे भीतर के पट खोल रहे बन्दे भीतर के पत्ते खोल गंगा जमुना मिले सरस्वती बाजे अनहद ढोल रहे पहले तो लो फिर बोल रे बंदे साहेब वाणी अनमोल रे साढे साहेब बोल रे बंदे साहेब साहेब बोल रहे काम क्रोध मद लोग चोर हैं सबके खुल जाएंगे तो ले रे राग द्वेष मान बडा ही के फूट जायेंगे ढोल से साहेब साहेब बोल रे बंदे साहेब साहेब बोलते छोड जगत कि आशा निराशा धर्म की गांठे खोल रहे हरीश कवि साही भजन कर काल वे तेरे को लेते साहेब साहेब बोल रे बंदे साहेब साहे बोलो

कविता 055

हूँ कभी त् बचपन ये मस्ती मस्त दीवाने बाते हैं जो आवाज गवर्नस आते हैं जो गफलत के मारे फिरते लाख चौरासी जाते हैं विषय विकास के जाल में फंस के मुक्ति कभी न पाते हैं ये मस्ती मस्त दीवाने पाते हैं जो आवाज गवर्नस आते हैं निजी दिल की दरगाह में जो हर पल खुदा को ध्यान आते हैं तोडके झूठी दुनिया से नाता सभी पीर मिल चाहते हैं ये मस्ती मस्ती दीवाने पाते हैं जो आवाज गवन नस आते हैं अलग फकीरी मैं रहते खुद से बहुत मिल जाते हैं आशा निराशा दूर है करते निर्भय पद को पाते हैं ये मस्ती मस्त दीवाने पाते हैं जो आवागवन नस आते हैं हिन्दू न मुस्लिम कोई ऐसा ग्यान बताते हैं सब में निजी आतम को देखें समता रह चलाते हैं ये मस्ती मस्त देवा नहीं पाते हैं जो आवागवन नहीं चाहते हैं प्रेमी बन के जगह मैं फिरते पक्षपात को मिटाते हैं सब में रहते सबसे न्यारे राग द्वेष को मिटाते हैं ये मस्ती मस्त दीवाने पाते हैं जो आवागवन नस आते हैं सत्य दया को दिल में रखते आवागमन नशा आते हैं हरीश कभी ये मस्ती जो पाते जगह में अमर हो जाते हैं ये मस्ती मस्त दीवाने पाते हैं जो आवागवन नहीं चाहते हैं

कविता 056

ఇంక విత్ చెప్పను! అబ్బో మూరి సాహెబ్ హు అక్షయ అల్లసాని been నైనా జగన్ పార్టీ మీద bike been సర్వ మనసును అన్న హద్దు వాణ్ణి been పద్యాల అమృత సరస్సు పీఎం జాయ్ సూరత్ య శబ్ద సామాన్య అబ్బో మూరి సాహెబు అక్షయ అల్లు sir ని జాన్ బైరాగి వివేక విచార సే మనుమ ని చెయ్యల సంతోష కి చౌదరి తాని, హరీష్ కవి దయ సత్ గురుకి పాయువు అలక్ పురుష నిరు బానే! అబ్బో మూరి సాహెబ్ హు okay అల్లసాని

कविता 057

कवित्व सत्ता दास की बेनातिया सुनो है सद्गुरु हमारे बडी मस्जिद था रे में ये नहीं हमारी तुम बिन दूजा जो करे भवत के परी डांस की बेंच दिया सुनो है सब गुरु हमारे हम सब तुमको बहुत होंगे साहेब मेरे लिए न दूजा सेवा एक तुम्हारे डांस की बेंच दिया सुनो है सद्गुरु हमारे बत्तीस विषय के बहे बहु उधारी हाँ सुना किसी की साहेब सेवाएं तुम्हारे दास की गिनती सुनो ये सब गुरु हमारे बहुत जन्म हम हम के मारे एक हूँ मरम्मत पाया तुम्हारे दास की गिनतियां सुनो है सब गुरु हमारे तुम समर्थन सब जाना तुम्हारे अति हो ये दुखित री शक्कर दीपको कार्य दास की गिनतियां सुनो है सब करो हमारे

कविता 058

కవిత్వ అక్క యః ఈ భక్తి ప్రమాణ వస్తువును high జహీర్ భక్తి ప్రమాణ చల్లితే ఫిరత్ ఈ హరి సమయ జబ్బు రహి గుర్ఖా ధ్యాన యః ఈ భక్తి ప్రమాణ సులభ e యః ఈ భక్తి ప్రమాణ కాము రోడ్ మధు లోధ్ర హీన అహంకారి కి ఖాన్ రాగ హీన ద్వేష హీన నహీ మాన్ కుమార్ సుడోకు భయ e యః ఈ భక్తి ప్రమా నాకు హిందూ నాకు ముస్లిం నాసిక్ సాయి మా అంతర్ధానం తో ఒకరికే దేనికి లేదు సబ్బు మే హే హీ ప్రాణ సున్నా ముప్ఫై యః ఈ భక్తి ప్రమా సత్య హత్య ఇక కూడా high చీటి బందరు స్వామి అప్పుడు నీ ఆత్మ స భూమి దిక్కు పత్తి జబ్బు సేమియా, గురు గాని సులు భై యః ఈ భక్తి ప్రమాణం సమతా భక్తి హరి పలు ఉప జే సత్య ద యాతి ఖాన్, హరీష్ కవి సబ్ గురుకి దయా సే పో వీ అవ్వని జాన్ బస్సును high యే హి భక్తి మిత్రమా

कविता 059

पवित्र उनसठ रोक सकता नहीं या तो हमें जमाना नहीं कोई संघीय साथी नाम आल खजाना जल्द का हर एक नाता तोड जाना रोक सकता नहीं यार ऊँ हमको जमाना हम तो है या रो हवा से झूमके न रोकेंगे किसी के हीरो के रोक के सकता नहीं यारो हमको जमाना यारो नाम है मेरा लकी मस्ताना होते हैं दुनिया वाले साथ साथ है सद्गुरु का ज्ञान रोक सकता नहीं रो हमको जमाना यारो हम तो प्रेम के भूखे प्रेम भाव मनमाना हरीश कभी सब गुरु की दया से फिर न हो आना जाना रोक सकता नहीं होंगे हम को जमाना

कविता 060

कवित्व साठ किसे कहते हैं बेरहद की या दिन प्यारों जानता है वही जो है मगर रुपया हो जानना है तो जाकर के उन से मिलो जो है हर एक पल खुद में मगन प्यारों इसे कहते हैं मेरा की अगन प्यारों मेरा हक की अगली में जो जल जल कर मरे होती है उल्टी उनकी हर चल अंपयारों किसे कहते हैं मेरा की अगन त्योहारों खुद की मस्ती में हर पल जो दो बार रहे उसकी बुद्ध जाती है हर एक अगर प्यारों किसे कहते हैं मेरे की अगर तैयार हूँ जिसको ढूंढ के बाहर का जमाना थक्का खुद ही मैं मिल गया है वह सज्जन तैयार हूँ इसे कहते हैं दे रहे की अगन त्योहारों जब मैं समझता हूँ कि जो मिसाल बने जब में बिरले हैं संत सूजन तैयार हूँ इसे कहते हैं बिरह की अगन प्यारों न हो हिंदू कोई न हो मुस्लिम कोई जिसके दिल में हो हर एक चमन प्यारों इसे कहते हैं तेरह की अगर प्यारों लागी लगन साहेब की कभी छोटे नहीं रेम हो सबसे हरीश अपना पाँच प्यारों किसे कहते हैं तेरह की अगन त्योहारों

कविता 061

हूँ ऍम अपने ही रंग में हम को फिरंग लोग दिया हर एक रंग मोही ठीक का लागे हैं एक तुम्हारे रंग के दिया झूठे लोगन में अपना लागे हैं मोरा जिया अपने ही रंग में हम को भी रंग लोग क्या सखी सहेली मेरी मोहि धमा वे सब धन मिली मिली लूट लिया सारी उमरेन संघ में गवाया अंतर ना कोई भी साथ दिया अपनी ही रंग में हमको तिरंग लोग क्या यह संसार स्वार्थ का लो भी स्वार्थ बस सब पूछे क्या मोहरे संगवा में सगी है वही नियां घर घर आग लगाई दिया अपने ही रंग में हम को भी रंग लोग दिया पर ऐसे रंग में मोहित तुम रंग दो सारी उमर न छोटे पिया खरी शक्कर ईद तुम को नहीं छोडे चाहे छोटे जगह सारा पिया अपने ही जंगल में हम को भी रंग लोग क्या

कविता 062

हूँ ऍम बदल देंगे हम जमा नहीं को संकल्प ऐसा करते हैं कभी विचार नहीं मरता है केवल शरीर मारते हैं मंजिलों वहीं पहुंचते हैं जो राहों में नहीं रुकते हैं बदल देंगे हम जमाने को संकल्प ऐसा करते हैं तभी रवि महावीर बुद्ध, नभ नानक तुलसी से सोरज ना कभी ढलते हैं, बदल देंगे हम जमाने को संकल्प ऐसा करते हैं दादू दरिया कमाल से नजीर गोरा श्रुति गोपाल से अस्थिर पद को कहते बदल देंगे हम जमाने को संकल्प ऐसा करते हैं रामकृष्णन गोरख भारत हरी पत्र तू गोपी नामदेव अनुमान अमर रहते हैं, बदल देंगे हम जमाने को संकल्प ऐसा करते हैं जो वो प्रहलाद ब्रिटिशन, शिवरी, रत्ना अनुसूया मेरा सहजो सादा चमकते हैं, बदल देंगे हम जमाने को संकल्प तो ऐसा करते हैं राम तीरथ परम हर सवेरे का आनंद काली गांधी भीम भारत की शान कहते हैं बदल देंगे हम जमाने को संकल्प ऐसा करते हैं पूरा ओशो रवींद्र अभी लास्ट दिल में रहते हैं चंद्रशेखर भगत सिंह न जवाहर स्कूल सकते हैं बदल देंगे हम जमाने को संकल्प ऐसा करते हैं विज्ञान साइंस भी खेल जहाँ होते हैं संत फकीर उस प्रभु की खबर रखते हैं बदल देंगे हम जमाने को संकल्प ऐसा करते हैं विदेशी आकर के सर को झुकाते फिरते उससे भारत पूरी दुनिया का गुरु कहते हैं बदल देंगे हम इस जमाने को संकल्प तो ऐसा करते हैं हरीश जमाना बस वही बदल सकते हैं जो सच पे चल नहीं को संकल्प नया करते हैं बदल देंगे हम जमाने को संकल्प ऐसा करते हैं ।

कविता 063

हूँ गवित तिरेसठ कैसे तुझमें मुझ में अंतर हो समझाए क्या वो मेरे नहीं हैं जान से दो जगह देखे भाई क्या वह मेरी श्रवण नहीं है जहाँ से तो सुनता भाई कैसे तुझमें मुझ में अंतर कहो समझाएँ क्या वो मेरे नासिक का नहीं है? जो गंध सुगंध बताई क्या वह मेरे मुख नहीं है? चार से तो खावे बोले भाई कैसे तुझमें मुझ में अंतर हूँ समझाएँ क्या वह मेरे हाथ नहीं है जो सब करें कराई क्या वह मेरे पे नहीं है जहाँ से तुम चलते भाई ऐसे तुझमें मुझ में अंतर हूँ समझाए जाही रह से हम सब ये सोई रा तुम आई पहले जनेऊ भ्रमण कहते सुन्नत कर मुस्लिम कहा कैसे तुझमें मुझ में अंतर हो समुझाए सर है हम भुजा है क्षत्री ते वेश्य है भाई । वेद पुराण उठाई के देखो पैर शुद्र कहा कैसे तुझमें मुझ में अंतर कपूर समझा यही अभिमान जो बहु न छोडी हो बडी हो चौरासी खाई कहत हरीश सत्र संगत कर लोग सब दुविधा मिट जाए कैसे तुझमें मुझ में अंतर का हो समझा है हूँ

कविता 064

हूँ कवित ऍम मन में मैं ही लिया अपार जो हुई साहेब के दीदार कहो कैसे हुई झूठ के पर्दा में सबके हो लोग घायल सात से के मर मर जाने कोई मन में मैं लिया अपार जो हुई साहेब के दीदार का हो कैसे हुई ये जगह मतलब के मतलब के सब कोई कर्म के संघीय बने ला ना ही कोई मन में मई लिया अपार जो हुई साहेब के दीदार हो कैसे हुई राग द्वेष भी सारे नहीं कोई काम क्रोध अग्नि में जरे सब कोई मन में मई लिया अपार जो हुई साहेब के दीदा हूँ कैसे हुई कहत हरीश कवि सोना सब कोई बिना सत्संग गुरु क्या नहीं ही हुई मन में मई लिया अपार जो हुई साहेब के दीदार का हो कैसे हुई

कविता 065

हूँ कवित पैसठ कैसे भावों में तो ही सद्गुरु जी जब मेरे कर मैं सब है खोते काम ना छोटे क्रुद्ध ना छोटे लोग मोह मिल लूटे अहंकार में हर्बल माते निजीकृत इच्छा नए नए फूटते कैसे भाऊ में तो ही सद्गुरु जी जब मेरे कर्म सब है खोते हर विषयों के बंधन में बंधे हैं क्यों कि बुद्धि के हैं बडे छोटे बहुत ही रिश्ते नाते बनाए सब अंत समय में छोटे कैसे भाऊ में तो ही सब गुरु जी जब मेरे कर मैं सब हैं खोते अब भी ये मान हर नाम आने खाई माया के बडे जोते जन्म जन्म से भरमाते आई एम राजाथ के दो ते कैसे भाव में दो ही सद्गुरु जी जब मेरे कर्म सब है खोते बहुत लोग मिले यही जगह में पर सब निकले झूठे हरीश कवि अब तुम को ना छोडे चाहे मोहमाया झगडा छूटे कैसे भाऊ में तो ही सद्गुरु जी जब मेरे कर्म सब हैं खोते

कविता 066

हूँ कवित छह हूँ मेरे सब गुरु दीनदयाल दया के सागर हैं जो सहज करें भवपार ऐसे ज्ञान के अगर है दूर करते अज्ञान अंधेरा ऐसे गुरुदेव उजागर है मेरे सद्गुरु दीन दयाल दया के सागर है जिनकी महिमा है अगम अपार जाने हर नागर है दया से बडा धर्म कोई ऐसी बात बताते हैं मेरे सद्गुरु तीन । दयाल दया के सागर है गुरु शब्द में हर पल रमना काम क्रोध मद लोग से बचना हरीश कभी मैं बाली बाली जाऊँ छल रहित हो जाते हैं मेरे सद्गुरु दीन दयाल दया के सागर है हूँ

कविता 067

ఓం with subset భక్త మెస్ ఆదేశం అమర కూలీలకే హే నా ముఖ పేరా నవ హ సూరజ్ నవ చంద నవ హ నవ్వుల కొడతారా రాత్రి దీనికి సుబుద్ధి బలహీన గురువు వచ్చేలా దేవ హార భక్త మయసభ దేశ హమారా తుది లకే నా ముఖ పేరా నవ బ్రహ్మ నవ విష్ణువు న శంకర్ సంఘర్షణ హార నవ హరాం నవ హ కృష్ణ నహీ దాసు అవతార భక్త మ్ వేసా దేశ హమారా కువి లక్ష్మి నా ముఖం ద్యార నవ జాతి తపతి ఆప హీ ఆపు విచార నవ హా వేద కురాన్ కి బాతి పూజా నమాజ్ ఆచార భక్త మ్ యస్ ఆదేశ హమారా కూలీలకే నామక పేరా నవ హ జోగి జంగం సేవ డ నా పేరు only మజా రా దేవి దేవత పారణ పావే yes సగం అపార భక్త మ్ వేసా దేశ హమారా కూలీలకే నా ముఖ ప్యార్ నవ హా బౌద్ధ నవ హ జయ నిన్న పనంత యే తేరా హమారా నవ హ మందిర్ నవ హమ్మ సుజిత్ అప హీ ఆపు నివార కరీ షక్ కవి అంతర గతి సూచ యేతర హీ హో భవ పారా మొత్తం వయసా దేశ హమారా భూదేవి లక్ష్మీ హే నా ముఖం పేరా అవునండి

कविता 068

हूँ ऍम बहुत जमाने के बाद हम तुम से मिल पाए हैं खुद के कर्मों को देखा तो बहुत घबराए खुद के कृष्णा के कारण बहुत ही दुख पाये हैं बहुत सामान्य के बाद हम तुम से मिल पाए हैं हुई है मन में गला नहीं तभी हम रुक पाए हैं अब भी मन हार न मानने माया में और चाय हैं बहुत जमाने के बाद हम तुम से मिल पाए हैं झूठ का पर्दा पडा था मेरी निगाहों पर भ्रम के कारण हम चौरासी में घूम आए हैं । बहुत जमाने के बाद तुम से मिल पाए हैं मिले जब खुद से तो ऐसा लगा मेरे मन में कितनी अज्ञानता थी मन में सोच कर घबराए हैं बहुत जमाने के बाद हम तुम से मिल पाए हैं जिनको अपना सादा से दिल मानता आया वहीं बेटा ने से बनकर नजर में आए हैं । बहुत जमाने के बाद हम तुम से मिल पाए हैं काम क्रोध से ही उपजे लोग मोह तो जाए हैं अहंकार में हम पढ के सब कुछ होते आए हैं । बहुत जमाने के बाद हम तुम से मिल पाए हैं छोडो ये रात ये देश क्यों जगह में भ्रम आएँ हो मिलो हर कोई यारो खुद से हरीश यही संदेश हम लाए हैं । बहुत जमाने के बाद हम तुम से मिल पाए हैं हूँ

कविता 069

कभी त् उनहत्तर मिल नहीं सकती तृप्ति है तृष्णाओं से फंस गया जी अपनी कामनाओं उसे शांति मिलती नहीं है झूठी वासनाओं से मिल नहीं सकती तृप्ति है तृष्णाओं उसे मिलती मंजिल नहीं है मोहमाया में कहीं से ढूंढ लो सुख शांति, भजन और इबादत से मिल नहीं सकती वृत्ति है तृष्णाओं से घर में सोई गिरी जाके ढूंढते बाहर में क्या मिलेगी वह सुई कभी भी हो रहा है, ऐसे मिलने नहीं सकती । तृप्ति है दृष्टियाॅ से जन्म मरण लिमिटेड ना तीव्रत हज दान से हरीश सच्ची कह रहा हूँ निजी आत्मज्ञान से मिल नहीं सकती । तृप्ति हैं तृष्णाओं से

कविता 070

कवित सत्तर साहे कबीर सवरियां मेरे मेरी सूरत कहीं सिवा तेरे जगह मैं रिश्ते हैं न से घनेरे मेरा कोई भयानक सिवा आते थे वो टी जन्म से भटकते आए भैया ज्ञान ना है मेरे साहे कवीर सवरियां मेरे मेरी सूरत कहीं न सिवा तेरे काम क्रोध लोग वो घेरे अहम का दुख देवे घनेरे कहने को सब कहीं हम तेरे हम ने देखा सब स्वास्थ्य के फेरे साहे कवीर सवरियां मेरे मेरी सूरत नहीं सेवा दे रहे मन में उठे तृष्णाएं घनेरे जिसकारण खाये चौरासी तेरे रागद्वेष शेरशाह मन मेरे तब वहीं आए हम शरण में तेरे साहे कवीर सवरियां मेरे मेरी सूरत कहीं सेवा तेरे मन हर पल विषयों के फेरे कभी ध्यान में करण चाहे तेरे अब हरीश कभी न तुमको छोडे जगमाता याद साढे छोटे घनेरे साहेब कवीर सफर या मेरे मेरी सूरत कहीं सेवा तेरे

कविता 071

कवित्व एक हत्या सबसे कबीर का ना रहा है हम भक्तों का सहारा है जिनकी महिमा अगम अपार जाने सब संसारा है या प्रेम हिंसा भक्ति अमृत ज्ञान की धारा है सत्य कबीर का नारा है हम भक्तों का सहारा है जहाँ दया वहाँ धर्म है भाई कहते पुकार पुकार रहा है खेल संतोष से बडा धनी ना ऐसा अगम विचार है सत्य कबीर का नारा है हम भक्तों का सहारा है ना कोई हिंदू ना कोई मुस्लिम ना कोई सिख ईसाई है, रहे निर्भय सब जीवों से तो हमें सबसे प्यारा है सत्य कबीर का नारा है हम भत्तों का सहारा है सर को काट जो पंद्रह तारे धारे सोई जीवन हमारा है राग द्वेष शेरशाह को त्यागे तब वही हो भाव पा रहा है सत्य कबीर का नारा है हम भत्तों का सहारा है जैसे बीज में वृक्ष छुपा है सी से अगम अपादा है ते से आत्मा से परमात्मा सिद्धांत ये अटल हमारा है, सबसे कबीर का नारा है हम भक्तों का सहारा है, सब ग्रंथों का सार है बीजक कहता हरीश पुकारा है जब मैं किसी का पक्ष न राखा सांसी बात कहे दारा है सत्य कबीर का ना आ रहा है हम भक्तों का सहारा है

कविता 072

कवित्व बहत्तर कोई पक्ष न कर ये भाई ये सबसे बडी बुराई पक्ष विपक्ष में जो तुम पडी हो तो निर्णय हो पाई अपना अपना पक्ष खराब कर कोटी पंथ बनाई कोई पक्ष न कर ये भाई ये सबसे बडी बुराई जाती पाती पक्ष के कारण करते सब ही लडाई अपना पराया जो ना समझे सोई भक्त का हाई कोई फक्शन करिए भाई ये सबसे बडी बुराई ना कोई हिंदू ना कोई मुस्लिम ना कोई सिख ईसाई सत्य दया बिन सब जगह भूल्ला पढा चौरासी खाई कोई पक्ष न कर ये भाई ये सबसे बडी बुराई कोई सुदर्शन चक्र चलावे कोई तीर कमान चलाई कोई गडा सी धरसा चलावे कोई त्रिशूल चलाई कोई पक्ष न कर ये भाई ये सबसे बडी लडाई कोई बंदूक कोई तो चलावे कोई तलवार चलाई फिरेंगे रावण सक्षम में मर गए दुर्योधन कंस एना साई कोई पक्ष न कर ये भाई ये सबसे बडी बुराई निरूप पक्षी की भक्ति है जगह मैं निर्द्वंद्व जी ज्ञानी का हाई निर्भय री की मुक्ति है भैया निर्लोभी निर्माण का हाई कोई पक्ष न कर ये भाई ये सबसे बडी बुराई पक्ष नहीं हिन्दू मुस्लिम बनाया बनाया सिख ईसाई रामायण, महाभारत कराया जब मैं कोटि लडाई कोई पक्ष न करी हैं भाई ये सबसे बडी बुराई एक पक्ष के कारण देखो सब बैठे कसाई मेरे तेरे पक्ष के कारण देश दिया बट दवाई कोई पक्ष न कर ये भाई ये सबसे बडी बुराई कहत हरीश जो पक्ष अनराग हैं सद्गुरु सोई का हाई पक्ष में सब वही जीव दुखी हैं घर घर होती लडाई कोई पक्ष न कर ये भाई ये सबसे बडी बुराई

कविता 073

कवित्व तिहत्तर हमारा सत्य कबीर का नारा करते सब की और इशारा भाषा नहीं ईश्वर बन सकता कहते सबसे पुकारा अपनी अपनी भाषा के पक्ष में करें झगडे जब सारा हमारा सत्य कबीर का नारा करते सत्र की और इशारा नहीं हिंदी नहीं भोजपुरी न भाषा से मिले करता नहीं उर्दू नहीं नहीं अंग्रेजी न संस्कृत पंजाबी यारा हमारा सत्य कबीर का नारा करते सब की और इशारा नहीं गुजराती नहीं मराठी बंगाली, नेपाली के पारा नहीं मिले मंदिर नहीं मिले । मस्जिद नहीं गिरजा गुरुद्वारा हमारा सत्य कबीर का नारा करते सच की और इशारा । मोहम्मद पंडित, मुल्ला काजी सबसे ऊंचा विचार जब मैं किसी का पक्ष न राखा सांसी बात कह डारा हमारा सत्य कबीर का नारा करते सच की और इशारा । राजनेता, अधिकारी हर जी वद्ध पे लगाऊ धारा जज, वकील, नेता, सिपाही, घूसखोरों से करो दोबारा हमारा सत्य कबीर का नारा करते सच की और इशारा भारत की गरिमा रहे कायम इसलिए ये दिया विचारा कहता हरीश पुकार पुकार केवल हो सबसे प्यारा हमारा सत्य कबीर का नारा करते सच की और इशारा

कविता 074

క విత్ జాగ్రత్త సుభ e భక్తికి మహిమ మహాన్ జా నే హక్కు సంత సుజా ని పాంచ్ విషయమే జీవి ఫలానా అలియా నా గురువు షేక్ యాన్ దయా ధర్మ క మరో మన జాన మోహం ఆయా కంస సులువు by భక్తికి మహిమ మహా జాన్ హి సంత్ సుజనా మాను బడాయి రాగ్ ద్వేషమే సభ హీ జీవ రంజాన్ సంత జనులకి బాత్ ఐన మాన పడ చౌ రాశికి ఖాన్ సో నో హై భక్తికి మహిమ మహాను జాన్ హే పోయి సంత సుజా నా మహాను తోటకి దేఖ లు గీత అవి పురాణం ధ్రువ ప్రహ్లాద విభీషన్ శే వరి మీరా స్వపక్ష భర్త ప్రమాణం. సులుభం భక్తికి మహిమ మహాను జాన్ hair ఎక్కువ సంత సుజా సాహెబ్ ఇక వీరు గాయ భక్తికి మహిమా బీజ కి సఖి ప్రమాణం హరీష్ కవి గోపాల్ దయా సి mit job అవ్వని జాన్ solo high భక్తికి మహిమ మహా జాన్ హే సంత్ సుజా

कविता 075

कभी त् छत्तर कर्म वह के भागी तो हर हुई है ना ही के हो बडा जीव दुख आई के रख ला जमीन रुपये या जो भी हो ये है धन संपत्ति एक दिन तो हार का कोई वो कर्मो वास्के भागी सोहार हुई हैं ना ही के हो राणा से तैयारी जवन नारी तो हर बार जैसे ही या बाली घटी है हूँ दूसरे के कोई हो कर रमवा के भागी तोहार हुई हैं नही की हो जवन बेटा बेटी से तो नहीं लगा वल्ला मुझे अपने स्वार्थ कारण तो हर बेहरी हुई हो कैरम वहाँ के भागी तो हर कोई है नहीं के हो काम क्रोध ढही दही के झकझोरती हैं लोग मोह अहंकार सौ चौरासी ले के जायेंगे हो कर्म वहाँ के भागी तोहार हुई है नही के हो तहत हरीश इत कभी सुना सब कोई हो बिना असमय ज्ञान गुरु के तरह ही कोई हो कर्म वहाँ के भागी तो हर कोई है नही हूँ

कविता 076

కవిత్వం చిత్త చలు by సాహెబ్ కి ధర వార్ హూ జాయిన్ బ్రహ్మ సభ వద్దు కాము వృద్ధులు లోపు మోహ వు జై చక్క నచ్ ఊర్లో మాన్ బడాయి రాగ ద్వేష గురు గాన సే హో జై దూర్ అసలు high సాహెబ్ కి ఇద్దరు బార్ పూజా యుద్ధం స బూతు మిటు జాయ్ విజ్ఞాన్ తీరా జబ్బు జ్ఞానం ఉత్త సూరత్ ఇంగ్ లా పింగళ సుఖమైన మిల్లి జబ్బు బాజీ అన్న హద్దు తూర్పు చలు high సాహెబ్ కీ దర్బార్ పూజా ఇబ్రహీం సబ్ వద్దు ఉండు ముని స హే జయ సమాధి లాగే కాలు భాగ్ e బడి దూర్ హరీష్ కవి గురుదేవ దయా సే మాయా బని చరణ్ కే దూర్ చలో భై సాహెబ్ కి దర్బార్ పూజ బ్రహ్మ సభ వద్దు

कविता 077

okay కవిత్వం సత్తార్ కాడే మన తు కరే చతుర్ ఆయి మార ల జై బా మాయా మీ బాబు రాయి j hit జగత్ జయహో చౌ రాసి ఖై హేమంత్ ఉ కరీం చ తురాయి మారుమూల జై బా మాయా మే బాబు రాయి సూపర్ సే స స వర్క్ ఫిరత్ ఓహో ఇతర దయ కః ఏమన తుర్క రి చ తురాయి మార్లు దైవ మాయ మే బాబు రాయి లాక్ కరుడు మన చాల చల్ లతో హూ మీకోక మున్న అయ్యి కర్ సత సంగతి గురుకి దయా సే big ఐడి తోబై నచ్చాయి ఇంక హేమంత్ ఉ కర్రీ చ్చ తురాయి మార ల జై బా మాయ మేము పావురాయి హరీష్ కవి జగన్ భాష చూడు రాహు నామంలో లై సంతకి సంగతులు గురుకి దయా సే ఆవ గమన నన్న సాయి కః ఏమన్న తుర్క రే ఛ తురాయి మారలే జ ఐబక్ మాయా మీ బాబు రాయి

कविता 078

okay క విత్ అట అత్తర్ భజన pass ప్రేమ భావ కి చూడే మాయకి ఆ sir భజన మేము మగ నరః జగత్ గురు సముద్ర దర్శి బన్నీ జగమే దూలి తోడుకి తృష్ణ త్రాసు భజనే మగ జగత్ సే కాము కృత్ మొదలు బుక్కు త్యాగి అహ car ఉన్న హి హాస్ మాన్ బడాయి నీ కట్టుకున్న అవే రాఘ ద్వేషం మిట్ట జాతి భజనే మగ నరః ఈ కో e దాస్ జగత్ సే కీర్తన హే ఉ దాస్ సద్గురు తయా సంత నికి సంగతి కాలు దగ్గ మిట్ట జాతి హరి శక వి గోపాల్ దయా సే మగ నరః భజన సే జగత్

कविता 079

okay ఒక విత్తు ఉన్నాయా? సి ప్రేమగా కామ క్రోధ లోభ మోహ అహంకారం సంగ సంగం ద్వేష సే ప్రేమ అమ్మగారిని పోయి నాచు మరి మనం train మగని హోయి! నచ్చ ఊరి రూప రస శబ్ధ గంధ స్పర్ష విషయమే! నభూతో ఊరే చూడు! మేరీ! మన జగ కి యాస సాహిబ్ విచారణ మీ లాగ్ ఊరి ప్రేమ మగ నువ్వు పోయి నాచు మరి మనం ప్రేమ మగ నువ్వే నచ్ ఊరే cure రహిత జత ఛలో కోరిక పట్టుకో మాను బడాయి చదవు రే హరీష్ కవి అవసరం ఛ అబ్బ హు సేతు జగ హుమ్ రే ప్రేమ

कविता 080

हूँ कवित्व अस्सी प्रेम नगर या जाना है साहेब मगन हो जाना है तजकर लोग इलाज मर्यादा भक्ति अब है पद पाना है जाति पाति ऊंच नीच का भेद ये दिल से हटाना है प्रेम नगर या जाना है साढे मगन हो जाना है काम क्रोध, लोभ, मोह अहंकार को मिटाना है मान बडाई राग द्वेष, शेरशाह को तजकर जाना है प्रेम नगर या जाना है साहेब मगन हो जाना है हिन्दू मुस्लिम सिख, ईसाई सब नी झगडा ठाना है तजकर यारो, बेर, भावना, समता भाव जगाना है प्रेम नगर या जाना है साहेब मगन हो जाना है । सत्य दया और आत्म पूजा से बढकर नहीं खा जाना है । हरीश एक कवी सद्गुरु की दया से आवाज गवन मिटाना है ब्रेन नगर या जाना है साहे मदन हो जाना है हाँ,

कविता 081

हूँ कभी त् इक्यासी सच्ची रे प्रेमी हो ये सो जाने सखी रे प्रेमी हो ये सोचा नहीं क्या जाने वो निपट अनाडी जो माया में और रिझानी भाव भक्ति का मार मन ना जाने चलते हैं सीना ताने सखी रे प्रेमी होई सो जाने सखी रे प्रेमी कोई सो जाने टन धान पे अभिमान करें सब माया हाथ विकास नहीं सत्य दया को दिल्ली में न धारे पडे हैं चौरासी के बने सखी रे प्रेमी होई सो जा नहीं सकते मेरे प्रेमी कोई सो जाने राग द्वेष जाहीन चित्र नही पांच विषय बिसराने हरीश कभी में सात सौ का है तो हूँ शब्द में सूरत समान्य सखी रे प्रेमी होई सोजा ने सखी रे प्रेमी होई सो जाने

कविता 082

हूँ कवित बयासी प्रेम का घर बनाना है ऐसा नहीं है कभी रिकार्ड घर खाला का घर नहीं सर को पकड तार धरे घर में जाता वही काम क्रोध मद लोग विषय छोडे सभी प्रेम का घर बनाना है ऐसा नहीं अहंकार नरा उद्वेश्य राखे कहीं सत्य की राह चलना ये आसान नहीं प्रेम का घर बनाना है ऐसा नहीं मित्र वैरी न जिसका वो बेरला जगह में कहीं ये कवि री अलग जगह ऐसा नहीं प्रेम का घर बनाना है ऐसा नहीं शील संतोष की खान बनाते वहीं दया समता को जो नहीं छोडे कहीं प्रेम का घर बनाना आसान नहीं कहता । हरीश कवि सुनो जी, सभी जन्म मरण से मुक्ति ये ऐसा नहीं प्रेम का घर बनाना आसान नहीं ।

कविता 083

हूँ कवित तेरासी छोड जगत कि आशा मेरे मन छोड जगत कि आशा यही जगत की आस जो करी हो तो बडी हो काल के फांसा अब भी सोच विचार करो मन चित्त चेत के डारो पासा छोड जगत कि आशा मेरे मन छोड जगत कि आशा चौरासी में जाके रामी हूँ माया के बंदा सा पांच विषय की जाल बिछाए सब ही जीत करे ग्रासा छोड जगत कि आसान मेरे मन छोड जगत कि या शाम माँ पिता सुन तो कुटुंब कबीला सब स्वार्थ के नाता बिना भजन कोई काम मन आई हैं मानो हमारी बातें छोड जगत कि आशा मेरे मन छोड जगत कि आशा करसत संघ गुरु की दया से मिट जाए कृष्णा त्रासा हरीश कभी विचार के देखो कटी हैं कर्म के फांसा छोड जगत कि आशा मेरे मन छोड जगत कि आशा

कविता 084

हूँ कवित्व चौरासी मेरे मन हुआ क्यों तो भोला फेरे हैं स्वार्थ के संघीय बने हैं कर्म का संघीय न कोई बने हैं कहे मन्टू सहित करें ना अंत सभी बिस रहे हैं मेरे मनवा क्यों तो भोला फिरे हैं जिन लोगों उनसे नए हक करें तो सोई कपट कर रहे हैं यहाँ पर न तेरा संघी है कोई झूठे मोहक कर रहे हैं मेरे मंडुवा क्यों तो भोला फिर रहे हैं क्यों न छोडे आज जगत की जहाज से बिगडी बने हैं चार दिनों का मिलना है जगह का फिर मिलकर बिछडे हैं मेरे मनोहरा क्यों तू भूला फिरते हैं सत्संग संतों की सेवा जहाँ से जीव कर रहे हैं हरीश कभी जो अवसर वीता फिर वापस मिले हैं मेरे मनवा क्यों तो धोला फिर रहे हैं

कविता 085

okay ఒక విత్ పిచ్చ రాసి గర్ బుర్రకు చల్లగా తో క్షమా ఆఖరిదైన మే అజ్ఞాని అన్నప్పుడు మూడు రక్ష బడ ఆతా కుచ్చు ధీమహి బుద్ధి ఘన కేకయ మేము బహుత్ కుర్చోరు benefits ఉన్నాయి దిగరు బుర్ర కుచ్చుల గా తో క్షమా కర్తయైన న హే అతనా పోయి ఉన్న పర్ ఆయా మేరా పక్ష కర్ణ సక తో క్షమా కర దేన కేకయ ఆమె బహుత్ కుర్చుబెట్టి హోస్ మీ గారు బుర్ర హక్కు చల్లగా తో క్షమా కర్తయైన నీ నీ సూరత్ అబ్బో ముఖ్యమే హి కోనే లాగి సత్య తాకే లి పో చలమయ్య తన అబ్బు హరీష్ తయారు చలన బంధువా తిసి సేన

कविता 086

कवित छियासी मेरे मन मुसाफिर तो संभव जरा क्यों मोहन के नींद में तू होता है ये झूठी माया के फेरे में पढकर क्यों अपना आपा तो होता है आइए मेरे मन मुसाफिर तो संभाल द्वारा क्यों मोहक की नींद नहीं होता है देख मुडकर दूसरा इस जगत को हर कोई किस तरह से रोता है आई मेरे मन मुसाफिर तो संभव जरा तो मोहंती नींद नहीं होता है यहाँ कोई तेरह संगीत है साथ ही यहाँ स्वास्थ का जगह नाता है । आई मेरे मन मुसाफिर तो सफल जा रहा हूँ क्यों मोह की नींद में तो उस होता है काम, क्रोध, मद, लोभ, अन्ना छोटे हैं अहम का बहुत दुःख देता है । आइए मेरे मन मुसाफिर तो उस समय जरा क्यों मोहद की नींद में तो होता है देख लो मेरे मन करीब से जगत को यम कैसे मझदार में नहीं डुबोता है मेरे मन मुसाफिर तो संभाल जरा क्यों मोहक की नींद में तो उस होता है हरीश कभी वो मुक्ति न पावे जो नर नारी न पहले से देता है आई मेरे मन मुसाफिर तो संभाल सारा क्यों मोह की नींद में तो होता है

कविता 087

క విత్ సత్తా రాసి సున్న సున్న హద్దు వాణ్ణి కాయ మేరి, అల్లసాని తాత పాము సబ్బు బంగులు హో గై సుబుద్ధి సభ హిహిహి రాణి విషయ అధికార సబ్బు చుట్టని లాగి శబ్దమే సూరత్ సమా ని sony food అన్న హద్దు వాణ్ణి ఏక కాయ మేరి అల్లసాని మన ఇంద్రియ కి ఇచ్చ లేనా? సహజ సహీ జుట్టు మహరాణి కామ క్రోధ మద, లోభ చుట్టే అహంకారం బిస్ రాణి సున్నా సున్నా అన్న హద్దు వాణ్ణి ఏక కాయ మేరి, అల్లసాని పోయిని శంకు మగ హోలీ సమృద్ధిగా పోయి గాని హరే ష కవి సద్గురు కి దయా సే మెట్టు జాబే అవన్నీ జానీ సున్ సున్ అన్న హద్దు వాణి కాయ మేరి అల్లసాని

कविता 088

கவித்து கட்ட காசி முழுசா பிருச்சு செல்லா நேத்ரா. காம் ருக் மன்த் ஜான்னா பிஜ்னஸ் கரிம சூடு தேசபக்தி ஆச முழுசா பேரு கரு பக்தி நிஷ்காம மத்த தூக்க கர்ணா மோக சக திசை சங்கன் ஜான் சொன்னாக்கேளு தேர் ஆக்கா சூட்டி ஹய்ஜன் ஹேஹேஹேஹே சந்துச்சு ஜான் ஜி க்கோ ஸ்பிகழ் பென்ஜமன் ஸில்கி தஞ்சை த்தி விஷயத்தை மாம் முழுசா லாபிர் செல்லாதே தேர் ஆக்காம ஜூன் படத்தே முகம் ஆய மேக ரே மாயா சே சங்கிராம கரிச கவி ஜோ சந்ததி விவேகி தென்கோடி பிரானாம் முழுசா பேரு செல்லம் தெரியல அக்கா.

कविता 089

कवित नवासी चल भाई चोरवाड बाबा फर्क पर नहीं उतार की जागल रही या भाई कहीं कोई मतलब नहीं । हाँ रक्षा खूब पन सूरत या संभाल के चल भाई छोर बाबा पर पर नहीं होता कि बनने के खूब हित आपन अनहित करीब डाला पुतले में लेह उजाला कुल गहन हवा उतार के चैनल भाई जो रवा मा पद गुप्ता नहीं उतार की जन्म के संगीत सोरवा संघ ही में रहे नहीं रही या बता बेला ही जीवन के उबर के चल भाई जो रवा बाबा पर गुप्ता नहीं उठा रखी सुर नर मुनि के बहुत नाथ सुनना चाहते मिला ली के कटारी मारे चौरासी धार के चल भाई छोर वाबा पद पर नहीं उतार के हरीश एक कवि गोपाल चोरवाड के मर्लन शब्द के बीच में सुरतिया के दायरे के चैनल ढाई चोर वाबा अब पर नहीं ताज की

कविता 090

अजित नाम गुले गुलजार ये कवीर के दो फूल खेले हैं इससे बिखर ने न देना जो आपस में मिले हैं जान एकता के यही से जहाँ को संदेश मिले हैं ये धरती जैसी है कहाँ धरती कहीं पे ताज तो कहीं से लाल किले हैं चाहे पूजा करो या करो इबादत यहाँ पर दूर होते हर एक जिले हैं मगहर जैसी मैं सिल न है कहीं की महफिल महफिलें तो लगती हरीश हरेक फॅमिली है गुले गुलजार ये कबीर के दो फूल खिले हैं ।

कविता 091

हूँ धावित क्या नवें काहे खातिर भाई तो होगी बन गई ला दडिया बढाई महिला जब तो वह बढाई लिहाला गांजा डरो भांग तंबाकू कपडा रंगलीला का ही खाते हैं भाई तो जोगी बन गई ला पर धन्यवाद के आस छोडी नहीं पहिला पर क्रिया के संगे नेहिया लगाई ला चाहे खातिर भाई तो जोगी बन गई ला डीर कमान त्रिशूल बंदूके चल रही ला धरसा तलवार से घाई जाग के कई ला काहे खाते भाई तो होंगी बन गई ला धनसंपत्ति के बहुत कृष्णा बढी लाख खरी शर्मा या पीछे ढाई सौ चौरासी महिला कहे खाते हैं भाई तो जो भी बन गयी ला

कविता 092

हूँ कभी त् बांधते व्यवहार जगत का झूठा है हर कोई हर एक से रूठा है मोहन के बस सब अपना बन के एक दो बजे को लोटा है मार्टी का जो बर्तन भाई एक धोकर से फूटा है उस माया को तकनीक को कहते जो हर एक बाल छोटा है काम क्रोध लोग मोहन छोटे अहंकार टूटा है सब तो महंत आचार्य को देखा सब वही जगत को लूटा है हरीश कभी आपने मैं समाया जो नहीं झूठा रूठा है व्यवहार जगत का झूठा है हर कोई हर एक से रूठा है हूँ

कविता 093

okay కవి ఎత్తు త్ర రానిదే సత్ సంగతులు మైన తరహానే కి రహి ప్రధా మిర దేశి కి జ హా జన్మ మేక వీర రవి సూరత్ తులసీ ల వలే ష కి రామకృష్ణ బుద్ధ మహావీర్ సమతా సబ్ ఈమే ఏక కి సత్ సంగతి మే నిద్ర రోహిణికి రహీమ్ ప్రథ మెడ దేష్ కి దాదులు దర్యాప్తు పల్లెటూర్ దుల బాబు గోరా నాన్నకు సేన కి శృతి గోపాల్ నాభ్ ఆక మాల సత్యం మేక కి సత్త సంగతి ఆమె ఎన్ని తిరగనీకి రహీమ్ ప్రథ ఆమె రితేష్ అనసూయ రత్న మీరా సహజ జోరు లోయి కమలి take కి గాంధీ భీమా ఓషో రజనీష్ వివేకానందుడు బేకర్ కి సత్త సంగతి మెన్న తిరగనీకి రహీమ్ ప్రథమ వేరే దేశం కి పట్టుకెళ్ళి వేయకు రాహు అధికారానికి ప్రధా మేరే దేశ కి అయ్యిన earn ఆర్ యు నో అప మానక రోడ్ భారత్ దేశ కి సత్త సంగతులు నేన్ నిద్ర రోహిణికి రహీమ్ ప్రథ మిరే దేశ కి దీర్ఘం విదేశీ బీ ఆకర్ కే పన్ ఐతే bake మేరి దేశ కి తు ముఖ్యం దారే పెడితే రోజు లార్జ్ hemorrhage దేశ కి సత్ సంగతి మేం ఎన్ని ద్రోహానికి రహీమ్ ప్రథమ మెరుగు దేశ కి తహతహ హరి శక వి విచార క్యా వి దశ మెరీ దేశ కి కృష్ణ కే కారణం భూమి నిల్ల ఉజ్జయి గరిమా మేరే దేశ కి సత్ సంగతి మే. నిత్య రోహిణికి రహీమ్ ప్రథమ మేరే దేశ కి okay okay

कविता 094

हूँ कवित चौराहा नहीं ज्योत जलाऊं आग की तो बार बार मुझे जाता है गुरु ज्ञान की जोत जली है काल बुझा नहीं पाता है मान मक्का दिल द्वारिका बनी है का या काशी बनाया है गुरु ज्ञान की जोत जली है सब अंधियारा मिटाया है काम क्रोध लोग वो अहंकार को मिटाया है जो तो चलाऊं आग की तो बार बार बच जाता है गुरु गोपाल दया के सागर आवा गमन नशा आया है जब चाहूँ तब खोलो दरवाजा हरीदर्शन मिल जाता है लिखी लिखाई बात कहूँ ना आज मैं अनुभव कहता हूँ जोत जलाऊं आग की तो बार बार मुझे जाता हूँ गंगा यमुना मिलने सरस्वती दो नए नौ बीस शून्य महल है वहीं पर हरीश खूब नहीं हूँ मन की मैं भूल जाता है ज्योत जलाऊं आग की तो बार बार कुछ चाहता है हूँ

कविता 095

हूँ कवित पिचाड दें अनारी बनकर जीने का अंदाज है निराला ना कोई ऊंचा रहे नहीं कोई नीचा नहीं कोई भेद रहे गोरा और काला अनाडी बनकर जीने का अंदाज है निराला नहीं कोई मेरा तेरा का रहे झगडा नहीं कोई निर्धन नहीं धन वाला कोई कोई या नानी बाल जगह में फिर नहीं वाला विषयों की धाराओं को मूड देने वाला अनाडी बनकर जीने का अंदाज है निराला थरी से ये अनाडीपन ही छोटे चाहे टूट जाए सारी विषयों की माला अनाडी बनकर जीने का अंदाज है निराला ।

कविता 096

कथित छियान हुई मानुश बना शैतान तो भगवान क्या करें जब पहुंच गया शमशान तो गुरु ज्ञान क्या करें बडे बडे हैं भात के तो अनजान क्या करें कुकर्मी बन के फिरते हैं न सात सौ से डरें मानुष बना शैतान तो भगवान क्या करें आंकडे अकडे जो चलते हैं वो नहीं कि क्या करें जो करते सब की सेवा वह ने की संजू धरे मानुष बना शैतान तो भगवान क्या करें जो जैसी खेती करता वहीं काटकर धरे हरीश कभी है साझा तो झूठ क्यों से क्या डरे मानस बना ऍम तो भगवान क्या करें?

कविता 097

கவித்து சத்தியானு வெய் கருதுவர் யா ப நாவல் பேர் காழ் புகையில் பட்டபாடு சப்ப நா. கே. மண் மேச ஜவுளி காடி ட்வ் சுந்தர் பங்கலா பன்னாமலே சோரி ஃபை மா நீ க ருக்கே தன் அவா கமலி டேய் ரத்தன் அவா அமர் ஏ ஜீவராக்கி காலு கோவையில் கரு தூரி அப்ப நாவல் கார கோவில் மை பாக்கே சேவா என்ன கைல மெரி கேக்கலே பே அலகு ஹோ கைலி பேட்டா பேட்டிக்கு மோகமே படிக்கு அம் ஆறு பந்தர் ஜெய்சன் கால கோவையில் கர்த்து வரியா ப நாவல் பீகார் புகையில் ஜெயிக்க ரே காத்~ தேர் அம் மரி மரி கேக்க மைல் இ~ மண்ணு வா மாரி மாரி மனுஷா புற வள்ளி அய்ல் கூட அப்பா ஹெய் லொவ்கொவ் வா என்ன பூ செயலா ஏக லோட் டா பாணி தூசு வார கோவையில் கருத்து வரியா ப நாவல் கார கோகை ஹரீஷ் கவி க்கே சாட்சி சொன்னா பத்தியா சு வாரத்துக்கே லோக வா மித்த யாரு ஹொவ் கையில் பட்டே பாகு சே சந்த ஜனம் மிலன் சூட்டல் நையா அவருக்கே பாரு புகையில் கருத்து வரியா ப நாவல் டேய் காழ் போகையில்

कविता 098

कवित्व अटठानवे लागी है रेमो री सखी टिया से लगुनिया छमछम करें नहीं तो मोदी ते जनि दी रह की अग्नि में जा रहे हैं बदलियां निकलना ही लागे झूठे जगह की चलनिया लागे है रेमो री सखी पिया से लगा लिया दिन ही चेंज मोहि लीन रैलियां बिन चंदा के हैं चमके चंद्र नियां लागे हैं रेमो री सखी पिया से लगा दिया रेम फ्री की ओर चुनरिया ठंड ठंड करे दोनों हाथों की कंगन इय लाजी है रे मोरी सखी टिया से लगा लिया हरी से कभी पिया मिले अबिनासी फिर ही हुई है जगह आवारे कंपनियाँ लागी है रे मोदी सखी पिया से लगा लिया

कविता 099

कवित्व अन्यान्य आयो रे में जोगी अलबेला जोगी मेरा नाम है गली गली और नगर में नाम मेरा बदनाम है जहाँ जाना ताह अलग जगह ना यार ओह यही मेरा काम है प्रेम नगर में घर है मेरा घर मेरा गुमनाम है अलग कवीर जादी फकीरी पायों पद निर्वान है आइयो रे में जोगी अलबेला जोगी मेरा नाम है एक दो का झगडा नहीं सबसे प्रेम सामान है हरीश अब कभी माॅस् हो फिरता दुनिया से अनजान है आयो रे में जोगी अन्य वेला जोगी मेरा नाम है

कविता 100

కవిత్వం సౌల్ కలిపే మానే నహీ బడా హోనా దాన్ని బా జిజియా కేస్ వాదే మానవు బంధాల్ని దేవా నువ్వా బక్రీద్ మురిగి బేడి సూర్ వర్కే మారేలా లాక్కో మచ్చ రి పంచ్ దీనికి భరత్ నిత్తు ప్రాణి బా కేరళ లేపే మానే నహీ బహు నానా నువ్వా స్వర్గసీమ సుందర్ దేహీ య బాబాయి దీర్ఘ అప్పు నే పేట వరకే బంధువులే శేషం సా నువ్వా కలిపే మనే నహి బహు నాతో నువ్వా ముద్దు జిల్లా మూర బహుళ కేతన హ నువ్వా అశోక్ భీమా రికి వంతు వేరేలా కణ్వ కలిపే మనే నహి బహు న దాన బ భాగంగా అత్త మాకు ష రావు! కేప్ ఈల భూమి భూమి జరగవ్ ఆమె curry ఘోషా నువ్వా కలిపే మని నహి బడ హోనా దానవ హరీష్ శక విపరీత పీడ జీవులు జలస్ ఆ chicken హీ ఊరే సంత సుజా నువ్వా కలిపే మని నహి బరా హోనా దాన్ నువ్వా

कविता 101

கவித்து எக்ஸ் ஶ்ஒவ் எக் மாட்டி மே மில்லி விஜய் இயக்கத்தின் குலுக்குமான பாபுவா காக்கே செட்டேல் ஆ தூண் ஆகி அஞ்சான் நம்ப புவா அக்கா அடுச்ச லீலா ஜவ ன் சின்னவா கே தான் பாபுவா பாக்காமே ஐயே நாய் கூரே தன் சாம பாபுவா மாட்டி மெய் விஜய் குமார், மாத்த பிதா சுத்து பந்து திரியா சங்க கார்த்தி பாபுவா வித்து மித்த சக ரோ பனி ஜெய் கார்த்தி பாபுவா மாட்டி மில்லி, ஜெய் இயக்கத்தின் குள் குமார் நம்ப பூவா கரகத்த ஹரி சக வி விசார் ஓ பாபுவா சங்கே ஜெய் நகி தூக்க ரே தனி ஹாம பாபுவா மாட்டி மெய் மிலி ஜெனியை ஏக த்தின் கொள்ளுமா நம்புவா?

कविता 102

कवित्त एक सौ दो पास कर्नर सुन्दर तन को क्यों खडा खडा फिरता है जैसी करनी तू हैं करता वैसी भरनी भरता है खोलते कर्मों की गठरी बांधे इस दुनिया में फिरता है लाखों जीवों को दुःख है देता पापों से नहीं डरता है थोडे स्वार्थ के कारण चोरी बेईमानी करता है जब तक धन संपदा पास है सब अपना अपना करता है कर्म कमाई ऐसी है भैया जो न कोई ले धर्ता है हरीश कभी हर गली गली में सबसे कहता फिरता है चाहे कोई माने या ना माने अपना काम तो करता है पाक कर्नर सुन्दर तन को क्यों कडा अखाडा फिरता है

कविता 103

कवित एक सौ अस्सी मुझे अब नहीं है भटक ना कहीं और मेरा दिलदार मुझे तो क्या भटके कहीं ओर जिसको ढूंढ कर सारा जमाना थका टिक गए है निगाहें मेरी उसी ओर मुझे अब नहीं है भटक करना कहीं वो कोई ढूंढे मंदिर कोई ढूंढे मस्जिद कोई गुरूद्वारा कोई गिरजा की ओर मुझे अब नहीं है भटक ना नहीं हो वेद पुराण गीता रामायण, साहू और कुरान इंजील तोरे बाइक डील जबूर घनघोर मुझे अब नहीं है भटक ना कहीं हो हरीश कभी भ्रम के कारण सब भटके है जहूर राम रहीम दिन धर्म के झगडे जहूर मुझे अब नहीं है, भटकना नहीं हूँ ।

कविता 104

కవిత్వం exa pouch మిర దులి అయ్యారో yes ఆమె ఖానా వన g స్నేహ రేఖ శేఖర్ అన్నా జా నవ్వినా వేరు భావ సే హర్ ipl రవాణా వన జస్ట్ మే అపన అన్న కోయి పేక నవంబర్న మీరు అహల్యా రో యస్ ఆమ్మాయి కనబడిన సంత ప్రేమ కా భారి ఖజానా వన jus మేమే వేరే శివ కి సీక్ ఆనాటి కన్నా మన మిర దీల్లి గారు yes ఆమ్మాయి ఖననం మన దున్ న్యాయమే ఏక ల ఆసియా నా భావన కొద్దీ శేష్ గా హరి first చానా మీరు అదే వేల్యారు మ్ yes అమ్మాయి కన్నా మన వినాశాయ లేక అమృత్ ఫలానా వన హరీష్ సభ సేయాల ఏకాగ్రత రానా బన మిర తెలియా రం yes అమ్మాయి కణవిభజన.

कविता 105

కవిత్వం ex soup బదలు జాగి బందే తెరిచి సింధు గాని కథలే తు బందే. బందగీ నీ రూపాన్ని పిచోడు దే దునియాలో కి ఈసారి h శాతాన్ని బదలు జాయ్ ఇబ్బంది theory is in the గాని జినోమ్ ఐక్య హే నెక్కి కి తమ e యా రో సఫలం హే బస్సు ఉంది హి కి జిందగి గాని బదలు జాయిగా ఇబ్బందే తేదీ జిందగి గాని యహ పర్తి eishika నష్టం టీకా నా భావన సారి దున్ని యా హే bus అని జానీ bl జాగింగ్ ఇబ్బందే తేరి జిందగి గాని కాకర జాతులు వందే కాం పోయి వెస కిరణజన్య e జగమే సదా కి నిషాని బదలు జాయిగా ఇబ్బందే. మెరిసింది గాని, హాన్ దర్భ దర్జీ ఉ బయట పెడితే pool ఇప్పటికే ఈ సేక హానీ బదలు జగ్గీ పందే పెరి కింద గాని కే హరీష్ కవి, హే జబ్బు సే అపన ఆప జా నికే చుట్టూ గై జగ కి సరి నా దాన్ని అబద్దలు జాగి బందే తెరిసి కింద గాని

कविता 106

கவித்து எக்ஸ் வௌசழ் ஆவாய் தர்ஷன் கைலா சக்கை கௌ இருக்கே இந்த இதுக்கே தேவ முதல் மாமனுக்கே பேருக்கே நகி காசி காப்பா நகை கங்கா க்கே தீ ருக்கே அம்பெடுத்து பாப் ஆணி ஜி நுகர் அதிகம் இருக்கு ஆமா பாய் தர்ஷன் கைலா ஹெய் புக் பி இருக்கு மனி லாக் லாக் தீ இருக்கே காட்டி இருக்கே ஆமா ஹய் தர்ஷன் கைலா சகி கவி இருக்கு காசி நகர் யா கே சூடி சலியை லன் வாசி காய்ல ன் சாமி நதியாக கே தீ ருக்கே ஆவாய் தர்ஷன் கைலா சக் ஏ கவி இருக்கு பா கண்டுக் ஏதோ டே காத்திரு துனியா பிரமை இல்லன் பிரம்ம மிட்டாய் தி கலன் பிஜிலி காண்டு வீரர்க்கு ஆவா ஹய் தர்ஷன் கைலா சாஹு புக் பி இருக்கு ஹரிஷ்ச கவி கை மகாவாருக்கு வாசி! கி யாமே சமை கைல ன் குல் பிரம வாக்கே துட்டு க்கே ஆவாய் தர்ஷன் கைலா சாகி கவி இருக்கே!

कविता 107

కవిత్వం exa కోస్తా క వీర నా మానేస జో దిల్ మే bus జాబే ఒక వీరి నాము ఆయ సజ్జు సత్య ల కావి కబీర్ ఉన్నాము. Noise jb హుమ్ పెట్టావే క వీర ణం యాస జో ముక్తి దిల్ ఆవే కబీర్ ఐన message జో దిల్ bus జాబే ఒక వీలునామా మస జో భక్తి బడా వే ఒక వీరిలో మయసభ జు శక్తి జ గావే ఒక్క వీర్యకణం మహాసభ జోగెల్ ని బస్సు జాబే ఒక వీర నా ముంగిస జోక్యాన్ని బడా వే క వీరి నో మస జోహార్ కోయి విద్యా వే కబీర్ రుణము వయసా వృద్ధుల్ని bus జాబే కబీర్ నామ స జోక్ ప్రేమ బడా వే కభీ రణం వయసది జోహన్ మే ఖం same ఇలా వే కవీనాం వయస్సు జ్యోతి తెల్ మే బస జాబే ఇర్రవి దాస్ నాభ్ ఆ పల్లెటూరు దాదులు ధైర్య గుణ గావే ధర్మ దాసు వరీ బుర్ర తన హర్ కుటీరము జా వే కవీనాం వయస్సు జోడు దిల్ name bus జాబే ఒక వీలునామా వేసా జోక్ దురిత మిట్టా వే కబీర్ నామ హరీష్ భవ పార్ల గావే కబీర్ రెండు మూడు ఇస్తా జ్యోతి మేము bus job okay

कविता 108

कथित एक सौ आठ कहा है तो भजनिया बी सारी देहला भाई हो का का खाई तोहार रमती बहुत हो आपको ने जंगल हवा में जाए अरुण झाील हो पांच विषय के खाई के माटी बहुत राइल हो उठा उठा जग अब सूरज होगी आई हो कई के भजनिया हरीश पर तरी आई हो का है तो भजनिया बिसारी पहला भाई हो

कविता 109

कथित एक सौ लोग लोग गवाह काहे के करेला हो चोरी बेईमानी जो ही माँ हरदम रहेला ऍम नहीं लोग दवा का हैं कि करेला हो चोरी वही मानी निक रेला बोली वो लेजा मैं होला हान रहलन ही जगह मैं बढ बढ गुमा नहीं लोग वह कहे कि करेला हो चोरी ऍम का मतलब दूध दही, दही झगडे हो रहे हैं एक दिन उत्तरी गए हैं सब घरों पानी लोग वह काही के करेला हो चोरी बेईमान सुना यही लक्षण अगर ओयम के निशानी हरीश वो उन्हें बात चीजे गुरु नाम अच्छा दरिया ताली लोग दवा का ही के करेला हो चोरी बेईमान

कविता 110

கவித்து எக்ஸ்ஒவ் தஸ் கவா செய். ச்சீ தகராறா தூள் நிறையா இல்லைலா தயா தர்மனுக்கே ராக சோடி ஆப்பு கம யில்லா சாட்சி. சந்தனு க்கே சங்க நாகி கைலா தன்ன சுத்த நாரி பை அபிமானம் கையிலா கவா சரிசெய்த கராத்தே லைலா ஜி பியா கேஸ் வதி பட்டா ஜீவன் ஹை லா ஹரீஷ், பச்ச ஐபா காக்கே நேக்கி நகி கைலா கனவா? சேச்சே கராத்தே!

कविता 111

క విత్ ex సో ద్యార కహే ఖ తిరు బాయి తురు మానుషి ఇష్టం పైలా ఏక హు గుణ లక్షణ మనుషులకే ద ఐలా కహే కత్తిరి భై తూ మనుషులం పైలా రహ లా పశువు పంచి ఊరే అబద్ధం స్వభావం చేత కర చేత కర నిక్ అవసర పైలా కహే కత్తిరి యాభై తు మనుషులం పైన ఒక హత్ హరీష్ శక వి భజన ఖర్చు తైల స్ఫూర్తి జిందగి కన్యకి దూర కర్చు. తైల కహే కత్తిరి రైతు మానుషం పైలా

कविता 112

हूँ हूँ कवित्व एक सौ बारह हूँ मेरे दिल दीवाने तो जरा ठहर जहाँ घट के तो वहाँ नहीं तेरा रहे ओवर मेरे दिल दीवाली तो जरा अब है अब भी तू बना ले प्रेम का घर ये मिट्टी का घर अब हुआ जर्जर मेरे दिल दीवाने तो जरा है दूर दूर हूँ ये जाने की कोशिश नकर क्यों कि तेरह ही निकट है तेरह रहबर मेरे दिल दीवाने तो जरा है क्यों कर रहे हैं आज तू प्यारे किसी और पर काट दे ज्ञान की कैसी से मन पंछी का पर मेरे दिल दीवाने तो जरा है क्यों तू है डरता जब हैं खेवडिया के घर हरीश जब हो मर्जी उसकी करेगा उधर मेरे दिल दीवाने तो जरा ठहर

कविता 113

కవిత్వం ex south there కహే ఖ తిరు హై తు భజన నహీ ఇంక ఇలా మానుష్య జనము పాకి బి hard గ వైల నారీ సుట్టు ధనుః రాతిరి జులుం బహుత్ కైలాష్ రకల అన్న దయా ధర్మ కర్చు జగన్కే సత ఇలా కహే రాతిరి బైట్ తు భజన hicc ఆయిల అబ్బ హు సమయ బా సేవ భజన తైల సాఫల్య జిందగి ఇండియాకి ఖరీఫ్ ష్ష్ up అనేక ఐలా కహే హ తిరు రైతు భజన hicc ఆయిల

कविता 114

கவித்து எய்ட் ஸொவ் ஸவ்த் தா சங்கதி சு வார்த்தைக்கே சபை யார்? ச விசேஷ பூஜா தூசி யார் பார்த்தபின் கோயில் பாத்தின பூ ச்சே சு வார்த்த காசன் சார் மாத்த பிதா சுத்து பந்து பிரியா சு வார்த்துக் ஆப் பரிவார் சங்க காத்தி ஈஸ்ட் வாரத்துக்கே சவ்வு யார்? ஸ்ழ்வஸ் பூஜா டு ஜி. ஆ ஆச்சு விஷயமே ஜின் ஃபுல் ஆனா லாக் சவ் ராசி கீதா ஆழ் கெத்து ஹரீஷ் குருராஜ் அனுப்பினானா கோவி கோவே ப வுக்கே பார் சங்காத்தம் ஈஸ் வார்த்தைக்கே சவ்வு யார்? சக்தி சே பூஜா தூசியாக

कविता 115

అవును కవిత్వం ex soap ఆంధ్ర పకిర్ ఈ మూసుకో సభ సేపు పారి సూటి లాగేనే దున్ని యా దారి యఫ్ కిరి కేసే భయ్య మూసుకో ద్యా వి గాడి మాతా పితా తాకి పాత నామాన్ని by బంధుత్వం చానా రి లోకల్ ఆజ్ఞ సభ ప్రజ కర్ణికల చూడు డియాస్ సారి హరీష్ కవి మగ హోప్ చేత దహతి హెడ్డు నియ నాడి ఫకీర్ ఈ మూసుకో సబ్ సేపు పారి జుట్టి లాగే తుని యా దారి

कविता 116

हूँ कवित्व एक सौ सोलह अरे सोने वाले उठ हुआ सवेरा देख काल नहीं बनाया है तेरे सर पे तेरा जिन्हें दूर है कहता हर पल मेरा मेरा वो स्वार्थ के कारण दिल्ली तोड देंगे तेरा अरे सोने वाले उठ हुआ अब सवेरा ये धन संपदा का जो लगाया है तेरा जरा सोच क्या संघ ज्यादे है तेरा अरे सोने वाले उठ ॅ मेरा अगर तो नर्सेज तो बात मान मेरा हरीश सच है कहता न मिटे दुख का घेरा अरे सोने वाले, उठ हुआ सवेरा

कविता 117

ఓం క విత్ exa ఉ సత్ర హ పరిశుద్ధ ఖలేజ దుఃఖం ఇంక హెడ్ కే హర్ట్ పల్ల హే చౌ రాసి కాఫీ ర కే చేసేన చావే నట్టు బందరుకు తే సేన చావే తూచి మనం ఏది తేరా హరీష్ దేఖ లే జగ్గు దుఃఖం కహే తేరా మాతా పితా సుప్త నారీ జోక్ బంధు ఘని రా సౌ సాత్విక దిన్ చూడు బెంగే తేరా హరీష్ దుఃఖం ఇంక హెడ్ జై తూనే కేతన తరుపన మేర మేర pull ఈ సేతువు g దుఃఖం మి లే గ ఘ నీరా హరీష్ దేఖ లే జగన్ దుఃఖం కహే డేరా హేతు హరీష్ దేఖ లే జగన్ దుఃఖం కహే తేరా

कविता 118

हूँ कवित्व एक सौ अठारह छोडा भाई छोडी दा हो पर आई धन के आशा नहीं तो एक दिन बनी गई हैं तो हर एक घर के भाषा पर धन कारण कई लन महाभारत के पासा सिकंदर अंग्रेजन से बड बड खाली गए लंदन हाथ था छोडा भाई छोडी दा हूँ बराए धन की आशा नेता सिपाही जज वकील के कारण देखा भारत देश हवा के इज्जत तिया लुटाता छोडा भाई छोडी हूँ पर आई धन के आशा अब देखो ना पाकिस्तान के कुछ हूँ बुझाता देखा देखी भारत के सुखवा जरी जरी बताता छोडा भाई छोडी दा हो पर आए धन के आशा कहते हरी शक भी सांसद दिल की बात वोट कर मावा के कारण पडेला काल के फंसा छोडा भाई छोडी दा हो पर आई धन के आशा तो

कविता 119

कथित एक सौ उन्नीस यहाँ तो हम तो बुरे हैं । कहता है जमाना दूर ही रहो मुझ से मेरे पास न आना मुझे खूब गाली दो ठुकराते ही जाना मेरी सच्चाई दुनिया को बताते जाना या तो हम तो बुरे हैं । कहता है जमाना ताने देना नित नए नए इल्जाम लगाना मेरे दिल के मर्म को नहीं जाना जमाना या तो हम तो हो रहे हैं कहता है जमाना हरीश हम जैसों को नहीं जीने का हक दो घूंट जहर के तो पिलाते जाना या तो हम तो बुरे हैं कहता है जमाना

कविता 120

हूँ । कथित एक सौ बीस एक कवीर भक्त दीवाना सारी दुनिया से ही अनजाना सब के बीच में वो रहता था कोई भी दिन उसका जाना दिखने में था साधा ऍफ फकीरी बाना एक कबीर भक्त दीवाना सारी दुनिया से अनजाना जिसका हर एक गली नगर में अक्सर था आना जाना सत्य दया की बहुत बताता प्रेम भक्ति मस्ताना एक कबीर भर दीवाना सारी दुनिया से अनजाना काम क्रोध लोग समूह को त्यागे अहंकार बिसराना हरीश कभी मगन होए गा वे न कोई अपना न बेगाना एक कबीर भक्त दीवाना सारी दुनिया से हम जाना

कविता 121

हूँ हूँ हूँ कवित्व एक सौ इक्कीस आओ मेरे संग तुम भी यारो बन जाओ तो दीवाना छोडो ये बेड भाव आपस में टकराना आओ तुम भी पहन लो ये प्रेम का पाना हाओ मेरे सन तुम भी यार ऊँ बन जाओ दीवाना क्या करना है हीरे मोती ये खजाना सोने ये चांदी यही रह जाना आओ मेरे संतुलन भी बीआर ओम बन जाओ दीवाना देखो काम क्रोध में जल रहा है जमाना के लोग मोह में धमकते जाना आओ मेरे सन तुम्हें यारो बन जाऊ दीवाना जब से नहीं यहाँ का पडेगा तुम्हें कीमत चुकाना तो क्यों झूठे जगह से हैं नहीं मिला गाना गाओ मेरे संग तुम भी यार ऊँ बन जाओ दीवाना ये जगह का है पुराना फंसाना के तुझ से प्यार है लोगों को तेरह खजाना आओ मेरे संग तुम भी यार ऊँ बन जाओ दीवाना

कविता 122

ఓం కవిత్వం expo boys అజితాబ్ దేఖ వు by జరగవ్ ఆకే రీతి ద్వా గజ దేఖ హో హై జరగవ్ ఆకే త్రీ తుళువ కహే కేతన సరుకే హు పాపను భారీ నీతో హు ఒకే ధన వేసే ప్రీత బై జరగవ్ ఆకే రీతుల వ స్వార్థ పురా వల తాత సబ్బు కేమో same ఏమిటబ్బా స్వార్థం అన్నపుడు రావల్ ఆత జీవన్ వరికే తీత వా జాబ్ దేఖ హు ఫై జగ వాక్ ఏరీ గబ్బ k హోనా హీ కే హుమ్ కేశవు స్వార్థ కే మిత బా సా మహత్వ హరీష్ గీత జరగవ్ ఆకే రీతులుగా

कविता 123

కవిత్వం ex south age సద్గురు కే వంటి అవినా సున్నా సం సర్వ బహుత్ తనకే నయ్య దేఖ double మధ్య తరువా రాచ విషయమే దేఖ అసల్ సంసార బా బ్రహ్మ కే కారణ నహి మిల దత్తత సార బా సద్గురు కే వట్టి యా భిన్న సునాయాసం సర్వ logical కే గురువు one కి దీర్ఘ లాగ ల్ బండారు బావా దుఃఖ హీన దుఃఖ దుఃఖ భారి నాకే హుమ్ కే ఉడ్ బరువా సద్గురు ముఖ్య వటి యా భిన్న సున్నా సంసార బ health హరీష్ కవితా car భూ విచార బాబా సాహెబ్ అందుకే భజన నియా భిన్న చౌరా సి కే ధర బా సద్గురు కే వట్టి యా భిన్న సున్నా సం సర్ అబ్బా అవును

कविता 124

हूँ हूँ कवित्त एक सौ सौ बीस एक ऐसा जोगी अलबेला जो छोड चला जगह का मेला सबसे प्रेम की हर पल जो करता था बातें हर एक दिल में वह करता था खेला एक ऐसा जोगी अलबेला जो छोड चला जगह का मिला जिसके नाम की चर्चाएँ होती थी हर गली गली में, सब में रहकर भी वो सबसे रहता था केला एक ऐसा जोगी अलबेला जो छोड चला जल्द का मिला जिसकी मस्ती में सब होकर फिरते थे दीवालें पर हरीश दुनिया वालों से करता था अलग खेला एक ऐसा जोगी अलबेला जो छोड चला जगह का मिला पूरा

कविता 125

అవును fifth exa super cheese ache ఆయు zoo గీ అల్లు వేల juice hold చాలా జగన్ మేళ రహీం నిరంతర అంతర్ ఘట్టమే చూడు కే జరగక జ మేలా ప్రేమిం బావ హరి జీవి పేర కత హిత జగ్గు మీ అఖిల ఏక్ ఆయు జోగి అల్లు వేల జోర్ చోడి చలా జగ్గు మేళ, సభ మేర హత సభ సే మిగితా జగన్ బా హర్ కర్త తాఖిల హిందూ ముస్లిమ్స్ ఎక్కడి సాయి తీసి మైన హిత మేల ఏక్ ఆయు జోగెల్ వేల జూన్ హోల్డ్ చలా జగమే ల సమదర్శిని సత్య జ్ఞాన క భూ ఖా సత్య, భావ సే మేల సరే, ష కవి మగని బోర్ ఫీల్ ఐతా సాహెబ్. అందుకే చరణ్ ఢిల్లీ లా ఏక్ ఆయు జోగెల్ వేల జోర్ చోటు చలా జగమే ల

कविता 126

हूँ हूँ ऍम एक सौ छब्बीस भक्ति भारत की शान है मेरे भारत की पहचान है इस धरती की महिमा है भारी जिससे कहते हिंदुस्तान है मेरे भारत का बना दीवाना देखो ये सारा जहाँ है भक्ति भारत की शान है मेरे भारत की पहचान है रामानंद कबीर रवि तुलसी मेरे देश की जान है राम कृष्ण बुद्ध महावीर सत्संगति की खान है भक्ति भारत की शान है मेरे भारत की पहचान है नामदेव दादू तरिया न भागोरा साइन वीर क्या है ना ना कसूर काली रही हूँ गुल्ले समता है भक्ति भारत की शान है मेरे भारत की पहचान है रामतीर्थ परमहंस विधि का नंदवान है अनु सोया नर्मदा सावित्री शिवरी मीरा सहजो यहाँ है भक्ति भारत की शान है मेरे भारत की पहचान है गरीब फरीद गांधी भीम रवींद्र ओशो यानी है धर्मदासा से लोई रत्ना कमाल कमाली अभियान है । भक्ति भारत की शान है मेरे भारत की पहचान है । जिस दिल में न दयार रहम है वो इंसान नहीं शैतान है कहता हरीश बुक आॅफ भक्ति से ज्ञान विज्ञान है । भक्ति भारत की शान है मेरे भारत की पहचान है

कविता 127

కవిత్వం exa houses ties బూరి హెర్బ్ రాయి భయ్య బురా మత్ కరణ్ ఆజ్ ఈ పాపకి గటర్ ఈ మత్తు బాన్ ధీ బంధీ ధర్మాజీ న తుం కర్ణా భై చోరి వైమానిక ఈజీ హరిః ఓం సత్ సంగతులు విత్ కుమతి యా శేఖర్ నాజీ బుద్ధిః ఎల్బో రాయి భయ్య బుర్రా మత్ కరణ్ ఆజ్ ఈ కామ క్రోధ లోభ ఈ మోహమే ఎన బహుత్ రజిత ధర్మాజీ అహంకారి లోగ నికి సంగతి సే దూర హ నాజీ బుద్ధిః abou రాయ్ భయ్య బుర్రా మత్తు కరణ్ ఆజ్ ఈ బడి భాగ్య sale మిల హే మానుష కత నువ్వా మాజీ కుక్కర్ ముఖర్జీ వరకేనా తుం యాక్ ఉ దిగాడు. నాజీ బుద్ధిః ఏబుల్ రాయి భయ్య బురా మత్ కరణ్ ఆజ్ ఈ హరీష్ కవితక్క కార్ మెహత భూ విచారించి జీ సాహెబ్ ఖ బచ్చన కర్ర భవసాగరం సేత రం నాజీ బుద్ధిః abou రాయి భయ్య బురా మత్ కరణ్ ఆజ్ ఈ హ్మ్

कविता 128

కవిత్వం expo ties ఉడికే సుమ త్య కుమతి యా సంఘ లైలా, సాక్షి కేన సుధక్క illa జుట్టంత సంఘ జాలికి జనము వాగా వై గుహల మాయ పిచ్చే పైకి మాతా పితా సుత్తి నారీ మే రహ్ ఎళ్ళారు ఝ పైకే నేహ లఘువుల జగ సే సాహెబ్, వ విస రాయికి కే జనమ భాగమై గుహల మాయ పిలిచే ధైర్యం కి హరీష్, కవితక్క మాయ peach tie కి

कविता 129

हूँ कवित एक सौ उन्नतीस ऐसे पैसे की होड लगी है जब वो कोई बनाडा को कोई बन बैठा जो प्रेम भाव की किरण ना दिखे किसी ओर मतलब ये है जमाना न करें कोई गोर पैसे पैसे की होड लगी है चाहूँ किसी के दिल में यार ऊँ नरहन दया सभी को ठग रहा है सभी के दिल का जोर पैसे पैसे की होड लकी है चहूं राजनेता सिपाही जज, वकील घूसखोर भ्रष्टाचार का अंधेरा है खेला जहूर ऐसे पैसे की वोड लगी है चाहूँ हर किसी की निगाहें हैं पराई वस्तु की ओर पर धन परनारी हरने का है के हिस्सा ये दो पैसे पैसे की होड लगी है जब वो सीधे साठ बच्चों का कहीं पे गुजारा नहीं पदाधिकारियों का है पूरा बलजोर पैसे पैसे की होड लगी है जहाँ वो कहता हरीश कविता का है ज्ञान की अंजोर मान होता है बिखरी जी थे जब वो पैसे पैसे की होड लगी है जब वो

कविता 130

கவித்து எக்ஸ் சௌதி சரி விஜய் சோ தீ ஜாம் முக்குனா ஹரி நான் நான் கரி செய்வா பந்த கி குஷ்கா ஜின்னா ராம மகன் ஜெயா ஜெயா மூக்கு என்ன அப்படின்னா அக்க டுக்கே ச்ச லே பகுர்ந்து தேக வேக பேஷன் பாஜி மெய் கிப் அயராமல் விஜய் சோ தேதியா ஜம்மு க்கு நாகரி நாம் கண்ணன் தௌலக் கெய் பிச் தினம் ராத்திரி பாக்கே பரத் பிரியா நேம் கம்மி அறிவுக்கு பல்லு ரான்னு ஜெயிச்சோ தேதியா ஜா மூக்கு நாகரி நாம் மகன் சத்து சங்க சூடு கு சங்கு கைரேகை அரிசி ஜேசி கர்னி வே சாமி லே பரிணாம மகன் ஜெயிச்சோ தயா முக்குனா ஹரி னா

कविता 131

క విత్ exa ఇక తిస్ భగత్ అత్తయ్యా కర్రీ లా కే హమ్ కేవు సూర అనుమతి యాత్ర జిల్లా k k హు పుర కోడ్ ఈ ధరణి గగన curry బస సూరత్ య చెల్లిలా కే హుమ్ కే హు కే పూర భగత్ యా కర్రీ ల కే హు కే హు సూర తాము ప్రోద్దున లోపు మొహం వ్యాపి అహంకార తేజ కే పా వేల ఆపద పూర భగత్ య కర్రీ ల కే హు హు సూర దీన్ని నహీ చైను రాత్రి నా హిందీ యా నీ here లాగ వేల came k పూర భగత్ ఈయ curry లా ఏం k సూర కః ఈ కవితా car హరీష్ సునా హై శరీర ర్యా అత్త జిల్లాకే హు హు పూర ప్రగతి ఆకర్ ఈలా హు కేవు సూర

कविता 132

वित्त एक सौ बत्तीस मुझे सब कुछ भूल जाने की आदत सी है । सच कह रहा हूँ मुझको इबादत सी है कि ये झूठ ही दुनिया से बगावत सी है । मुझे सब कुछ स्कूल जानी की आदत सी है ए कोई अपना पर रहा या ये झगडे में के समता की मेरे दिल में सहायक सी है । मुझे सब कुछ भूल जानी की ऍम सी है हाँ कहीं भी नहीं मेरा फिर ठिकाना के हरी सबको छोडने की आदत सी है । मुझे सब कुछ भूल जाने की आदत सी है ।

कविता 133

ఒక విత్ ex south ethics మే క్యా జాను high రే దునియాలో కి చతుర ఇదే దూర హు దునియాలో ఆవాలు మత్తు దుఃఖ దేవ్ తు ఖైది వేరే మేతో దివానా ఏకవీర నామక సౌజన్య గఫుర్ ఉహు లైఫే మేక జాను బైరెడ్డి దునియాలో కి చెప్పురా ఇదే మే సూత థా china కి నీ యందే సుబ్బు ముస్తాబు చూపిస్తారా? ఇదే నా జానీ ఇక హా sub అన్నీ మీ కి నిత్య ముంచుకు దియా రాజ గ ఇదే మేక జాను బైరెడ్డి దున్ని యాక్ ఈ చతుర ఇదే మూడుకి ఎన్నికల దర్బార్ సబ్బు i see login లాగ ఇది ఏఁ భాగ్ ఐతే ప్రభు చక వీరి చౌరా ఆమె ఎంత భూమి టి దుష్ చిత వేరే mica జాను భై ఇదే దున్ని యాక్ ఈ ఛ తురాయి ఇదే డబ్బు సే మనవ ఆపన్న దివానా public ఆఖరి high ఇది హరీష్ గోపాల్ చరణ నహి చూడు నిర్గుణం ఎలక్షన్ నిజంగా ఇది mike జాను high way దున్ని యాక్ ఈ చతుర ఇదే

कविता 134

கவித்து எக்ஸ் ஸவ்த் அவ் திஜ்~ வாதினு யாது கரோ மெரேஜ் ஹய் ஜாதின்னு தெரு போவே புதிதாய் தாது ன்னு சூட்டி ஹய் அய்யோ வேணா சூட்டி ஹய் மாத்து பிதா சுத்தல் ஊறுகாய் வாத்தின் என்னென்ன நீர் பரி பரி கிரிகைகள்? இகோ புத்தி காம நாய் வாதின்னு யாது? கரும் மெரி ஹய் காடி யே பங்கலா சபு பகிர ஜை சப் அக்கி க்குமான அகடும் தூறு கோவி. ஜாய் விவாதி நிலையாது கருமி ருபாய் அவ கிரு பாரு ஜூஸ் செய்தன கறி கோ டு படியோ சவுரா சிக்கி காய் பாத்தின்னா யாது! கரோ பெரிய பாய் ஹரிஷ் கவிதா காழ் ஃபை. அந்த சமயம் குரு நாம ஹாய் வாதின்னு யாது கரோ மாதிரி ருபாய் ஜாதின்னு தேரு ஒவ்கெய் அப்படிதான்.

कविता 135

सवित एक सौ पैंतीस सच्चाई से हर पहले ही भाग्य है दुनिया स्मृद्धि जैसे ना लेना चाहते है ये दुनिया झूठ हो के संघ लेते ही जहाँ पे हैं दुनिया हूँ चतुराई से धन कमाते हैं दुनिया सच्चाई से हर पल ही भाग्य है दुनिया हैल्लो रूप कपट से दिल दुखा हुए हैं दुनिया के स्वार्थ बस नहीं है लगाते हैं दुनिया सच्चाई से हर पल ही भाग्य हैं दुनिया हरीश एक कविता का न झूठन संघ में जाऊँ जान मोह माया मैं अरुण झा हैं दुनिया सच्चाई से हर पहले ही भाग्य है दुनिया

कविता 136

कवित्व एक सौ छत्तीस मेरे साहे तेरी दया से मन मस्ताना सा होने लगा है तजकर जगह की सब चतुराई दिल दीवाना सा होने लगा है लोग क्लाॅज की खबर नहीं है जब से बेगाना होने लगा है मेरे साहे तेरी दया से मन मस्ताना सा होने लगा है काम क्रोध मद लोग को त्यागे अहम का रवाना होने लगा है राहत को छोड दिवेश को छोडा शाम पे परवाना सा होने लगा है मेरे साहेब तेरी दयार सेमन मस्ताना ऐसा होने लगा है जो जाकर तेरा मेरे सपनों आशीष जी से देकर मुस्काने का मतलब अब हरीश एक कविता का समझ नहीं लगता है मेरे साहेब तेरी दया सेमन मस्ताना साफ होने लगा है हूँ

कविता 137

कवित एक सौ सैंतीस मेरे दिल के मंच पर होती है नीट कबीर नाम की कुल जा रहे हैं सो वे हैं दुनिया में नित जागरू रेंज दिवस नहीं होती हैं अबकी मिले तो कभी नब्बे छोडे निचली ज्ञान संजोती है मेरे दिल के मंच पर होती है नेतृत्व वीर नाम की कौन जा रहे हैं आद्यंत के पार की बातें अकथ कथाएँ होती हैं कम ब्याज आते क्रोध ना वहाँ पे लोग मुझे सब होती हैं मेरे दिल के मंच पर होती हैं नेतृत्व कबीर नाम की गुंजा रहे हैं राग द्वेष अहान का रसीद त्यागे जगह से न्याय होती हैं कहते कविता का हरीश सोनू भाई एक पल अलग न होती है मेरे दिल के मंच पर होती है नेतृत्व कबीर नाम की कौन जा रहे हैं?

कविता 138

ఓం ఒక విత్ expo earth ఈ ఆవు పారద్రోలి తురే సున్నా వు బాపతే ఆత్మజ్ఞానం కి నహీ వేద కి నహీ గీతకి న భాగవత్ పురానికి నైజీరియ ఎక్కిన తో రేటుకి న హ దీస్ న కురాన్ కి ఆవు బాదే ఆత్మ యానికి హిందూ కి న ముస్లిం కి నఖశిఖ నాయి సాయానికి న బ్రహ్మ మనకి క్షత్రియ కి న వైశ్య శూద్ర న వర్ణానికి ఆవు చెప్పారో తుది సునామి బాతి ఆత్మ యానికి నక మికీ ప్రకృతికి నలో మోహ అభిమాన కి నహీ భూతు నహీ ప్రేత కి న జగమే అరుణ్ జానకి ఆవు ఊపారు తుమ్మి సున్నా మ్ బాతి ఆత్మ ధ్యానికి తీవ్రత కీ నమూనా రోజా రత్న దానికి ఆత్మ గాన్ నాకి సేక్ ఈ నక్క హానికి నాకి see business వానికి న రాజాకి నరానికి నహీ కిసీ ఘ అంశానికి ఆవు పేరో వత్తు హే సునామి బాతి ఆత్మ ధ్యానికి ఎదురు యాక్ ఈ జుట్టు తియ్ ఆశ అబ్బో నహి ఆవ నిజానకి అర్హత హరి shook కవిత సాహెబ్ గోపాల్ ఫర్మానా ఆవు బాపతే ఆత్మ యానికి

कविता 139

हूँ कवित एक सौ उनचालीस अगर मुझे को तेरी इनायत न मिलती तो फिर मेरे दिल की ये गालियाँ न खिलाते बडी रह जाती मजधार में नहीं दो मर जाते हैं किनारा न मिलती अगर मुझको तेरी इनायत न मिलती है न जाने कहाँ हम भटकते ही जाते ये माँ या दुखों से दोबारा न मिलती अगर मुझको तेरी बिना या न मिलती काम क्रोध, लोभ मोह में ये दुनिया जलती राग द्वेष अहम कहाँ से किनारे नकल थी अगर मुझको तेरी नायत न मिलती कहता हरीश जो सांची बात दिल की गुना हो के दलदल में बार बार फिसलती अगर मुझको तेरी इनायत न मिलती तो फिर नहीं रे दिल की ये कर लिया न खिलती

कविता 140

हूँ कवित एक सौ चालीस अब रही हैं कोई भी दुविधा जो साहेब लगाते हैं काम, क्रोध, मद, लोभ भी छोटे अहंकार बिस रह गए हैं अब तो सूरत निरस्त भाई एक सुख मना आनंद पाते हैं अब आ रही है कोई भी दुविधा जो साहेब अलग है आज से तत्व रहे नहीं त्रिगुण ऐसी अलग जगह हैं सहेज समाधि उन मुझे जागे सहज सहज समाज रहे हैं अब नहीं रही है कोई भी दुविधा जो साहेब अलग आ जाते हैं खूब मगन हुए ना अच्छे हैं मनवा सुख दुख सब विश्व रह रहे हैं हरीश कवि गोपाल दया से अखंड है पद पा रहे हैं अब नहीं रही है कोई भी दुविधा जो साढे ऍम हैं

कविता 141

हूँ कथित एक सौ इकतालीस हो कैसे होगा आज के जीवों का उद्धार तीर्थ जावे मूरत पूछे रो जागृत टाॅपर गार्डी बंगला टीवी का खूब हम का हो कैसे होगा आज के जीवों का उद्धार धर्म करें दिन के हैं झगडे हजार बाली गुरुबानी करें बकरीद त्योहार का हो कैसे होगा आज के जीवों का उद्धार रहम दया दिल में न कहा है इंडो मुस्लिम या और जाती भाषा की करते बीच खडी दीवार हूँ कैसे होगा आज के जीवों का उद्धार नेता सिपाही जज वकील है बहुत होशियार और अपनी जी भर भर बढाते हैं भ्रष्टाचार हो कैसे होगा आज के जीजू का उद्धार देखो फैशन में भूला है हर घर परिवार कहता साथ सी बात हरीश कविता का विचार हूँ कैसे होगा आज के जीजू का था हूँ

कविता 142

ఓం కవిత్వం expo dialysis పాండే ముల్లా హోహో ముల్లా గూర్చో నిరుప ల జీవ కోకో మరే అప్పుని యంగ్ లీ జో జ రాఖీ హజ్ ఆవే తో భాగా జావెద్ హే డాక్టర్ కే ద్వారే పండే ముల్లా ఓహో ముల్ల తూర్పు నిర్బంధ జీవ ఇంకో మారే భేటీ భేట పత్రి సే ప్రేమ జత వే మాతా పితా దుఃఖింప భూతు రో వే దుకే మారే పాండే ముల్లా హో ముల్ల తూర్పు నిరుప లు జీవో కో మారే జయ సే తుం ఆని ఉండే అప్పన్న పరివార్ కొట్టేసే మాలిక్ ఏక్ పరివార్ జీవ సరే పాండే ముల్లా ఓహో మెహతా కుర్రవాణ్ణి బలి దేవి అల్లాహ్ అల్లాహ్ సరే ఉద్యోగ నిర్బంధాలు జీవులకు మారే బడలిక నేత జవ కీలక హా వే పర పీడా జాన్ ఏనా హీ అభిమాని సరే పాండే ముల్ల హో ముల్ల తూర్పు ఉద్యోగం నిర్బంధ జీవో కోకో మారే చోటే హింస సే బడి హింస పారే మనో సచివాల ఆత్మ హే హరీష్ విచార రే చెప్పండి ముల్ల ఓహో ముల్లా తూర్పు జోన్ వెర్బల్! జీవో మరి okay

कविता 143

कवित एक सौ दयाली मैं तो साहेब कवीर निस् गांव होगा । सारी दुविधा मन की मिटा आऊंगा । सर्जिकल जगह की बहन भावना आप ही में रम जाऊंगा । काम क्रोध मद लोग चोर है । अहंकार को माँ भगा आऊंगा मैं तो साहेब कभी नित्त गांव दूंगा । सत्र संगत की पकड डगरिया रागदेश बिसरा आऊंगा जो पापों की गठरी होली यही दिख राउंड दूंगा मैं तो साहेब कभी रणनीति गाऊंगा । मानुष तन मूल मिला है बेयर ठंड गवा हूँगा हरीश कवि गोपाल दया से आवाज गवन नशा आऊंगा मैं तो साहेब कवीर निपटा गांव का सारी तो था, मन की मिट आऊंगा ।

कविता 144

క విత్ expo నమ్మాలి హమ్ ముక్క వీరి ఎల్లక జగ ఇంకే సమతా మై విశ్వ బన ఇంకే జాతి పాతిక కి దండ ల్ ని అబ్బో అయ్యారో నా హమ్ రేపాయి ఇంకే వచ్చే నీచ కి భేద భావన car ache తెల్సు ఎం it india ఇంకా వీరి ఎల్లక నిజంగా ఇంకే సతమతమై విశ్వనాథ్ అంగి మందిర్ మస్జిద్ గిరి జాగర్ గురు ద్వారా రాసే ఆగి జాయేంగే విజయక్క వీర జయ భారత్ నారా జగమే ఘు మల్ల గాంగ్ కంక వీరి ఎలా కి జగ ఇంకే సంయుక్త మై విశ్వ banana ఇంకీ భూ స్కోర్ నేత మూసుకోని సిపాయ్ హీ జుట్టే అధికారి భగ ఇంకే హరీష్ కవి సత్య ప్రేమ హింస బ్రేక్ దిల్ నిజగా యుగే అర్ధం క వీరి అలక్? జ గాయని గే సముద్ర తామై విశ్వ banana ఇంకే okay

कविता 145

కవిత్వం ex soap కలిస్ మెడ దిల్ మే బస్సే కవి జోసఫ్ దీన్నో కేప్ p బ్రాహ్మణ పండిత్ ముల్లా కాజు కెళితే వెతికి తీర్ సత్య సాయి హర్షా ఐతే హర people engine కీ వాణ్ణి అతి గంభీర్ మిరే తెల్లె బస్సే కబీర్ జోసఫ్ ఉద్దీన్ ఓకే ఏపి దేశ విదేశీ బీనా జయహే కర్త సి సమంతాకి జంజీర్ జాతి పాత్ హర పాకం డోకు తోడు నే వాళ్ళే వీరు మేరే దిల్ బస్సే కబీర్ జోసఫ్ బుద్ధిని నువ్వు కే పీర్ జాన్ బైరాగి వివేక విచారణ షీ ల సంతోష అతి ధీర్ఘ మెహత హరీష్ భజన కర్ దేఖో మిట్ age జన్మ జన్మకే పీర్ మీరే దిల్ మే bus అయ్యి కబీర్ జోసఫ్ బుద్ధి ను కెపీ

कविता 146

కవిత్వం exa coach please ముట్టుకో తాంబూలాలతో సున్నాను దునియాలో భావాలు మేతో ప్రీతి కర్ణికకి కావాల్న hindu camber e r cube తుంపరలు ఏసే సజా లో మూసుకో తు అంబుల రాదు సుమో బుద్ధుని యా వాళ్ళు సమాజమే సుఖ హు సభిత హల్లుకు camber e సహ తుక్కు తుం తెలిసే మిట్ ఆలు ముట్టుకో మొత్తం hall ఆదో సుమో బుద్ధుని యా వాళ్ళు జ్యోతులు చావు పోతు మీరి గర్భ నంద బాలు సబ్బు కుచ్చులు మహా రే హ వాలే సీతం కర్ణుని వాళ్ళు మూసుకో తొంబై రాదు సుమో ఆధునిక భావాలు య రూమ్ కేసి ఇక వీరి య మస్తి తు ముఖ్య జాను గే దగా కరణ్ ఇవ్వాలో హరీష్ ఆ ప్రీతి ఎక్కేసి మెట్ టికి కాయ సే సాహెబ్ ఏసీ గాడు సాహెబ్ జలాలు మూసుకో తంబోలా దు స నో ధనియా వాలు

कविता 147

हूँ कवित एक सौ सैंतालीस राहम दिल में मुसलमान कहाँ बे जब मैं रहमान का नाम हंसा वे र हमने की कर दरिया वहाँ वे अदीश की बात साथ ही नजर न आवे जब वो खुदा है कायनात का मालिक बताओ कुर्बानी क्यों और से करा है रहम न दिल ने मुसलमान कहाँ है जब चाहे कुर्वानी वो लेते जब दिल चाहे वो जिसको जिला वे रहम न दिल में मुसलमान कहा ईद है अल्लाह का जो सबसे मिला वे इब्लीस बिस्मिल खून खराबे रहम ना दिल ने मुसलमान कहाँ है जिंदगी देवे सौ फरिश्ता कहाँ वे जिसमें हैवानियत वो शैतान कहाँ पे रहम न दिल में मुसलमान कहाँ है क्या हज जाए के हाजी कहाँ पे जब दिल में बदलाव हरीश नजर न आवे रहम न दिल में मुसलमान कहाँ जगह मैं रहमान का ना महासागर एंड

कविता 148

ఓం క విత్ expo birthdays గురు మహిమ య హాకీ బడి భారీ చిత్తు దేవ్ కేసును నర నారి సాహిబ్ వక వీరి అభయ పద్దాక భక్తికి నిర్ధారిత దూర్జటి శృతి గోపాల్ సే హరి పాతవే శ్రీ లాలస హే విజ్జి ల లిమా లీ ఇమ్మను హరి సుఖ సుఖ సుఖమే భజన కే భరి నువ్వే మేరు నువ్వే శ్రీ పులస సాహెబ్ మోక్ష పద దేవ నీ హరి దశ వే గురువే శ్రీ మాధవ్ సాహెబ్ కామ క్రోధ సబ్బు మారి జరహ వే శ్రీ కోకిల సాహెబ్ కోమల త్ ఆలే భారి బరువే శ్రీరామ సాహెబ్ సమతా మే బడే భారీ తెర రవి శ్రీ మహా సాహెబ్ బుజ్జి భీమాను బడాయి కో మరి చదవే శ్రీహరీ సహదేవ జీ హ రికో హర్ మేని హరి చంద్ర హ వే శ్రీ శరణ సాహెబ్ శ్రద్ధావాన్ ఆదే వారి సో లవే శ్రీ పూరణ సాహెబు పూరణ రుద్రమ్మ విచారించి సత్ర వే శ్రీ నిర్మల సాహెబ్ నిర్మల మనకే భారీ అక్కర! వేణు గురు రంగు ఈ సాహెబ్ రాగ ద్వేష కోని వారి కొన్నీ సరే గురు ప్రసాద సాహెబ్ పరమార్థమే బడే భరి బీ స వేసి శ్రీ ప్రేమ సాహెబ్ ప్రేమకే బడే పూజారి ఎక్కీ సర్వే రామ విలాస సాహెబ్ ఖర్ ఢిల్లీ కి విధాన్ని వారి బానిస వే శ్రీ అమృత సాహెబ్ అమృతం మజ్జ నికి వాణ్ణి సీస వి గంగ శరణ్ సాహెబ్ సహనశీలి తామే భారి హే బేబీ రాజీవ్ వివేక సాహెబ్ సత్య కే నిర్ణయం ధారి సాహెబ్ గోపాల్ లకే సాగర్ హరీష్ కవి కోబరి గురు మహిమా పూజన్ గావే దీనికి అమ్మాయి బలి హరి గురు మహిమ యహ కి బడి భారీ చిత్తు దేనికి సులువు? నర నారి

कविता 149

కవిత్వం ex పచ్చ bus జిందగి కే హర్ట్ గ మూస్తే అప్పుడు పోతు విరామం లే ముఖ్యము పావుల తు అబ్బాయితో సవర సేక మాములే తప్త త్తుగా దుఃఖేన యూరి అత్తు కుదుపు పోదాములే చూడు అదే ఆషా తురగ కి అత్తు సత్తు గురుకు కన్నా మాములే జిందగీ కే హర్ గ మోసే పత్తిత్తు విరామం లే జ్యూట్ ic ఆయ జుట్టి మాయకి అక్కడ తప్త క్ చలి హిరణ్య రామాయణ కంస దుర్యోధనుడు సికందర్ సే హత్ ఖాలీ ఇచ్చ లే జిందగీ కే హర్ట్ గమ్ము వస్తే తో తు విరామ లే go శుకం say cells ఇలా use చల్ రహ beach ఆడేమి లే మెహతా హరీష్ టు మహారాజా హ్యారీ తు రా మళ్ళి! బందగీ కే హర్ట్ మూసే అప్పుతో తు విరామం దే.

कविता 150

கவித்து எக்ஸ்ஒவ் பச்ச மேதோ திவானி திவானி சக்தி நெஞ்சி கவி இருப்பியா சாம்பார் யாக்கி அப்படின்னா ஹுசைன் தின்னு ரைனா மோதி லாக் இலக்க ன்ப் அவரி ஒவ்கெய் ஊரு ஊரு ஜாய் மண்ணு பஞ்சி மகன் பெயர் அஜப் புக்கத் தாப்பு உன்ன கரி ஆக்கி மைத்தோ திவானி சக்தி நெஞ்சி கவி ரபியா சாவ எழிஅ ழாகி தியான கா சப்புன்னு சத்து சங்க காப்பணி லேட் எதுவும் மேல சொன்ன தியாகி சக்திதா பி ஸெய் மாறு நீ காலும் டாக்ட்ழ்ஜ் அபி கா ஜெழி ஆகி மேதோ திவானி திவானி சக்தி நெஞ்சு கவி இருப்பியா சவாரி ஆகி சுமதி சூடு சுமத்தி நிறுத்து ஜார்கே பலி சம்பால் இ மரியாதை கரிச கவி கோபால தயா செய் மெலிவு நகர் பிரேம நகரிய ஆக்கி மைத்தோ திவானி தீவனி சகி நிஜ கவி ரபியா, சௌந்தர்யா ம்ம்

कविता 151

కవిత్వం expo ఇక one సాహెబ్ మేతో తు హరి చరణ్ కాదా! కరువు మీరి కృష్ణ రా కామ క్రోధ లోభ మోహ అహంకార మనవే లాస్ రాగ ద్వేష మా నువ్వ డైట్ కే హర్ట్ పల్లి ర హేమన్ మీ హాస్ సాహెబ్ మేతో తుప్పు హరి చరణ్ కంఠస్థం నీ టీం ఐటీ మాయా తనజీ న జాబే విషయ రస గంధ నివాస్ విష సరస్సు హర పలనా చిన్న చావే బహు విషయం కి సాహెబ్ మే తో తు మరి ఇచ్చారని కాదా? విషయానికి కారణం జీవి పడత హే ఎం రాజా కి బుద్ధి ఏమన్నా hard అన్న మానే బహు విషయానికి సాహెబ్ మే తుమ్మ మరి చరణ్ కాదా? Yes see దయాకర్ హరీష్ పై కరువు నిత్య గగన్ మే వాస్ ఆప హీ మేం మన స్థిర హు బయటే కట్టే కర్మకి pass సాహెబ్ మేతో తుం హరి చరణ్ కదా ఆరు. మేరి కృష్ణ wrong

कविता 152

okay కవిత్వం ex బావని అయ్యారో కీర్ మే వహీద్ ధ్వనుల యాహు కవి ఇది ఎలా తీసుకో? జగ్గయ్య touch కర్ జగన్ కి సభ ఛత్ తురాయి నిజాం అత్తమ్మ వేస్తామా సత్తు ప్రేమ అహింస భక్తి సమతా మై దేఖ పనా యాహు యా రోహిత్ మే వహీద్ పుల్లయ్య హు పాక అండి పాకం డ ఒక్కరితో పాక అండ్ తోడు నే ఆయా జాతి పాతి ఉచ్చ నిచ్చ కి క రుద్దీ వరుకు ఢ హాయ are బీర్ మహిత పుల్లయ్య ప్రచారం స కూతు పచ్చల్లు ముంచుకు సత్య సత్య ఓహో రాయ హరీష్ కవి మసాజ్ చూపు కవిత తప్పన ఆపు గ వాయా హు యా రోమ్ ఫిమేల్ వహిద్దాం లయ హు ఇక వీరి అలకు జగ్గయ్య!

कविता 153

हूँ और ऍम एक सौ तिरेपन मेरा की अग्नि सी चलती है हर पल मेरे मन नहीं प्यारे मेरा हवान मोदी लाख ही गयी वो है ये झूठी दुनिया लागे रे तुम से अलग हो जीन्स सकू में सच कहूं प्रियतम प्यारे विरह की अग्नि सी जलती है हर पल मेरे मन नहीं पहरे दिन नहीं चेन मोहि नींद है रहना सुधबुध सब ही भी सारे छूटती है जो झूठे झूठी दुनिया मैं तेरी तुम हो हमारे दे रहा कि अग्नि से जलती है हर पल मेरे मन में पहले मैं तो तेरे नाम की हूँ अगली दीवानी कहते हैं ये सारे तन मन धन में नहीं कछु अपना एक क्या से मेलन बिना रहे दे रहा कि अग्नि सी जलती है हर पल मेरे मन में प्यार कहता हरीश कभी है सांसी बात विचारे तुम बिन न कछु मोहि भावे होठी लागे दुनिया रहे मेरा हक की अग्नि सी चलती है हर पल मेरे मन में प्यारे तो

कविता 154

हूँ और कवित एक सौ चौवन हूँ हम है उस मगहर के वासी जहाँ साहेब कवीर आए छोड काशी सूखा पडा था जहाँ अन्य ना जाल था दुखित हो फिरते थे हर नर नारी शाह थी भूमी यहाँ की हर मन में भी रहती हीरो तासी गदहे का मेला होगी जगह मैं हँसी बिजली खाने जा के साहेब को व्यथा सुनाई साहेब कबीर ने आशीष दिया मुस्काई बिजली खाने कहाँ अति हरषाई साहेब कृपा तुम्हारी तो हर दुःख नसाई जब साहेब ने कहा सब को बुलाई हम चले मगहर काशी बिस राई तब व्यासम् मिथिला के ये वो ले हाई कवीर ये तुम क्या बोले आती सारी दुनिया मुक्ति पाने काशी तो तुम कहाँ चले कवीर मगहर हो उदासी तब कहाँ साहेब ने व्यास सुनु मिथिलावासी तुम किस भ्रम नहीं बडे हो यहाँ काशी जो तुम हो साथ से मिथला के वासी तो तुम भी तो जो और अपना मगहर के पासी तब से कवीर सौरभ धाम है मगहर करी शक कविता का काहे मगहर के वासी हम है उस मगहर के वासी जहाँ साहेब कबीर आई छोड काशी हूँ

कविता 155

हूँ और कवित्व एक सौ पचपन हॉस्टल की धडकन में बस तुम्ही समय हो धन का चयन रातों की नींद उडाये हो एक पल भी तेरी सूरत न बोलो में कैसी ये मन में प्रीत जगह हो हॉस्टल की धडकन में बस तो भी हमारे हो तेरे मीठे में थे शब्द है गूंजते गगन में सच कहूं तुम मेरे दिल को चुराए हो स्टील के धडकन में बस तो वही समय तो तुमको भूलना मैं साहेब जी सकूंगा ऐसी हरीश की लगन लगाए हो इस दिल की धडकन में बस तो वही समय हो दिन का चयन रातों की नींद उडाये हो हूँ

कविता 156

हूँ कवित एक सौ छप्पन इस दिल की धडकनों में बस तुम ही तुम छुपे होऊं पहचान गया तुम को किस गुफा में लुके हो मैं ढूंढता फिरता था मंदिर और मस्जिदों में गिरिजा गुरूद्वारा न कहीं पर मिले हो इस दिल की धडकनों में बस तुम ही तुम छुपे हो काम और क्रोध लोभ मोह में दुःख पाया असम का राग कृष्णा में बहुत हम जले हो इस दिल की धार करूँ मैं बस तो नहीं तुम छुपे हो अब मैं तुमको हिसार उंगा प्रियतम प्यारे हरीश के रग रग में तुम इस तरह खुले हो इस तेल की धार करों में बस तुम्हें तुम छोटे हो हाँ

कविता 157

ఓం కవిత్వం expo సత్తా వన్ మేరో సయ్యా కథని దారి రే కర్నూలు సభకు cover ధార్ హుమ్ ఏసినా తాను అంగి అబ్బో నహి ఇక హు ఇంకో బస్సు అంగి రహ నాజీ పోషి యార్ జాకీ కల్తి నజర్ పడేయ్ ghee కరవాలం గిర సత్తార్ మీరు సైన్యాధిపతిని ఆ రే ఒక్కరు సదుకో ఖబర్దార్ మీరో సైన్య కి బాత్ నిర్ ఆలీ sir హరీష్ శక వి శయ్యా నహి చూడు చోటు సబ్బు సంసార నిరు సైన్యాధ్యక్షుడు అనేది దారే కరువు సదుకో ఖబర్దార్

कविता 158

कथित एक सौ अट्ठावन एक नगर भुला यो जोगी माया में पड बन गया अब होगी जो कृष्णा से बेर जोगी को वही कृष्णा का बना मंदिर होगी ही मन को अपना कर जाना वही निज मन देरी बनोरी एक नगर बुलाई जो जोगी माया में पड बन गया भोगी जानी जानी के अवगुण गहे नित्य या की माटी समझ न लागी जैसे दीपक पतंग जल मारे ऐसे मन जले विश्व लगी एक नगर भुला यूज होगी माँ या नहीं फट बंधन का यहाँ होगी सब गुरु मिले तो अगम लखा वे भागे फिर विषय रस तागी हरीश अब कभी मगर हुए नाचे सद्गुरु चरण अनुरागी एक नगर भुला जो जोगी माया में पड बन गया होगी

कविता 159

कथित एक सौ उनसठ मैं अजनवी मुसाफिर हूँ मुझे से न प्रीत करना रुकने को ना तुम कहना मेरा कम नहीं ठहरना मोहम् में न पडकर कोई मुझ से अपना पन जताना । निर्मोही कहते हैं सभी ऍम और मस्ताना मैं अजनबी मुसाफिर हूँ मुझे से न प्रीत लगाना कुछ पल के लिए लगते हैं मिलकर के हर्वे गाना हरीश कभी छोड चला झूठा जगत तराना मैं अजनबी मुसाफिर हूँ मुझे सेना प्रीत करना रुकने को ना तुम कहना मेरा कम नहीं ठहर

कविता 160

కవిత్వం exa house at yes కి నషా వచ్చాడు చాయి తో సర్కార్ కథ హీన ఉత్త రే లో టక్కర్ nineteen రాహు సెజ్ బుజ రే వాహన ఫకీర్ ఈ బన పాకే హమ్ సారి శిఖర్ ఏఁ yes నషా అన్న కరణ చక్కర్ జోహార్ పలు ఉత్తర్ e క్రిష్ కి నషా వచ్చాడు. గంజాయి తో చక్కర ఇక్కడ hindi అవుతారు. రూప నిక్ ఈన కోష్ కర్ణ ఖం రాహువు మే నట హరి హ రాహు సేవకి హరీష్ పచ్చని హరి ఏక నజర్ ఏఁ ఇష్క్ ఏన షా ఆచరణ జాయిన్ తో చక్కర్ కభీ నవ్వుత రే నువ్వు లోటు కర్నా యే ఇన్ని రాహువు సెజ్ కుదురుద్ది

कविता 161

கவித்து எக்ஸ் ஶ்ஒவ் ஸிக்ஸ் அட் மண்ணு விசை ரசுனா சின்ன சபை ஹாகி சாந்தி இக் கபல் பண்ண குனு க்கோ சூடு க்கே அவ குன்று. கைரேகை பக்திப் ஆவுன்னா சித்தி லாவை மண் விஷயம் அரசனா சின்ன ஜாஃபை கேசி காயா. மாயா மன்ன ஹிந்தி கான ஸ்டெய் பிஜ்னஸ் ராவே மண் விஷயம் பிரசன்னா சின்ன சப் ஹரே ச கவி. அப்பவும் செய்து, ச்சே! இன்னக்கி தோச வ் ராசி, மெய் ஜாப், மண் விஷம், பிரசன்னா சின்ன சாவே ஆகி சாந்தி எல்லாம் எனக்கு பல்லு பாவி!

कविता 162

కవిత్వం expo boss set సిన చూడే జగన్ మాయ మందులు ఇవి బన్ కే ఫ్రేమ్ నిత్య విషయ రస భోగి కామమున చూడే క్రోధ న చూడే వేలో మోహన్ రావు అహంకారం రహితుడు భోగి సన్న చూడే జగ్గు మాయ మన లోపలికి సంగతి చూడను భద్రత సు యోగి జాను మా దుర్గతి iss ఈక ఈసీ భోగి sin నా చూడే జగ్గు మాయ మనలోకి జానీ దయా లెక్క హృదయ దృష్టి భోగి హరీష్ కవి భవ బంధం కట్టేవి చిన్న చూడే సబ్బు మాయ మనము లోవి బన్ కి ఫ్రే నిత్య విషయం రస భోగి

कविता 163

கவித்து எக்ஸ்ஒவ் ழெய்ஸ்ழ்ட் பா. ஜ. சத்தியக வீர சக்தினா ஒரே சாரே விட இவன் எங்க பெயரே தாமரை பத்தி பாவ கர் அதே கணேஷ் காம ரே பவி கா பூரண விஷ்யம் ஒரே பா. ஜ. சத்திய கவித சத்தியனா முறை சூடு தே சூட்டை ஜகத்தினை ஆஷா கோசன் குரு க்கா நாம் ஒரே பஜ்ஜி சத்தியக வீர சத்தியனா முறை பஜ்ஜி சக்திய கபீர் ரசத்தின் அனா முரே காம தூக்கி வித்து கரை ட்ழுத் தூக்கி த்து கரை லொவ் மொவ்ஹான் காழ் ஒடொவ் யாம் ரே பா ஜ சத்தியக வீர சத்தியனா மரி ஹரிஷ்ச கவி ஜோ மகன் ஹோ பஜன்னு கரு தென் கோ தேதி தூது பேப் அதுதானே ரே பஜ்ஜி சத்திய கபீர் எரிசக்தி வேணாம் ஒரே சாரே விகடன் இங்கே பெயரே காம ரே!

कविता 164

ఓం okay కవిత్వం exa out how set బత్చ్ ఒరేయ్ అబ్బాయి సద్గురు నామ సుఖ దాయి శ్రీ రవి దాసు గోపాల శ్రీ సద్గురు నామ సుఖ లోయి ఇక మాల్కమ్ ఆలీ g i e సికందర్ పడ శిర నాయి బీర దేవ బిజిలీ పఠన తత్వ జీవ క బ్రహ్మ మిటాయి విభజనతో రేపాయి సద్గురు నామ సుఖ దాయి కాశీ చూడక కేమో మునివరా షాపం మిటాయి నాభ్ ఆ గరీబ్ ఒప్పదం నావ సాహెబ్ దేవకి మహిమ బడి దిగాయి. బజ్జో రే అబ్బాయి సద్గురు నామ సుఖ దాయి భావన కస నీస్, ఏకత్వ కీ లియా, తిరుపతి ఆ చేపచ్చు పోతాయి హరీష్ శక వి గోపాల్ దయా సే పద మగని హు guy e బజోస్ వేరే అబ్బాయి సద్గురు నామ సుఖ దాయి

कविता 165

ఓం కవిత్వం ex hope i set అర్ధంతో బనే హే దివానీ గురువు నా ముఖ్య జాతుల వాయి పాతగ వై pi ఓహ్ ఏప్ పద్మ నిర్మాణానికి కే తోన్ తుపా అనే దివాని గురు నామ కే భ వరుకు స్వామే జాయిన్ సమయమని గజ కర్మాణి కుమా నికే హ అంతో పనే దివాని గురు నా ముకి కోడుకి లోకి లారాజు మర్యాద మిత్ర కుటుంబ జనం ఇస్తా నికే కంతు బనే దివాని గురువు నామ కి రోహిత్ ఎల్బీ లకైతే మాతా పితా మేరే బాయి బహ నేకు ప్రాణాలకే అంతో బనే హే దివాని గురు నామ కి హరీష్ శక విచ్చల అ మరుపులు దేశమే అబ్బ ఉన్న హో ఆ వన జానకి కణంతో పనే దివాని గురు నామ కే జాతక వాయి పాతగ వాయి pi ఓహ్ ఎం పద్ద నిర్మాణానికి

कविता 166

K White Ex OCR satt. Natürlich gingen Caron Sano dazu drei Jahre Hemden Tele Tano so braune hätte Hero Peter, woher hallo gato mehr hält Hanno sogar Ja, Paraga war, hätte zu gucken. Karg übernehmen heilsam Sammlung Natur lumpige Rohren Sammlung, dazu drei Jahre Hemden, Delta Nung T Geier zu Thema Ja ins Rote Zwerge gefasst Sunny so ab Hiva nie atomar, Hi Marie Gene zu Koma Nie natürlich Rohren Sano dazu drei Jahre, handelt Hanno Mira, war eine ganze Du Rio Tanne. Skandal an der Patzer Dani aber Pisa Mai c der herrische Naidoo Paretz Aura Sie keine natürliche Rohren Sammlung dazu drei Jahre Händel Tarnung.

कविता 167

ம்ம் கவித்து இட் ஸொவ் ஸ்ழ் ஸெட் ம்ம் மெரி மெய்பி எதுகை பவர் ஏ சரி மரியா அப்பு வீன பாய் தூனே நிஜ பிரித்தோம் கீழ சபரி யா மெரி மே பீ தொகை பாபர் ஏ சரி குமரியா அபிமானி மே பூவுலகை ஆ தூது சச்~ சாயி கீழ் டக ரியா நயன வரி வரி ரூ. வேக ஜாபு இயம்பஉல எங்கே? சபரி யா மெரி மே பீ வகை ப வரி சரி குமரியா நாகினி சத்து சங்கத்து தூனே பட்டு விஷய க்கி இல்ல எழிஅ கரிச கவியப் அ மூன் ஆட்சி தா தோப்பு படைசவு ராசிக்கு தரியா மெரினா மெய்பி தொகை பவர் ஏ சரி மரியா அபு வீன பாய் தூனே நிஜ பிரேதம் கேக்க வரியாகும்.

कविता 168

ఓం క విత్ expo headset అవును లాగి సున్న ర్యా దాగ్ మేరే పియా సం ముఖ్ కేసే జాము రే మేరే నిర్మల అతి పావన రే లాగి సుందర్ య సం ముఖ కేసే రాజముండ్రి చూపవు వ్యూహం సేపు బడి భారీ ac నేను మిగిలాం రే బలి మరియా చాల నావే బాత్ కరతాళ సర్ మా ఊరే లాగి సున్న ర్యా తాగు మేరియా సం ముఖ్ కైసే జాన్ ముర్రే మహిమను మే టూట్ హరీష్ కవి చరణం ఇప్పటికే నైన నా అశ్వ బహు రే లాగి సున్న ర్యా తాగి మెరిపించే యా స ముఖ కైసే జామూన్ okay

कविता 169

ఓం okay కవిత్వం ex ఓనర్ సుందరీ సఖ్యం ఊరి మతి బౌ రాణి అమ్మాయితో సంతన హతుర కానీ డబ్బుతో సఖి మే బనీ దివాని జ్ఞాన ఘట నగరాన్ని చుట్టి లోకల్ ఆజ్ మర్యాద సుద్ధ బుద్ధుడు సకల హే రాణి కు మత్తు చూడు సుమతో అన్ని తో ఉప జే శబ్దమే సూరత్ సమానం అబ్బ తోనే సత్తా అసంగత రాతి చుట్టు భయ్యా నా కానీ హరీష్ కవి గోపాల దయా సే హిరణ్ ఓహో భావన జానీ సుందరే సఖి మూరి మతి పౌరాణిక అమ్మాయితో సంతన హత్య బికా ని okay

कविता 170

कवित एक सौ सत्तर देखो ये जगह स्वर्ग का लो ही स्वार्थ बस पास समय वे जब तक ना स्वार्थ पूरा होता तब लगभग प्रेम बल्ला कहाँ पे देखो ये जगह स्वार्थ का लो भी स्वार्थ वपस पांच समय है कहा है समझे न मेरे मन मूरख सूट ही दुनिया से नए है लगावे अब तो उठ जाग मुसाफिर कहे मोहक की नींद में सो वे देखो ये जगह स्वार्थ का लो भी स्वार्थ बस पास समय है मनुष्य तन मूल मिला है । कहा है बे अर्थ मैं तो वहाँ पे अब तो हरीश कभी दूध अच्छे नहीं तो फिर चौरासी जावे । देखो ये जगह स्वार्थ का लोड ही स्वार्थ बस पांच सौ में आ गए ।

कविता 171

ఓం okay కవిత్వం expo కత్తార్ గురుజీ తెరాస హారాన్ని తు మేరి duty నయ్యా కు కినా రాణా మిళిత చుట్టే జమాన్ ఏసే రీతుల గా యి లాగి చోటు దిల్ అపర తో తెలియా దాయి. జ హక్కు పర కనేక ఇషా రానా, మిగితా తు మేరి duty అన్నయ్యకు కినా రాణా వెళ్త అప్ప నేర్ప రాయో కి సమాజం కూర్చున్నాయి. జనసేన ఖ్య ప్రీత్ హింసే హోల్కర్ ఖై కెరీర్ బ్రహ్మతో గాజు పిట్ట రాణా మిళిత తు మేరి duty అన్నయ్యకు కినా రాణా వెళ్త అభిమాని అపరాధ కరణ్ ఏసే గుణ హు తు మేరి తోటి అన్నయ్యకు కినా రానా వెళ్త అ గర్ సత్ గురుజీ తీరా సహారా ను మిళిత.

कविता 172

okay కవిత్వం expo bath అబ్బో విస్తీర్ణ భయో మనం మేరా భాగ యోగ చిత్త చంచల్ మన చోర చుట్టని లాగి తృష్ణ త్రిష దూర భయో మనక అంద్ ఏరా కామక్రోధములు రూపము చుట్టే అంతర ముఖి మన భయం మేరా అబ్బా ఇస్తిరి భయం మనం మేరా రాగ ద్వేష బీచ్ చోటన లాగే నందు మెల్ల you గనే రా yes see clip ఆ కింద హి clip ఆ లనే మిటా జన్మ మరణ కా పేరా అబ్బో వేస్తే భయో మనం మేరా హరీష్ శక వి జగన్ ఆశ చుట్టి మటన్ భయ్యా మనం మేరా చూడు చాలా దుర్గయ్య దారి కియా అన్నీ జీవిద్దాం. ముక్కు డేరా అబ్బో ఇస్తే భయం మనము మేరా భాగ you చిత్త చంచల మన చోర

कविता 173

वित्त एक सौ तिहत्तर मैं दूर ढूंढता था जिसको वो तो मेरे पास था हाँ या रूम उसी के लिए मैं हर पल उदास था था मुझको अजीत सबसे मुझको सबसे खास था मैं दूर ढूंढता था जिसको वो तो मेरे पास था जिसके लिए था व्याकुल हर एक पल हताश था झूठी जबकि वासना में हर एक पल निराश था मैं दूर ढूंढता था जिसको वो तो मेरे पास था ना थी कोई भी मंजिल ना कोई तख्तोताज था हरीश अब कभी ना मन में कोई भी उल्लास था मैं दूर ढूंढता था जिसको वो तो मेरे पास था ।

कविता 174

క విత్ exa ఉత్సవం అత్త తమ ఆత్మను మూర్ఖ జగమే జైన కూడ అబ్బో భిన్న తూనే సూట్ ఎం జనసేన తాత తోడ జిన్నా సంఘ తూనే ప్రీతి ల గాయ భక్తి భజన కు చూడా ఉన్న లోగ నేనే దిల్ తేరా తోడ బుట్టి కృష్ణా ఒకే కారణం మా యాక్ ఏపీ చెల్లితో దూడ లాక్ చదువు రాసి కానీ మీ జాకబ్ కాయ యమరాజు కూడా పరీక్ష కవిత్వ అబద్ధం సే చేత కర్ అచ్చ అవసరం బహు చూడ సమాజం మనము మూలక జగమే జీనా కూడ అభీ న తూనే చోటే జనసేన తాత తోడ

कविता 175

हूँ कवित्व एक सौ तो मेरे देश की है बात निराली तो मेरे देश की है बात निराली जहाँ होती है एक संघ मिलकर ईद दिवाली एक में सबको समझाते हुए हैं हिंदू मुस्लिम, सिख, इसाई याली मेरे देश की बात है निराली मेरे देश की बात है निराली जिसने प्रेम भाव सिखाया जगत को ऐसी भारत माता दिल वाली हिंदी, संस्कृत, पंजाबी, गुजराती, मैथिली, भोजपुरी, बंगाली तो मेरे देश की है बात निराली मेरे देश की है बात निराली भारत की पहचान है हर एक सुपुत्रों में यहाँ रामानंद कबीर रविदास अर ऊसूर तुलसी काली राहुल कृष्ण बुद्ध महावीर दादू दरिया कमाल लग का माली वो मेरे देश की है बात निराली वो मेरे देश की है बात निराली गांधी भीम, जवाहर, चंद्रशेखर, भगत सिंह बलिदान वाली हरीश विश्वगुरु की चाहे फलाई विश्वगुरु पहला नहीं वाली को मेरे देश की है बात निराली मेरे देश की हैं बात निराली

कविता 176

कभी तो एक सौ छिहत्तर आजाद परिंदे हम या रॉंग ना हाथ किसी के आएंगे हमें रोकने की जो कोशिश करेंगे वो तो फिर बच्चे बताएंगे झूठ ही दुनिया के हम यारों अब साथ नहीं रह पाएंगे छोडकर छलकपट को हम आप ही मैं खो जाएंगे नफरत सी भरी ये दुनिया से हम दूर बहुत चले जायेंगे खरी शक्कर अभी साहेब भजन कर आवाज गवन मिटाएंगे आजाद परिंदे हम या हूँ ना हाथ किसी के आएंगे

कविता 177

कवित्व एक सौ सतहत्तर जिंदगी को दोस्तों तुम किस तरफ ले जा रहे हो जिसको संग लेकर है जाना उससे ही को गवाह रहे हो गाडी बंगले सोहरत हैं ये किस लिए कमा रहे हो जिंदगी को दोस्तों तुम किस तरफ ले जा रहे हो मासूमों के मिलते छुरी तुम किस लिए चला रहे हो चोरी बेईमानी से तुम कितनों के दिल दुखा रहे हो जिंदगी को दोस्तों तुम किस तरह ले जा रहे हो निर्बलों को इतना तुम किस लिए सत्तर रहे हो अपने ही जुल्मों सितम से खुद को ही मिटा रहे हो जिंदगी को दोस्तों तुम किस तरफ ले जा रहे हो नफरतें ये दुनिया में तुम किस लिए बढा रहे हो हरीश कभी शांति को ना एक पल की तुम पा रहे हो जिंदगी को दोस्तों तुम किस तरफ ले जा रहे हो

कविता 178

तो एक सौ अठहत्तर नफरत से भरे ये दुनिया में हम यारो नहीं रह पाएंगे तुमको वो दोबारा तो तुम्हारा जहाँ हम दूर बहुत चले जाएंगे हम दिल न किसी का दुखा सकते हम गीत मिलन के गायेंगे हम तो पाँच ही मत वाले हैं किसी चाहे वहाँ उड जाएंगे छोड कर के हम तुम्हारा जहाँ एक अपना जहाँ बनाएंगे है लोग यहाँ सब पत्थर के हम सर को कहाँ तक टकराएंगे हरीश कभी मदन होकर हम साहेब में ही समय वे नफरत से भरी ये दुनिया में हमने यारो नहीं रह पाएंगे

कविता 179

ఓం okay ఒక్క విత్తు expo నాసి జల్ కే నూరే ఇలాహి ఘట్టం మహి కహే బతికే తుర్ జాకీ జగ మహి నా మెల్ల తావు జాకీ మక్కా నా మెల్ల తావు క రాకీ కురు అంబానీ నా మిగతా ఉ దర్గా హైజాకర్ నా మీ ఎల్తావ్ ఊరు జాకి మహీ నామ్ ఎల్తావ్ ఉ కథ నాక ర అనేసి నా మిల్ తావు హత్వా కి మహీం నా మెల్ల తావు ఇంజిన్ తో రేపు మేనా మెల్ల తావు ఖురాన్ కే మహి నా మిగతా నావు దాడి రక నేసే నామ్ ఎల్తావ్ టూట్ ఓపికే మహీ నేక్ ఈ కరుగుతూ హిత రియ మే డాల్ హే కేతు జాకీ

कविता 180

हूँ कवित एक सौ अस्सी मेरी सखी गाहे ना तो करें सत्संग रहे फिर हिम्मती क्यों जाए नित्य को संघ कहे क्या कुल होकर फिर थी जगह में अरुण झाडें कृष्णा तरंग करे लाख चौरासी भ्रमण थे आई अब भी चेते न दो कहे पतंग करे मतविरोध मत लोग बुलानी कहे तो है फिर हो के तंग मेरे यही तन पायु अनमोल रत्न धन कर नित संतन को संघ रहे हरीश कबीर साहेब बताया से मिट जाती का गफन रही सत्र संगत क्यों करें नहीं पढ विषय कुरंग हरीश कभी गुरु शरणं का मीट जाॅब गवन मेरी सखी कहे ना तो करें सत्संग रहे देरी माटी क्यों जाए नीति कुसंग करे ।

कविता 181

हूँ हूँ कवित एक सौ इक्यासी हमें नफरत न तुम सिख लाओ हम प्रेम के पंथी काफी रहे हैं नफरत से हम न कभी तुम को मिलेंगे प्रेम से चाहो जब हाजिर हैं हम प्रेम के पाँच ई का फिर हैं नफरत से हम जी नहीं सकते ट्रेम में इतने शातिर हैं हम प्रेम के पंछी का फिर हैं सुन ले नफरत से भरी दुनिया हम हाथ ना तेरे आएंगे हम वो मस्ताने पाँच ही है हम छोड सभी को चले जाते हैं हम प्रेम के पंछी का फिर है हरीश कभी कहे बात ये सच्ची हम कवि री अलग जगह जाते हैं काम ट्रेनिंग के पंछी का फिर है हमें नफरत ना तुमसे खिलाओ अम् प्रेम के पंछी का फिर हैं

कविता 182

ఓం okay క విత్ ex శోభ యాస్ ఈ నీటి సూరత్ ఏసీ మత వాలి ధర తీ చూడు గగన్ గ్రహణ ఇవ్వాలి గాగ రమే సాగర్ బ రాకే సముద్ర తామై బుద్ధి ఇవ్వాలి. త జుకర్ జగ కి మాన బడాయి ఆపేసి మెయిన్ రమ్మని ఇవ్వాలి. మీరి సూరత్ విదేశి మత వాలి పర నిందా పరుచుట లీ జాగే ప్రేమ బడవ నివ్వాలి pull టి చాల హెచ్ చలపతి జగ సే బాత్ భయ్యా కి నిర్ ఆలి మేరీ సూరత్ ఎసి మత్తు ఇవ్వాలి sub గట్టు అప్పుని ఆత్మ దేనికే పరువు ఉప్పు కారం ఇవ్వాలి పరేష్ కవి ఎసి తార్ ఈ లాగి దు విధాన సావ నవ్వాలి మీరి సూరత్ ఫై ఎసి మత ఇవ్వాలి. ధర అతి చూడు గగన్ రాణి ఇవ్వాలి.

कविता 183

हूँ ऍम कवित एक सौ तिरासी मुझको फिकर नहीं है जमाने की मैंने पी रखी है मैं खाने की आकर के मस्तानों की नगरी में मत बात करो पैमाने की मैंने पी रखी है मैं खाने की मुझको फिक्र नहीं है जमाने की मैंने पी रखी है मैं खाने की जो हर गम को पीकर बैठे हैं उन्हें सिकर नहीं जहाँ तनी की मुझको शिखर नहीं है जमाने की मैंने पी रखी है मैं खाने की हरीश कभी गोपाल दया से मिली खबर कबीर तहखाने की मुझ को फिर घर नहीं है जमाने की मैंने भी रखी है मैं खाने की हूँ

कविता 184

కవిత్వం ex వచ్చావు రాసి యే హి ప్రార్థన హే ప్రభు subject కళ్యాణ హు నా హు అందుకీ కో యః సాకే పూణే అధర్మ నువ్వు సక్కు ఒక రూమ్ ఆదర్శ కదా ఉన్న భూమే సేపు మా నువ్వు రఘు మిత్ర త సభ సే సదా నా భూ లేసే అభిమానులు ఉన్న బోర్లు కవి ఇక్కడ వి వచ్చన్ సభ ఆపేయడం కరుణ వా నువ్వు జోడీ హు వే సంసారమే సంత ఫకీరు భక్తజనం స భూమి రకము నిష్ట సదా నిష్పక్షపాతంగా అతికి కన్ను నువ్వు అఖిల్ విశ్వమే శాంతిః ఉ మన మేర హే హీ భావన సత్య ప్రేమ హింస భక్తి మే హమ్ sub సదా కుర్మా నువ్వు సాహిబ్ యొక్క వీరికి భక్తి కర్ణ హీ జగమే ఆవ నిజా నువ్వు హరీష్ కవి పాలన కరి ఆగి బీజ ఫర్మానా నువ్వు హిహిహి ప్రార్థన హే ప్రభు sub జీవం ఒక కళ్యాణ్ హు

कविता 185

कवित एक सौ छियासी का ही तो बुलाया स्थिरता माया की नगरिया में कुछ नहीं मिलेगा तुम को भ्रम की बज रही है हमें न गुरु भक्ति ना संत की सेवा दाग लगावे कहे बाली उमरिया में कुछ न मिलेगा तो जो को भ्रम की बचत लिया मैं अब भी समय से तो मन मूरख नहीं तो होगी पेशी रोएगा यम की डर वरिया में कुछ न मिलेगा तो को धमकी पचारिया में हरीश कभी तज मोहमाया ये जगह की मिलेगा ठिकाना तुझको साहेब की डर वरिया में कुछ न मिलेगा तुझको भ्रम की बजट दिया मैं कहाँ है तू भुला या फिरता माया की मैं प्रिया में

कविता 186

कवित एक सौ छियासी यारो में जगह की मैं सिल से अब दूर गया हूँ छोड के सारे अहम ऊॅट गुरूर आ गया हूँ जिसको जहाँ ढूंढते सभी मंदिर और मस्जिदों में उसको मैं अपने दिल के ही करीब पांच चुका हूँ यार हूँ में जबकि मैं फिर से अब दूर गया हूँ देख के अपना आप है रासा हो गया हूँ हरीश अब कभी मैं भूल कर सब खुद में ही हो गया हूँ यहाँ तो मैं जगह कि मैं फिर से अब दूर गया हूँ छोड के सारे अहम ऊॅट गुरूर आ गया हूँ

कविता 187

कभी तो एक सौ सत्य से लोगों का काम है कहना वह कहते हैं कहते रहेंगे हम तो दीवाने मस्ताने हम चलते हैं चलते रहेंगे जो जुल्मों के हैं सौदागर वह रहमों दया क्या करेंगे अपनी करनी का फल सब पाते हैं पाते रहेंगे छोड क्या हरीश तुझे पडी हैं हम मगन थे, मगन रहेंगे, लोगों का काम है कहना वह कहते हैं कहते रहेंगे ।

कविता 188

கவித்து எய்ட் ஸொவ் தட் பஸிங் மேக்ரோ தோ மன் பஸ் கையோ, நாமக்கல் சத்து வாதி ஜுஸ் அமுதா வாதி நீர்ப் ஆக்சிஜென் அதிகம் ஈர் ஜிம்க்கு வாணி அவன் கண்டு பாவம் பாத்து, இது நேரோ தோ மன் பஸ் ஐயோ நாம கபீர் ஜாக் க்ழௌன்ட் ஹாகி தீரத்தம் மூடத்து கரு மீட்டு என்ன பேறு? தா கூச குரு தேவல க்காவே பிர்லா பாவி நிஜ சரி இரு மேரூ தூதுவன் பஸ் கையோ நாம், மக்க வீரர் ஜோகன் ஜோகன் கீத்திரம் ஷாப்உ ரோஜாவே பசே அமி நதியா கே தீர அ ரிசக் கவின் நிஜ அந்தர் கி கத்தி ஜானி கோவி சித்தப்பா பகிர மேரூ தூதுவன் பசங்க யோ நாம மக்க வேறு

कविता 189

हूँ और हूँ कवित्व एक सौ नवासी हूँ नजर ऐसी लगाऊ जो सकते मेहरबान हो होते भावना हर दिल का कदर दान हो न हो देरी मित्र सभी पे करोड वान हो ज्ञान पैरा सील संतोष की खान हो नजर ऐसी लाओ जो सकते हो नहीं ईश्वर अल्लाह न राम रहमान हो नहीं अच्छा अतुर नाती नादान हो नजर ऐसी लाओ जो सबसे मेहरवान हो । न ऊँच नीच जात पात हो न काजी न पंडित नव हम्म ना खान वो नजर ऐसी लाओ जो सबसे मेहरवान हो एक ही धरती और एक कृषि या सामान वो हरीश अब कभी अखंडता का पूरा ज्ञान हो नजर ऐसी लाओ जो सबके मेहरबान हो न हो रही भावना हर दिल का कदर हो

कविता 190

हूँ और कथित एक सौ नब्बे कोई पहुंचे हैं गुरु पूरा जाके माया चरण के धूरा हद घर छोड बेहद घर आसन हर पल हाल हजूर लोकलाज कुल की मर्यादा तक के निशन रहे सूर कोई पहुंचे हैं गुरु पूरा जाके माया चरण के धूरा मैंने इंद्र से तोड के नाता बचाव से या ना हद दूर तीरथ न मूरत पूजे पानी न पत्थर आत्मज्ञान का नूरा कोई पहुंचे हैं गुरु पूरा जाके माया चरण के धूरा हरीश कभी तब जगह की झूठी आशा जब मिला है परम पद पूरा कोई पहुंचे हैं गुरु पूरा जहाँ के माया चरण का धूर मतलब

कविता 191

हूँ और कथित एक सौ इक्यानवे आप जाती पंच हमारा सुनो भाई नमक हिन्दू धर्म मान क्षत्री ना मैं वैश्य क्षुद्र का हाई नाव में मुस्लिम काजी मुल्ला न शेख सैयद पठान कहाई आप जाति पंथ हमारा सोनू भाई धरती आकाश जलवायु अपनी से सृष्टि रचना है भाई एक ही रह से सब जगह उपजा तो क्यों भेद लगाई जाती बंद था हमारा सुनु भाई सत्य सत्य जो हर पल चलता तो सब दुख नसाई हरीश कभी कहे सत्य ही बातें मन की दुविधा मिटाई जाति पंथ हमारा सुनो भारी हूँ

कविता 192

हूँ और कथित एक सौ बांधते जाना तो दूर मुसाफिर निकट तेरा राहुल है करना तो प्रीत जगत से जगह मैं दुख तमाम है जैसे दिल में तेल बस से हैं पत्थर में रहता आग है जाना ना तो दूर मुसाफिर निकट तेरा आराम है जैसे जल में जी वजन तो हर घट में रहता प्राणी है जैसे गगन में सूरत चंदा तारा गन सम्मान है जाना न तू दूर मुसाफिर निकट तेरा राम है जैसे बीज में वृक्ष है रहता कस्तूरी मृग पास है तय से हरी श्रृंजय जहाँ ले मिलेगा कहते संत सुझाव नहीं जाना न तो दूर मुसाफिर निकट तेरा राम है ।

कविता 193

हूँ और कवित्व एक सौ तिरानवे बडे बडे धर्माचार्य सुनो जो साहेब का फरमान है मूल्यवर्धन शाॅप आ रखी ये कैसा घमसान है सत्य प्रेम हिंसा भक्ति मेरे पंथ की जान है श्रील संतोष दया भाव वही दो मेरी शादी है बडे बडे धर्माचार्य सुनो जो साहेब का फरमान है निर पक्षी निर्भ वेरी जो है वही तो मेरे प्रौढ है और प्रतिष्ठा में भूल गए तुम नहीं मेरे जो फरमान है बडे बडे धर्माचार्य सोनू जो साहेब का फरमान है मठ संपत्त टीमें भूले वो तो बडे अज्ञान है हरीश कभी मैं सांस हूँ कहता पडे चौरासी खान है बडे बडे धर्माचार्य सुनो जो साहेब का फरमान है मूल्य ॅ पार रखी, ये कैसा घमासान है ।

कविता 194

कथित एक सौ चौरानवे साहब तुम्हारे नाम पर जगह मची है लूट सात से को चुप चाप बिठाया सोर मचाते झूठ बनी सब दोहराव ते चले न कोई पूत चलो तुम्हारा कोई संत है सोई सिंग सपूत साहब तुम्हारे नाम पर जगह में मासी है लू कमी नहीं मठ मंदिरों की जैसे भेडी ऊंट गली गली हरीश देख क्या सब में बनी है फूट साहेब तुम्हारे नाम पर जगह में मची है लू ।

कविता 195

కవిత్వం ex soap పిచ్చా నువ్వే ఆవు చలి ప్రాంతం వస్తది శమీ జ హా జీవన కలే షమీ కామన్ వ్యాపి జ హక్ రోదన వ్యాపి లోభము అంధకారమే చూడు కి జగన్కి మాయ ఛాయా తరుపు వల్లి రహి ల వలే ష మే ఆవు చలే హమ్ తో సు దేశమే హిందూ ముస్లిం జహాన్ శక్తి సాయి బ్రాహ్మణ పండితులు కాజీ ముల్లా ఆవేశమే ఆవు చలే హమ్ త్వం వస్తది దేశమే జ హా నహీ ధర్మ దీనికి జగ డే జాతి పాతం ఛ నిజ కి భేదమే ఆవు చలే హమ్ తో వస్తది దేశమే జహాన్ హీ వేద కురాన్ కి జీవన ఉచ్చ లే హంతు ఉద్దేశమే హరీష్. కవి జవహార్ ఆ గణ ద్వేష హే సదా రహి సమావేశమే ఆవు చలే సొంతం వస్తది దేశమే జహాన్ జీవన కలే షమీ.

कविता 196

okay కవిత్వం expo చెయ్యనిది కు దిన్ చుట్టు జాయిగా సా రాజ్ సమాన ధర రాక ధర హజ్ ఆయిగా సారా ఖజానా చుట్ట అంగీ మాతా పితా సుత్తి భాయి అవ బంధు మృత రహ జాయిగా కుటుంబ పరివార ఇక దిన్ food joy గా సార్ యాజమాన్య న సత్సంగం అత్తునకు నేక్ ఈక రూపాయ భజన కియా తో వచ్చావు రాసి height టీకా నా ఏక దిన్ చుట్టు జాయిగా సారా సమాన హరే ష కవి టు అబ్బ హూ సే చేత కర్ food duty మాయ అయ్యే అక్కడ ది ఖానా ఏక దిన్ చుట్టు జాయిగా సా రాజ మాన ఘ రాకా ధర రహ జాయిగా సారా ఖజానా

कविता 197

okay కవిత్వం expo సత్యాన్వేషి చోరి చోరి చుక్కకి చుప్కే దగ్ ఆకరి మన వివాహం సే హిహిహి car అనే అమ్మాయి దుక్కి ఇవ్వు బాబు lock చదువు రాసి గు మాది జగన్ సే నీకు దూర్జటి p అయ్యకి తిన్న హరతి చల్ల బుక్కపట్నం curry సబంధం saying చోరి చోరి చుప్కే చుప్కే దగ్ ఆఖరి మన వివాహం సే జ్యూట్ ఆధిక వాక రైతే పెడితే వివాద త్ భక్తి నక రితేష్ సహా చేయమని సే ధన సంపత్తి బలుపు పథక గుం ఆన్ హే ఒక్కర్తే పరిషత్ కవి చోర పై చానా సంత గురువుకే సంఘ సే చోరి చోరి చుప్కే చెప్పే దగా కరీం మన వివాహం sale

कविता 198

हूँ और कवित्व एक सौ अट्ठानबे हूँ मेहसाना खरीद दोस्तो तो मुझ पर कर देना सब जाने लघु में दुनिया से तो दुख सब खुशी से कर देना जब लोग सजायें थी मेरी कुछ स्कूल ला तुम भी रख देना घर लोग मुझे जहाँ दफनाएं कुछ मिट्टी लात तुम रख देना फिर कभी ना हम मिल पाएंगे ये सोच के भर लेना हमें नफरत नहीं आता करना ये खबर सभी को कर देना अगर भूले से मुझ को दुनिया वाले ले जाकर के जल आए जीते जी तो न प्रेम मिला मेरी खाक से ही तुम लिपट लेना फिर शोक से तो माँ आजाद जियो हर जिद को पूरी कर लेना हरीश कभी का किस्सा तुम जी चाहे तब खत्म कर देना ऐसा नाक दोस्तों तो मुझ पर कर देना जब जाने लघु में दुनिया से तो रुखसत खुशी से करते ना

कविता 199

కవిత్వం expo నిన్ యా నిది గురు, కంబోడియా తో వల్ల కీలక అవి పాప mate కి frame బడ అవి కూర్చ నీ నచ్చక భేద! న రాఖి సమంత దృష్టి సభ hip ఏలా వే మన ఇంద్రియ sale తోడుకి నత్త అవగాహ గ హి కి గగన్ మహాదేవి తనజీ ప్రపంచ వేద విధి క్రియ సాహిబ్ నామ love love అవి హరీష్ కవి కో సంత సుజనా పారుపల్లి ఆత్మానుభవం దశా వే గురు గమ్ము హో యతో అల కుల కావే పాప మే టికే ప్రేమ బడా వే

कविता 200

క విత్ దురుసు నిర్మల మన వాసే ప్రభు గుణ కాయలే జనం జనం కి big ready మన ఇల్లే చూడు నీకే చల్ అరుకు పట్టుకో సత్ సంగతి నిత్య రాయలే logic ఆర్ పేరు భావ జగత్ సత్య దయా చిత్రం లైలా ఈశ్వర అల్లాహ్ వాహ్ హే గురు god హరీష్ కవి కజ్జి మాను గుమ మానుకు అప్పుడు నే ఆత్మే సమయ లే నిర్మల్ మన వాసే ప్రభువును కాయలే జనం జనం కి beginning దీప నాయిల్లు

कविता 201

कवित्व दो सौ एक कैसे छुपाऊँ दाग सब खेलते थे मोरि चुनरिया सफेद रही ये जग मोहि सखी पल पल रहा है देख रहे हैं कैसे छुपाऊँ दाग सके रे मोरि चुनरिया सफेद मेरे बाली उमरिया साल नवे मन में बहुत देश रहे कैसे छुपाऊँ दाग सखी रहे मोरी सुनरिया सफेद रहे दाग पुराना सखी छो तक नही धो वक्त हो वक्त मोरी बाहर दुखाते कैसे छुपाऊँ दाग सकी रहे मोरी उमरिया सफेद करें हरीश कभी पीया मिले अविनाशी कैसे पिया संघ से जिसपे सोनू हनीशा रहे कैसे छुपाऊँ डाल सखी रे मोरि चुनरिया सफेद

कविता 202

కవిత్వ దోస్ ఓహో ప్రభు మరి జీవన్ కే తుమ్మి సహారా తుమ్హారా ఏలీ యే జీవన్ హమారా పడి మధ్య ధార్ ఏమే నన్నయ్య కుమారి తుమ్మిన దూర జాజు ఒకరే బాబు కి పార తేజస్ కి హామీ ఆరోజు హ రేఖ people పుహార్ ఏలీ మేన సక్కు చదివార మరీ రహే మంజిల్ bus సే తుం ఇవ్వు మేరీ హార్ట్ నడకనే bus తో ఇంకో పుకార్ ఆ దేఖ యే దునియాలో కి ప్రీత్ ప్రీత కు been ఆ స్వార్థ కే నకు పుచన్ ఆహార తుమ్మి చూడక రు హరీష్ జీవన సక్కంగా తరపు మారుగా చేసే మీన నీర been ఆధార ప్రభు మీరే జీవన్ కి తుమ్ము సహారా తుమ్హారా రేలా హే జీవన్ హమారా

कविता 203

वो तो दो सौ तीन मुझे लोग कहते हैं पागल दीवाना ये सच है कि यार हूँ मैं हूँ मस्तान मेरे दी जाने पन से ये खफा है जमाना वजह एक है वो न बन सके परवाना मैं चलता था चलता हूँ चलता रहूंगा अंधेरो में दीपक बनकर चलते हैं जाना मेरी राहे मंजिल हैं निज बेखुदी मिटाना भुलाकर जमाने को है खुद में डूब जाना हरीश क्या करें तो ये जगह वालों से के हैं जिनकी फितरत मिलकर पिछड जाना मुझे लोग रहते हैं पागल दीवाना ये सच है कि यार ओ मैं मस्त

कविता 204

कथित दो सो चार अजब है लोग दुनिया में जो पल पल में बदलते हैं जगह कर प्यार दिल अंदर जो फिर उसको दुखाते हैं नहीं हम है उन लोगों में जो चलते हैं तो चलते हैं हैं जिनकी चोर नजरों में वहीं नजरे बदलते हैं नहीं शिकवा गिला कोई नहीं हम किसी से चलते हैं हमारी बस खाता इतनी जो सबको अपना समझते हैं मिले अगर प्यार से तो हम जहर पीकर निकलते हैं हरीश हैं घर जिलों में अपना हम तो बस दिल में रहते हैं अजब है लोगों की दुनिया में जो पल पल में बदलते हैं

कविता 205

कथित दो सौ जग भाई जग अब हूँ गईल देहान् युवा ढेर देरी सूट ले से होला बडी हानवा जन्म जन्म से तू सूत महिला अनमूल अवसर के ना ही तो आपके ज्ञान जहाँ हरीश पुकारी दिन वहाँ के भनवाड दुःख ही दुःख दुःख के योनि चौरासी खान बात जग भाई जग अब हो गए ऍम ढेर देरी सूट ले से खोलना बडी हानि

कविता 206

ベッド 同窓 ちゃ 彼 ら 行 の 音 霊 が 言え ば バット バター が 探査 美名 を 抜け て な パルス で ね 倍 が 上がる え? 池田 アプリーカ 四 分 へぎ あと で 行く な 家 じゃ アムコ が いい が なさら 園芸 春 じゃ 杏 珠 に こう 舌尖 吠丸 家 ザ マネー ペチャ 映画 全然 べ ちゃ ん 家 じゃ 抜く アンティー じゃ が え が ま 農家 あっぱれ ちゃん さ れ ちゃ は メンヘラ 映画 さ って やっぱり 今 は 偏差 パーティー か ジョン じゃ チャイ が 入社 カビ ジャグ 勾留 ま 元 の 方 道具 じゃ ない が から 五 の タレ が いい パット バター が いい か

कविता 207

కవిత్వం దోస దోస ఏక దిన్ జుబ్బా పరిస్ సభకి అప్పు నాభ్ ఈ నామ్ హాయిగా రేఖ నగర్ గ లీనమై లోహ మే గునుగు నాయిక just within సమానా దిల్ కి ఆ was soon జాయిగా bull ఆకర్కి సుష్మ నీవ్ దోస్త్ బన్నె హాయిగా జాతి వలన భీద చూడు గలే మిల్ జాయిగా గుర్రాన్ని రకాల చోట బడ పోయిన రహ జాయిగా హరీష్ కవి జబ్బు ప్రీత్ ఆపని సభ సంవత్స జాయిగా ఏక గింజలు మహాపరి సభకి అప్పు నాభి నా మాయక

कविता 208

कभी त् दो सौ आठ है अपना क्या यारो यहाँ पर हम तो हंसी पर आए हैं माफ करना और वो हम को हम खाता बहुत कर आए हैं फिर नाक थी हम मिल पाएंगे ये सोच के मिलने आए हैं मिलना है तो जी भरकर मिल लो पूरी तैयारी कर रहे हैं कैसे तुम्हें हम बतलाएँ हम कितना जाग के सताएं हैं बहुत सुक्रिया यारो तुम्हारा जो प्यार तुम्हारा पाए हैं वरना बहुत पहले मर जाते इतना चोट जिगर पर खाई हैं एक बुझते चिराग के जैसे हम अब तक जलते आए हैं हरीश अब कभी परदेसी पर आए सदा के लिए होने आए हैं है अपना क्या यार वो यहाँ पर हम तो पाँच चीज पर आएँ

कविता 209

कवित दो सौ नौ मिले जब शब्द सूरत से तो ये तन मन मगन हो जाते हैं निकट जवाब पुरा आपके हो गए तो कैसे कर दुविधा बिना सुई के कपडे को कहूँ कैसे को दर्जी सीधे बनावे कैसे वो निर्मल प्रभु को जब तक मन नहीं निर्मल हो गए देखें दुनिया को जाकर खुद का दर्शन नहीं हो गए बिना सुमिरन भजन को कहो कैसे मन निर्मल हो गए हरी शुभ पाया वह परम ऊपर जहाँ आवागमन हो गए मिले जब शब्द सूरत से तो ये तनमन मगर हो जावे

कविता 210

క విత్ దో సోద స్ ఆవు హంతు మెల్ల కర్ ఏక తకి మీసాలు పని నః ఒకో హిందూ ముస్లిం నాకు sec అయ్యి సాయి ఇవ్వని మానవ హేతు మానవ తారక్ ఏన న ఫిరత్ కి పోయి ధర్మాన్ని just దేశ క ఖ ఆయన అంజన్ సు దేశ పరుగులు భాను అవ్వనే జోకర్ దేశానికి రక వాలి ఉంకో హమ్ సలాము ఆఖరి జన్మే రామకృష్ణ, మహావీర బుద్ధ రామానంద తులసి, సూర రహీమ్ రాసే న వీర సదన, గోపాల బిజిలీ ఖాన్, అనసూయ అన్నారు. మత సావిత్రి లోయి లక్ష్మి, ఝాన్సి ఇవ్వనే, గాంధీ, భీమ నెహ్రూ, జవహర్ భగత్ సింగ్, ఆజాద్ పల్లె, హరీష్ కవి, బంధం కరే, ఓర్ బీ జోన్, మహా నువ్వు అనే ఆవు హంతు మెయిల్ కర్ ఏక తాకి మీసాలు పని.

कविता 211

ఒక విత్ హోసోర్ గార చల్లితే ముసాఫిర్ తు చల్ల రేఖ కేల ముఖ్యం దేఖ నచ్చాయి june th ఆర్థిక మేల అభి రచయిత curry మనం మేరే lock phone ధర దూరం తూనే జరగక చేల నచ్చలేదు ముసాఫిర్ తుచ లేరి కేల జిల్లలో గన్ సే ప్రీత ల గాయ పువ్వుల్లో గోనే తిరిగి దిల్సుఖ్ ఏల తుచ లది ముసాఫిర్ salary కేల అబ్బో సమ లజ్జా చేతి కర్ర మనవ కర్ణుడు సచ్చే సంతన సంఘం మేల చెల్లి ముసాఫిర్ చల్లి అకేలా genco ఫికర్ హెన్ నిత్య మంజిల్ కి చుడితే ముసాఫిర్ తుచ రేక్ ఏల హరీష్ కవి గురుదేవ దయా సే pi ఓం నిజాం శాతం అనుభవాలు వేల కూర్చో అల్లరి కేల q దేఖ నచ్చ హేతు june th అధిక మేల

कविता 212

గ విత్ దోస్తు భారత్ జబ్బు up నాప చాన లియా తో or జగన్కు రాజాని యహ భ్రమ మే సబ్జెక్టు భూముల హే నిజం పండుకో నకు పై వచ్చానే దూక హీ దూక హేయ్ ఆరో సూట్ hip ఆయన ఫీల్ ఐతే బానే job అప్పుడున్న పాప జాన లియా తో ఓరి జగన్కు catch అని జబ్బు పాలన సాకే పరివార కు తొ నిక లే మట్టు మందిర్ ఇక భుజా నే జేసే హంస బగు లాకి ఫర్ హెల్త్ తేసే సచ్చే జూన్ తేజా నేనే job up నాప జాన్ లియాఖత్ or గిరిజనులకు తేజాన్ని కుక్క ర ము కి కట్టిరి బానే టక్కర్ nickel పడే జగ సమాజాన్నే హరీష్ ఫికర్ హేతువు కు జబ్బు తూర్పున కపట హృదయ ఠాణే జబ్బు అతను పాప. జాన లియా తో ఓరి జైలుకు క్యా జాని!

कविता 213

క విత్ హోసోర్ తేరా బోలా రామ కే పంచి తు రామ బోలా శుభ హ దోప భార్య క్షామం ఆటో యా ముగ్గుల బోలా రాముకి పంచి తుర్ రామ మూల కూల జ్ఞాన క పాట విశ్రామ బోలా పాపాయి కే పద స్థిరీకరణ క బహు దూల బోలా రాముకి పంచి తుర్ రాము బోలా రాజకీయ మాన హనుమాన్ విష కే గటర్ ఈ కుల హరీష్ తైల ని వేరా మిల్ సమయాన మూల బోలా రాము కే పంచి తుర్ ఆ మూల శుభ తోప్ ఆహార్య క్షామ టూ య మూల

कविता 214

कवित्व दो सौ चौदह छोड आए हम वो गालियाँ जहाँ लोग सयाने रहते हैं पहले अपना पन दिखलाकर फिर बेगा नहीं हो कहते हैं हम तो बोले सीधे साथ हैं झूठ को भी सच सा समझते हैं जहाँ लोग बदलते पल पल ने वहाँ पर ना हम तो ठहरते हैं जहाँ लोग जुल्मों सितम अगर थे हम खामोशी से रहते हैं अपनी आदत है विवादत की हम तो विवादत करते हैं हरीश कभी इसलिए हम परदेशी पर आए हो रहते हैं छोड आए हम वो कर लिया जहाँ लोग हिस्सा याने रहते हैं

कविता 215

క విత్ దోస కోపం విరహం ప్రేమ మగం రాహు దిన్ రా ఆఖరి జగత్ సేవ సంసార స్వార్థ క లోభి స్వార్థం been పూచే జగన్ నా బాధ ఆయా ధాతు భజన అంక ర నీకు జూన్ టాకీ యా జరగక సాత్ చూడు they జూన్ ఉంటె జగత్ కి ఆశ సంఘటనకు చెప్పి జాతి ఐతనే గైతే జగత్ సే కౌన్ కరే ఉన్నయ్య ఆది నిరంజన బ్రహ్మ విష్ణు మహేష్ గణేష్ కి బాత్ రామకృష్ణ బుద్ధ మహావీర రామానంద క వీర రెడ్డా తులసీ సూర్య హీ మద్ ఆదు ధైర్య కాళీ people టుక్ ఈవా చివరి మీరాన్ అసూయ రత్న సహజ జోలు సావిత్రి కి

कविता 216

with those తో solar అఖిల విశ్వ కు యొక్క సూత్రమే బాధని ఇకారం ఆ నత ధర్మ దీన జాతి భాషా ఖ జబ్బు బహుత్ బడ్ ఆగమ సాన్నిత్యం సత్య ప్రేమ అహింస భక్తి తప్పు సాహెబ్ ఒక ఫర్మానా గత మ గర్భం దేవా రోజునే మెయిల్ కర్ కియా నహీ సమానత నువ్వు నే బీ కియా వయసు సాహి జయ సాహిత్యం దు ముస్లిం దుకాణం అంతా వంశ పార కి కారక urban ఆయా చౌక పర్వా నా ప్రా విధానంతో ధర్మ దాస గరీబ్ గ్రామ పాలక ఏక శాప కవా నత అతన్నీ కర్ణిక ఫలి మిల జనక చేశాక కామత్ అబ్బో దీన చేత తో సోను పోగా వహీద్ జోరు కాంచనా మత హరీష్ కవి కః బస్సు అవుతున చిత్త నా హమ్ పు జ్ఞాన గత కర్ణా మాఫ్ కథా వీటితో సమస్యలే నానా దా నత. అఖిల్ విశ్వ కు ache సుత్తి మాత్రమే బాగా అంధుడిని. అరుణిమ మొత్తం

कविता 217

కవిత్వ దోస సత్ర హ చు మా నైన తు మేరే మన మీ త్రి దుఃఖ చల్లో ఒక పట్టు జగ కి రీతి రే cook you కర్త హే సబ సేస్ ఆచి ప్రీతి రే job జగత్ కరే జూన్ tea ప్రీతి రే మత్ కర్ మత్తు కర్ర వ్యయాల దాని గనే బాజీ సుమధుర సంగీత రే కథ సత్త సంగతి సుం ఐరన్ భజన అవ భీతితో మాన లేసా హెవీ కి శిఖ రే జగన్ జగన్ సేతు హరిత ఆయా yeah మహిమే బన్నీ సభ సంత ఫకీర్ ఈ పరీక్ష కవి తు చూడు మొహం ఆయ లేకే చల్లుతూ గురువు జ్ఞాన జాగీర్ వేరే ఐక్యం మా నేన తో మేరీ మన మీత రే భూ ఖచ్ఛితంగా ఆవు ఒక పట్టు జగ కి శీతరి okay

कविता 218

कथित दो सौ अठारह अपनी शिकायत बस इतनी है धर्म के धंधे वारों से सृष्टि एक है धरती एक है पवन एक है पानी सूर्या एक है चन्द्रे कहे कुदृष्टि है हजारों से अपनी शिकायत बस इतनी है धर्म के धन देवारों से एक मानव ने कर्म बनाया कर्म से क्या क्यों जाती मानो ही भाषा का रचयिता भाषा रखा बहुत भाती से अपनी शिकायत बस इतनी है धर्म के धन देवारों से एक ही बचा हार्ड मान मुत रहे एक ही रह से आते क्या अलग है तुमसे अलग क्या जमाने से अपनी शिकायत बस इतनी है धर्म के धंधे वाहनों से रूप भाषा से अलग कर दिया अलग कर दिया पार्टी से हिंदू मुस्लिम, सिख, ईसाई बहुत जय नहीं रविदासी जब को अलग करने के फेर में खुद से अलग हुआ पापों से अपनी शिकायत बस इतनी है धर्म के धंधे वारों से धर्म से नीचे हूँ से हैं होते नीति क्या क्योंकि जाती से हरी कभी विचार हैं कहता ये जग के अपराधी से अपनी शिकायत बस इतनी है धर्म के धंधे बारह से

कविता 219

ర విత్ దోస తో ని ఆనంద మగ అంతు పూజా మనము మేరే మెట్టు జాగింగ్ ఈ జమ్ము కే పేరే ముక్కు రూపం బదులు కొత్త జగన్ ఏరే రాగ ద్వేష సైడ్ షాక మొన్న అవి వేరే అత్యున్నత భజే నామమునకు మనం మేరే ధన సంపద అన్న సాత్ జాయేంగే తేరి భూ లా ఆఫ్ పెడతా తు మొహం i ఆమె కథ సత్త సంఘ హరీష్ లిమిటెడ్ దుఃఖ గనే రే ఆనంద్ మగ అంతు పూజా మనము మేరే మిటు జాయిన్ అంగి జమ్ము కే harry.

कविता 220

कवित दो सौ बीस कहीं और जाने की जरूरत नहीं है के अपना खुद का तो अपनी दिल में पास है मेरी बातें सुनकर अचंभित जमाना है वजह वही है इसलिए सब उदास हैं है जिनकी दूरी अंतर्यामी रब से उन्हें हज तीर्थों से लाखों लाखों से है नहीं चाहिए हम को दिया घृत बाटी के हर पल ज्ञान की ज्योति प्रकाश है नहीं मेरा रब बसता मंदिर मस्जिदों में क्या अपना खुद का तो अपना सबसे खास है मैं नहीं मेरा मक्का है, दिल्ली ही है द्वारिका का या ही काशी मेरा कैलाश हैं । हरीश कभी फिर मगर मस्ताना के हर पल मन में नया उल्लास है कहीं ओर जाने की जरूरत नहीं है क्या अपना खुद का तो अपने ही दिल में पास है ।

कविता 221

క విత్ దోస తో ఎక్కి అ book కి భార్య సమాహారం ప్రేమ న్ అవ్వకి భార్య సమాహారం తన్ మందం సబర్బన్ ఒక్కరికే భక్తి భావం ఊదారు touch car మత్తు పంతం ఇంకా చ గడ అప్పుడు నా పులిహార పరిత్రాణాయ పరిశోధన స్వార్థ త అప్పుడు నా కరుణ సుధా రో గాడి బంగ్లా మాలి ఖజానా సంఘటన జాతి తుమ్హారా నీకు స్వార్థం కారణం బహు ధర్మ పరమార్థ తో ఖర్చు దారు అ book ఈ జో మన చేతన కర్రీ హు భేరి ఇచ్చావు రాసి తుమ్హారా సద్గురు దయా సంతన కి సంగతులు హరీష్ తుమ్హారా రోడ్ ధర్ అవ్వకి వారి సమాహారం ప్రేమను అవ్వకి భార్య సమాహారం

कविता 222

रवित दो सौ बाईस अरे तू धीरे धीरे चल ना यू फल फल में बदल मोहन में कब तक उलझेगा अब तो तो आगे निकल न गाडी बंगला हवाई जहाज वहाँ तो जाते हैं पैदल यहाँ स्थिर है कोई जाना है आज नहीं तो कल क्यों करते चोरी बेईमानी क्यों करते बलात्कार कतल हरीश दूध से तो जहाँ प्यारे अब तो तो संभाल संभाल कर चल अरे तू धीरे धीरे सेल नहीं वो तो पल पल में बदल

कविता 223

okay కవిత్వం హోసోర్ కేష్ అధికరణ హమ్ కో జగన్ ప్రభావం ఎంతో ప్రేమ మగ నాల మస్తు దివాన్ సత్త సంగతి మోడీ అతిశయ భావే సత్త సంగీ మేలే తో దేవు సభ ద్వార g అరే ష కవి సద్గురు భజనలు, దివానా జోన్న బచ్చన్ ఒక్కరే పుస్తక జీనా ధిక్కారం, అర్జీ, నహీ కరణ హ ముక్కు జగ కి తరహా యా రుచి జన్మే బేర భావ పోవే తిరస్కారం అంజి

कविता 224

okay క విత్ హోసోర్ నియా ఆచార హే మేల కి రోడ్డు జాయిగా హంస కేల ధనం దౌలత్ గాడి బంగళా భ నాయ tv mobile inter నే టీకా నిజమే ల భర్తీ పాతాల ఆకాశ మనకేలా కామ క్రోధ మద లో అహంకార హీ హ దునియాలో ఆచార్య గనుక మేళ నర నారి రూప, బహు భాతి సే ఖిలా హరీష్ కవి జానీ బిర్లా హాల్ వేల ఎదురు మ్యాచ్ ఆర్థి నూక హే మేల క్రూరుడు జాయిగా హంస కేల

कविता 225

okay క విత్ దో సోప్ పచ్చి ఆవు నిజ ఆత్మానుభవం వత్తాం సత్య దయా కీర్ ఆహ అధికం. ప్రధమం సత సంగతా సేవా కలియే దూర్జటి నామక సుం ఐరన్ క రామ్ తీర్చే మూల బంధ్ ఆసన ప్రాణాయామ కలియే చూపితే ముఖం మధ్య జీవ గ్రహం పాతవే పరమానంద పరమపద పావు చట్ట వే హరీష్ ఒకసారి ఐదు విధం అన్న సామ్ ఆవు నిజాం ఆత్మానుభవం అవతం సత్య దయా కిరాక్ అధికం.

कविता 226

క విత్ హోసోర్ చ బిస్ ఆత్మను బావు జగ సేన్ ఏరా పోయి జాన్ ఎహే నామక పేర కాగాక కు బుద్ధి ని కట్ నదియా వే రాగ ద్వేష శీర్షాసనం రహే నారా ఆది నిరంజన బ్రహ్మన విష్ణువు మహేష్ గణేష దేవి దేవత కీప్ ఆ రా mate కేసరి కల్కా కల్పన అప్పుడు నా ఆపు నిహార హరే ష కవి త జమాన బడాయి ఆపవా గవర్న హు దుబారా ఆత్మ అనుభవం చక్క సేమ్యా రా పోయి జాన్ ఎహే నా ముఖం ప్యార్

कविता 227

कवित दो सौ सत्ताइस वहीं अपना कराना है गीत गाते ही जाना है जहाँ को बोल लेते जाना है वही किस्सा पुराना है लेकिन की बेखुदी मिटाना है नहीं फिर आना जाना है जुबा पर वही फसाना है खुद ही मैं डूबते जाना है जहाँ करता बहाना है सच से अब भी जाना है झूठे करता घुमाना है जब न कच्छ तो ले के जाना है छोड झूठा जमाना है हरीश मगर हो जाना है वहीं अपना तराना है गीत गाते ही जाना है ।

कविता 228

క విత్ హోసోర్ ties అరె కో దూర్ జాన రే మే తోము నిక టు స యా నారి అరె గురువు జ్ఞానం లే అన్నారే శంకర్ ప్రేమకు బ నరే నహీ తీర చతురత దానా రే మేతో హృదయ స్థానాన రే నహీ నిలువు వేద పురాణ రేన హీం ఏలూరు గీత ఖురాన్ అరె నహీ గురు గంతు bible మే న దువా చూ తెల్లగా నరే మే తో తేరి అంగ సంఘము రేయ్ నహీ తూనే పచ్చని మరి అరె చిత్తు భజన మేలా న రేక టే చావు రాసి క నరే youth బతికే న దాన రే పూసంత సంఘటిత అన్నారే! హరీష్ బహు ఆనా! జాన్ ఆరే సీలో login లగా! నరే అరె కోయి తూర్పున జాన్ ఆరే మేతో హు నిక టు స యా నారి

कविता 229

हूँ और कवित्व दो सौ उन्तीस मैं लोग कैसे बता तुझे को तेरा मन स्थिर नहीं तुझमें कभी काशी कभी कावा कभी जाता हज मक्का में कभी कैला कभी हिमालय कभी जाता वृन्दावन में कभी पीतल, कभी पत्थर कभी ढूंढे गंगा जल में तभी वेद कभी पुराण कभी भागवत गीता में कभी कभी रेस्ट सागर में कभी मंसूर ज्ञान गंगा में कभी वायलील, कभी कुरान कभी ढूंढे बहुत मंथन में अगर चाहे तो मिलना तो आजा ससंघ गुरु शरण ने नाम जो भी गुरु तुझे थे हरीश भजन ना मन नहीं मन में मिलो कैसे बता तुझे को तेरा मन अस्थिर नहीं तुझमें हूँ

कविता 230

हूँ और कवित दो सौ तीस ऍम राम बस तुम हो मेरा और सकल जगह दुख धनेरा अब मैं जाना मर्म तुम्हारा दे गए बेट के मोह पर सारा तुम बिन व्याकुल जग माही । ढाया ना भी कस्तूरी परख नहीं पाया अच्छा रज तब जब निकट तुम्हें पाया नाम असुमल ॅ आया जागी जबसे लाभ भी मैं सोई रानी उलट दिया सब ज्ञान की खानी प्रथम हुआ जगह की तृषा न आसानी आप ही शिष्य ही गुरु यानी दूर सरे धरती गगन चली उडकर बीजेपी गया जगह का पानी चौथे वायु बंद हुआ आना जाना पांचवे सूरज चंदा सिमटा निगम में तारा छठवें कंट्री से बोली न निकले सात तवे गगन मानियां समाना आठ में भवन गुफा अंधियारा वहाँ पहुंचे कोई जिन मान मारा नौवें आगे नेहा तत्व डर से दस सवेरे दोनों एक में समाया जहाँ नहीं मन इंद्रिया जगह माया यही वो हुआ सृष्टि हम ही पसरा हरीश कभी मिला हर प्रश्न का उत्तर आप ही नदियां नहीं आप ही खेवन, हारा प्राण राम बस तुम हो मेरा और सकल रजक दुख बहनेरा

कविता 231

हूँ और कवित दो सौ इकत्तीस सोनू अचरज वाली बात है जिसको ढूंढा जगह मैं वो तो खुद के पास है जैसे पत्थर में अगर फिल्म आ ही तेल वास है दूर समझे वो अनाडी दूर जिनकी आसपास है फोन भीतर का पट्टा देख खूब प्रकाश है जिनको समझे दूर दुनिया वह तो है नहीं पास है जैसे हिरण की ना अभी मैं कस्तूरी का वास है कैसे रामलल्ला हवा हैं गुरु गोल्ड तेरे पास है जगह मैं ढूंढना जिसको देखा वह तो हर पल पास है जिनके मान मान ही बडी बडी आस है हरीश कभी गोपाले मिले थे के पास है देख पा वही जिन को गुरु ज्ञान की प्रकाश है सुनु अच्छा रज वाली बात है जिसको ढूंढा जगह में वो तो खुद के पास है

कविता 232

हूँ और कवित्व दो सौ बत्तीस जमाने की आदत है ओर को बुरा कहना ओरों को देते नसीहते आप बताएँ करना ऐसी सितम मगर दुनिया के संघ स्थिर नहीं है रहना अपनी तो राहे मंजिल हैं खुद ही मैं खोई रहना मूड करके झूठी दुनिया के संग हम को नहीं है चलना अपनी भी तो आदत है आगे ही चलते रहना हम तो है वह खेवैया हाँ ना आधारों के संग बहना खेल कर के उल्टी नहीं हाँ किनारो पे पहुंचना अब है अखंडित पद पाया नहीं इससे है उतरना हरीश कभी है साथ साथ तो झूठों से क्या है डरना जमाने की आदत है ओर को बुरा कहना और को देते नसीहते आप खाताें करना ।

कविता 233

कवित दो सौ तैंतीस हैं कोई गुरु यानी जो अलग भी लखकर आया है तोड के कर्म भ्रम दीवारी सत्य लाख नहीं आया है जाती पार्टी कुल मर्यादा अपना तो मिटाया है तजकर काम क्रोध मद लोग अहंकार बिसराया है रागद्वेष सीरीशा बडाई निजी के सिर से हटाया है सागर में गागर भर रखी शब्द में सूरत समाया है हरीश कभी जिसे ढूंढा जगह नहीं उसे अपने घर में पाया है हैं कोई गुरु यानी जो अलग भी लखकर आया है

कविता 234

కవిత్వం హోసోర్ సౌరిస్ హరే సంతోష లు జగన్కే తప్ప రేకు బారా జహాన్ మహీధర్ అతి కాష్ పవన్ పాని సూరజ్ చంద్ ఆయే gel మీ ఎల్తారా కారే సంతోష్ ఛలో జగన్కే పారే కుమారా జహాన్ హి కాము క్రోధ మద లోపు రాగ ద్వేష షేర్షా అహంకార ఖాళీ! సంతోష్ చర్చలు జగన్కే పార్ ఏక భార జహాన్ ఆహ్ ఈ యొక్క దో యిక జ గడ నారీ పురుషుడు దేవ ఆహార శాఖ కారే సంతో చలో జగన్కే ప్ ఆ రేఖ భారత జహాన్ నహీ రామః ఈమ హరి రాజరత్నం జహాన్ నహీ కృష్ణ కరీం పుకార్ ఆ హరే సీసంతో చలు జగ కి పార రేకు బారా జహాన్ హీ అల్లాహ్ వాహిని గురువు gold సత్య సాహిత్య సత్యనా మా విచార కారే సంతో చలు జగన్కే ప్ ఆ రేఖ భార జ హః ఈ ధర్మ దీని జాతి పాతి జైన్ ఈ బౌద్ధ చార వరణ విచార హరే సంతో చలు జగ కి పారే ఎక్కువ బారా జహాన్ ఆ హీ వేద పురాణ భాగవత గీత మంజిల్ ఔర్ ఏవ దేశ ఖురాను ప్రసార హరే సంతో చలో జగన్కే పారే యొక్క బార అరే ష కవి వివాహ పంచే గా సోయి జీన్ అన్ని జిమ్ మనేమే ఇంద్రియం కుమారా ఆరే సంతో చలో జగన్కే పారే కుమారా!

कविता 235

ఒక్క విత్ దోస సోపతి జగత్ కేప్ ఆ రజాకార్ ఆవే సోయి పూర సద్గురు కః ఆదే మనం కుమారి గగన్ ఇచ్చాడు జాబే అన్న హద్దు హేతుబద్ధ వే మన ఇంద్రియ కి పచ్చ నహీ జహాన్ i see అల ఖనిజ గావే కు సంగతి చూడే పుట్టిన అయ్యి ప్రేమ అమ్మగా నువ్వు జాబే అప్పుడు నా స్వరూపులు దేఖో సబ్బు మహి బేర భావ విస రావే పక్షపాత ఒక బాబు నహీ రాకే సత్య కిర్ ఆహ బత్ ఆవే memory కి దో విధాన సా వే రాగ ద్వేష నహీ ఆపే పరీక్ష కవి కోయి సంత సుజనా సాక్షీ బాత్ నహీ జాబే జగత్ కి పార రజాకార్ అవే hso పూర సద్గురు కః ఆపే

कविता 236

कवित दो सौ छत्तीस सोनू जी हम तो वहाँ से हो कर आए जहाँ से सारा जगरुप जाएँ फिर पद जहाँ आवा गमन नहीं नहीं जीवन मृत्यु का हाय जहाँ नहीं हिन्दू मुस्लिम कोई सिख है, ऐसा ही कहा है अब नहीं मेरा तेरह का झगडा सत्य दया ओ पचाई हरीश कभी कहे मगहर का आवासी अजर अमर पद पाए सोनू जी हम तो वहाँ से हो कर आए जहाँ से सारा जगह हो जाए ।

कविता 237

हूँ कवित्व दो सौ सैंतीस अब भी लाखों वीर खडे हैं भारत के मैदानों में बडो बडों को चित कर डाला अब भी कम नहीं ज्ञानू में यहाँ की रीत अलग है सबसे खुद खडे होते बलिदानों में और चीन को खत्म कर दिया विश्व के पैमानों में वस्त्र भी धारी शस्त्र विधात्री खडे रहते वीरानों में हिन्दू है मुस्लिम नहीं हैं सिख ईसाई बानो में विश्व जानता है भारत को काम नहीं विमानों में बाहर भी है भीतर भी है भय बना बेईमान ऊ में अब भी भ्रम भारत को जीतने का दुनिया के नादानों विश्व गुरु है नाम भारत का जीत चुका घमसान ओं में हरीश और कभी साल से है कहता सत्य सभी विद्वानों में अब भी लाखों बीज खडे हैं भारत के मैदानों में

कविता 238

कवित्त दो सौ अडतीस सफल जिंदगी को उसे नहीं बनाया कि जिसने जमाने के दम को बुलाया, खुद को मिटाकर जगत को रोशन बनाया, सभी के हितों का ख्याल दिल में लाया । उसी ने जमाने को जीना सिखाया कि जिसने मेरा तेरा कभी मिटाया । हरीश जिसने प्रेम की अलग जगह या उसी को जमाने ने फिर से दोहराया । सफल जिंदगी को उसी ने बनाया कि जिसने जमाने के काम को बुलाया ।

कविता 239

हूँ कवित्व दो सौ उनचालीस खबरदार हो जाओ दुनिया वालों के अब सहन की सीमा पार हो गई है बहुत तब तब चुके बलिदानों की अग्नि में अब तब तब कर तीखी धार हो गई है सुनो उन लोगों की । अब खैर नहीं है कि जो देश का खाकर गद्दार हो गए हैं पूरे विश्व में चर्चा होता है मेरे भारत का कि दुनिया में भारत सत्कार हो गई है । बहुत समझाते आए हैं अब तक तुम को भारत की सेना अब तैयार हो गयी है है कहता हरीश सुनु कविता का के क्षमा हूँ कि सीमा पार हो गई है । खबरदार हो जाओ दुनिया वालों के अब सहन की सीमा पार हो गई है ।

कविता 240

हूँ कवित दो सौ चालीस बहुत हो चुका सफर नफरतों का क्या ओ ट्रेम की रह चलाएं वो जिसमें रोशन ये सारा जमाना आओ हम मिलकर ऐसी ज्योत जलाएं वो वही धर्म दीन जाती के झगडे ईद देवाली एक संघ में मनाई हो हर गली शहर में चर्चाएं हमारी जहां लोगों के दिलों में हो लाखों दुआएं जिस देश नहीं दिया जीवन हमारा उस देश पर सब कुछ लुटाते जाएँ करें सोवरन विवादत एक संघ बैठ कर हरीश मशाल ऐसी बनके जल जाए बहुत हो चुका सफर नफरतों का के आओ अब प्रेम की राहत चलाएं

कविता 241

कवित दो सौ इकतालीस गुरु गोविन्द भजन ले तो प्यारे कहा है तो भूला फिरता जगह माँग रही जिस कारण तो आया जगत में क्यों फिरता है उसको बिसारी जिससे जगमगाते सूरत चंदा सितारे उसी के लिए अपना सब कुछ हुआ है आओ हम सब मिल के ये देश सवारें छोडे धर्म दीन के झगडे हरीश न प्रेम सारें गुरु गोविन्द भजन ले तो तैयारे कहा है तो भूला फिरता जगह मना नहीं

कविता 242

हूँ । कवित दो सौ बयालीस हालत देखकर हमें तो रोना आ रहा है । धर्म दीन के नाम पर जग कहाँ जा रहा है । भारत की सभ्यताओं का जगह मैं बहुत नाम था । आज तो वो सभ्यताएं यहाँ से होता जा रहा है । चोरी बेईमानी बला का हो रहा है रिश्ता नाता अपनी मर्यादा हो रहा है । राजनेता जज, वकील सिपाही बन रहा है भ्रष्टाचार देश की गरिमा हो रहा है । हरीश कभी कहे मगहर का वासी देखो पर ले का लाभ निकट आ रहा है । हालात देख कर नहीं तो रोना आ रहा है ।

कविता 243

हूँ कवित्व दो सौ बयालीस नादान है वह दुनिया वाले जो भारत को ना समझ सके हमारी उदारता को हमारी कमजोरी समझ रहे थे हम तो सत्य दायां के पुजारी इसलिए वह दनवे थे भारत भूमि है वह भूमी जहाँ बुद्ध कबीर जायदा सोवे तो सोच रही हूँ तुलसी शेख फरीद बुल्लेशाह हुए गांधी भीम रविंद्र ओशो विवेकानंद से हर सके हरीश कभी सांसे हैं कहता अब तक न पहचान ऐसा के नादान है वह दुनिया वाले जो भारत को ना समझ सके

कविता 244

கவித்து தோசை சும்மா ஃப்லிஜ்~ ஹிந்தூஸ் பன்ன முஸ்லிம் பன் நசுக்க வன் நாய் இசை இவன் நபர் பக்தினா ஜெயின் இவன் என்ன பாதிரி வண்ண பாட்டி அகர் பண்ணா ஹிட் சுண்டு பேரை தூக்கியும் பருத்து மகர் பாவம் அந்த பையன் நம்ம நம்ம நண்பன் சத்திரி இவன் இந்த வேஷம் பன் சுத்~ பிரபன் என்ன? காசி வண்ணம் முல்லா ஹாஃப் அன் ந சேக சையது காணப் அவன் அகர் பண்ணா ஹெய்ட்? சு ன் பிகாரி கி சிக்கி துவும் காவில் பன்~ நான் ஊர் சாபம் நீச்ச பன்~ நமீத்தா அவன் நபர். ரிப்பன் அகர் பண்ணா ஹரிஷ் ஃபஸ்ட் ரே முக்கா சாகர் வன், ஹிந்து வன் இந்த முஸ்லிம் இந்த சிக் வுமன் சாயி

कविता 245

క విత్ హోసోర్ ethyl iss మెచ్చ ఎల్తా ముసాఫిర్ మేర అన్న టిక్ on పోయి భూములు కారు ముగిసే ప్రీత్ తెల్లగాను మీరు రాఖీ మంజిల్ hair పద నిరు బాను నిజమా ని కి ఆ దత్ rules జాన్ మీరాన్ నకు మిత్రుడు నాకో వైరి సౌర హే సలా మత్ ద్వా ఒక్కర్తే జాన అర్హతే నిర్ మోడీ లోకి మూసుకో మస్తాన్ ఆ హరీష్ ఐక్య ఫికర్ హే job జగన్ చూడు జానా అమ్మాయి చల్తా ముసాఫిర్ హుమ్ మీరా అన్న ticket.

कविता 246

कवित दो सौ छियालीस दो नए लोगों के बीच जब एक दीपक देखा भाई नहीं तेल है नहीं है बात थी नागनी दीप सहाय न सूर्य है नहीं चंद्रमा राहु के तो भाई नहीं है, हम्म नहीं है विष्णु न महेश विश्व को खाई नहीं पांच तत्व तीन गुण है न पच्चीस प्रकृति सहाई नहीं एक दो का झगडा आप ही एक समाई हरीश कभी मैं सांस हूँ कहता जो अनुभव है भाई दो नैनो के बीच जब एक दीपक देखा भाई

कविता 247

कवित्व दो सौ सैंतालीस कहाँ दूर तो प्यारे मुझ को ढूंढता है झूठी तृष्णाओं के पीछे भागता हैं जिसे ढूंढता है तो ये जगह की माया मैं उसे क्यों न तो प्यारे खुद में ढूंढता है सत्य दया न क्यों तो दिल में धर्ता है सत्र संघ गंगा में न क्यों गोता मारता है जगह अंधियारा क्यों गुरु धारता हैं क्यों ना मोहमाया छल कपट बिसार है ज्ञान की अंजोर क्यों ना गुरु को धारता है हरीश खुद में खुद को तू हूँ निहारता है कहाँ दूर दूर से आ रही मुझे को ढूंढता है

कविता 248

हूँ कवित दो सौ अडतालीस हमें जान से भी प्यारा है ये भारत देश हमारा है हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब ने मिलके सवार है ये धरती की महिमा है भारी ज्ञान कि अमृत धारा है सत्य प्रेम, हिंसा भक्ति का प्रतीक तिरंगा प्यारा है हरीश कभी इस देश की खातिर लाखों ने खुद को वहाँ रहा है हमें जान से भी प्यारा है ये भारत देश हमारा है

कविता 249

हूँ कवित्व दो सौ अच्छा न सिकवा गिला है हम को किसी से दिया जो भी लोगों ने वो ले लिया खुशी से मेरा यार ओवर रिश्ता है बस खामोशी से ये दिल बाहरी बंद हुए था बस खुद ही से शिकायत नहीं है हम को कुछ जिंदगी से मिला सच्चा सुख हमको बस बंदगी से जोडा था जो रिश्ता मेरा बेवसी से मैं छोर आया उसको बडी सादगी से मैं तोड आया नाता हूँ अब बेरुखी से हरीश दूर बैठा हूँ अब विषय गंदगी से न सिकवा गिला है हम को किसी से दिया जो भी लोगों ने बोले लिया खुशी से

कविता 250

कवित्व दो सौ पचास झूठी दुनिया से अब हम को क्या काम है खुद ही मैं मिल गया मुझको मेरा आराम है कितना नादान था कुछ पता ही नहीं था जिसको ढूंढा जगह में वह तो हर पल साथ था अब समझ गया क्यों सब हैरान हैं क्योंकि शांति दाता से सब अनजान है अब जमाने की तरह भटक ना नहीं है खुद ही मिल गया पूर्ण विश्राम है अब तो खुद ही के तोर पे निझवान है हरीश अब मेरा अब मुझे महरबान है झूठी दुनिया से अब हमको क्या काम है खुद ही मैं मिल गया मुझको मेरा आराम है

कविता 251

कथित दो सौ इक्यावन बीजक धर्मग्रंथ है पूरे कबीर पंथ का मूल अधिकारी कबीर चौरा । इस ग्रंथ का सत्य उपदेश से इस समय ज्ञान वैराग है । इस समय छुपा है ज्ञान पाखंडियों के अंत का बीजक पे पीएसडी करने आते हैं विदेशों से उदाहरण देते हैं सभी संत । इस ग्रंथ का है इसकी वाणी अगम अखंडित जिसको सुन भाव खाते हैं काजी ओर पंडित हरीश गावे । महिमा विचारी इससे अंत है अभी भ्रंश का बीजक धर्मग्रंथ है पूरे कबीरपंथ का

कविता 252

ఒక వ్యక్తి బోసు భావన ముదే మేరా బస్సు వత అంచా హి just నే sub ఉన్నాయా? సజ్జన్ ఛ హి నహీ చా ముదుకు దున్ యాక్ ఈ దౌలత్ ముంచే ఛ sub hi just కి బంధువులకు నహీ రేన మూర్తి న సోనే నచ్చంది న గాడిన బంగ్లా ఉల్లి మంఛి జవహర్ న హోతే హిందూ ముస్లిం సిక్రీ సాయి న దీన ధర్మ కి అక్కడ అంచా హీ నహీ జల హారతి న సూరత్ చందా ఛాయి నహీ తారాగణం పవన్, నాగ గంజ్ హి మేర తీరాక జ గడ జ హు నెయ్యే పంతొ క competition షాహి హరీష్. వేరే భావన మాన బడాయి సచ్ పరిచ లేన కాగా పంచ హి ముదిరి మేరా bus వత అంచనాకి

कविता 253

कवित दो सौ तिरेपन अब वक्त कहाँ दुनिया से मिले हम खुद में सामान्य निकले हैं अब संभाल संभाल कर चलते हैं क्यों कि कदम बहुत ही फिसले हैं देखा बहुत गरीब से हमने ये दुनिया वालों को जो पहले अपना कहते थे अब वहीं बदले से रहते हैं आवाज न देना लोगों आपने भी इरादे बदले हैं हरीश ये झूठी दुनिया को हम तो विसरा ने निकले हैं अब वक्त कहाँ दुनिया से मिले हम खुद में सामान्य निकले हैं

कविता 254

हूँ और हूँ कवित्व दो सौ ओवर मुश्किल घडी न देख बन्दे अपने कदम बढाए इच्छा दुनिया में हैं हम बहुत चित्र पे न ले बुलाई है तो यहाँ किसका है कौन यहाँ तेरा यहाँ बेर भाव क्या किसी से रंजिशें मिटाए जा जैसे उप वर्ष सहकर वृक्ष सबको फल देता ऐसे न रखता हूँ स्वार्थ पर सेवा में जी लगाई जा होसले बुलंद आपने दुविधा को मिटाए जा हरीश कबीर ने जब मंजिल ते बहुत विश्राम पाए जा मुश्किल खडी न देख बन्दे अपने कदम बढाएं हूँ

कविता 255

క విత్ హోసోర్ పచ్చి పని. దాంతో పంచి గగన్ కే మత వాలే జూన్ tea దున్ని యా కే ఉన్న జాగా సేమియా అన్ని ఇవ్వాలి. జబ్ షాహి జ హా ఉడక రు జై సులువు పెంచండి మేహం అని ఇవ్వాలి. అంతో సచిత్ర ఆనంద్ హే bare భావన దిల్ మే రకంగా ఇవ్వాలి. Solo దున్ని యా వాలు ఉన్న రీతుల గానా హరీష్ జ హక్కు హే చూడు జాన్ ఇవ్వాలి అర్థం తో పంచి గగన్ కే మత వాలే

कविता 256

हूँ कवित्व दो सौ संकल्प हमारा हो ऐसा के दुनिया वाले याद करें जब पास हो हम लोगों के तो मिलने के लिए पर याद करें ना हूँ चलना नहीं भेदभाव जात पात की दीवार ढह हैं जिस देश में हमने जन्म लिया उस देश की खातिर जी मारे न अपना कोई ऑफर आया हो ना देर भाव उचित आप धरे महत्व पिता रो भाई बंधु सब के लिए उद्गार बने जैसे तरूवर सर्वर, संतजन वर्ष सब पर उपकार करें नाम भूल सके दुनिया वाले ऐसा उपयोगी हथियार बने विश्वगुरु जो नाम भारत का उसकी खाते सत्कार बने इतिहास तुझे हरीश हो रहा है कभी र बुद्धराज विदानसभा ने संकल् तो हमारा हूँ ऐसा के दुनिया वाले याद करें

कविता 257

క విత్ దోస తో సత్తా one భారతదేశ హమారా సారి ఇద్దరినీ senior రా జబ్బు దున్ని యాన హీ జాన్ తిధి బోలెడు చాల కి భాష కొత్త భారత్ అనే సంస్కృత భాష రచ్చ జంకో సిఖ్ laya భారత దేశ హమారా సారి దునియాలో సేమ్యా రా భావ భక్తి దయా ధర్మ కి పరిభాష భర్త laya సత్య ప్రేమ అహింస భక్తి కాజోల్ మార్గ దిక్ ఆయ భారతదేశ హమారా సారి దునియాలో సేమ్యా రా ఈశ్వర అల్లా హే గురువు గొడ్డు సే మెల్ల వయ్యా పశువు ఒత్తు జీవన జీతం దేశ వు సభ్య జగన్కు బనా య భారత్ దేశ హమారా సారి దునియాలో సేమ్యా రా దయా ధర్మ కీర్ ఆహ చ లాకర్ మానవతా శిఖ laya దేనికే దశమంలో భారత్ నేత బు సాంద్రత కు బహు ఛాయ హే భరత్ దేశ హమారా సరి దునియాలో సేమ్యా రా గాని విజ్ఞాని బనే జబ్ భారత్ అనే సమజ్ ఆయా ఆది నిరంజనం బ్రహ్మ విష్ణు మహేష్ ఉప్పు జయ హే భారతదేశ హమారా సారి దునియాలో సేమ్యా రా రామకృష్ణ బుద్ధ మహావీర ఒక వీర అనే ప్రేమ పడ్డాయా? రామానంద తులసీ మీ రా రేయ్ దాస నైతిక రాయ hi భారత్ దేశ హమారా సారి దున్ని యాస్ సైన్య రా రామతీర్థం పరమహంస వివేకానందుని చేత య సూర్య కాళీ నాన్నకు రహీమ్ bull లేనే సజా య హ భారతదేశ హమారా సరి ఐదు నియాసిన్ సేమ్యా రా గాంధీ భీమ అరవింద్ ఘోష్, ఓషో రజనీష్ ఎలక జగ్గయ్య పరీక్ష కవి ఈ జోక్ బాత్ సచ్చి వహీద్ తెరిసే ఏదో రాయ హే భారతదేశ హమారా సరి దునియాలో సేమ్యా రా

कविता 258

క విత్ దోస్తు టవర్ మగ హర్ ధామ్ ఏకవీర కేవలం నిర్మల నగిరి ఆవ by రాజాతో బనా ల beginning బిజిలీ ఖాన్ దుఃఖితులు హో గ ఐలండ్ కాశీ నగిరి ఆపను వ్యథ సున్ ఆయిల్ బయటకి సాహెబ్ ఫజర్ e గురక జయ సన్ సిద్ద జన కర్ర మర్మ నా హీ విలన్ పని మే పాని హోగయా విలన్ ఉన్న గోరఖ్ రుపైల పక్కది సాహెబ్ ఒక వీర నిర్ణయం లేకే సభ కేబుల్ i villain నిర్ణయాలే బత ఈ లంకా కాశి పోడి కాశీ ముక్తి మగ హర్ బయట surgery షాప్ కేక్ ఆటి విలన్ నదియా బడ బడ లో వేల ఒక వీర చౌ రాధా ము మగ హర ప్రసిద్ధ నగరి హరీష్ కవి కహే మగ హర్ కే వాసి బిజిలీ వీర మరణం అన్న పై లైన్ ఆప స్ మే దగ్గరి మగ హర్ ధామం క వీరికే బా నిర్మల నగరి

कविता 259

हूँ और हूँ कवित दो सौ उनसठ गोरे तलवाते काहे गुमान करें भाई माटी के दही या एक दिन मार्टी में मिली जाइए जब बने रुकवा पे फिर एला तू इधर लगाई टन टन के चलेला तो खूब तराई गोरे तनवा से कहे हो मान करे भाई जब नी तनवा नहीं नवाते नारी तराई सोने जईसन तनवा एक दिन खाक बन जाईए गोरी तनवा पे काहे गुमान करें भाई जब अपनी गाडी बंगलवा पे फूल अल फिरे भाई रूपया पर दवा के फिर एला तू रूप दिखाई गोरी धन्यवाद से काहे गुमान करे भाई जगिया लेखराज मांगी है तो हार लेखा भाई एक को बोल लिया न निखरी अखियां भरी आई गोरी तनवा हफ्ते का है गुमान करे भाई संघीय साथ ही न हो ये है की हूँ अंत सहारा ही वो वो नारी मुख्य मोडी तोहार नहीं नहीं हाँ बिस राई गोरी धन्यवाद से काहे गुमान करे भाई तहत हरीश कविता का सुना चित्र लाये गुरूदेव दया साधु संगति पार लगाई गोरी धन्यवाद पे काहे गुमान करे भाई माटी के देहिया एक दिन मार्टी में मिली जाये हूँ

कविता 260

okay కవిత్వ దోస సాటి తు చోటు ది ఇబ్బందే టక రానా ధర్మ. దీనికి బాతు సూపర్ ఈశ్వర్ పోయి, అల్లాహ్ కత వివాహేతర గురు గౌడ పర్ పోయి, మల్ల పూరిత స్వి పేరే పోయి, జాబే మందిర్ మజీద్ పర్ పోయి మూర్చ వరకే పోయి పోవచ్చు. ఇదే పోయి అక్కడే జటా దాడి పర్ పోయి, పూర్వ పోయి పశ్చిమ్ రావే పోయి సూరజ్ చంద్ ఆపరు పోయి, రోజా పోయి బ్రతక రే పోయి, హజ్ ఆవే తీర్థ పర్ పోయి, అక్కడే తిలక్ లాగా కర్ర పోయి, అక్కడే తో people పోయి అక్కడే సున్నత్. కర్ణాకర్ పోయి అక్కడే హరే ష కవి తాజ్ అక్కడ జ కడకు తూచ లు బస్సు సత్తు మారక పర్తి తో చూడదు. ఇబ్బందే టక రానా ధర్మ దేనికి బాత్ ఊపారు okay

कविता 261

okay కవిత్వం, బోసు except భారత్ భూమి ఏక శేఖర్ లాల్ రామకృష్ణ రామానంద తులసి సూర్య నాన్నకు కాళీ, భరత హరి సుఖదేవ్ ఈయన సూయజ్, సహజ హామీ రానే విష p, రామతీర్థం పరమహంస వివేకానందా గాజు వే భగత్ సింగ్ సుఖదేవ్, రాజు గురు, భారత్ కేసర, తాజ్ నువ్వే, గాంధీ భీమ

कविता 262

కవిత్వ దోస బాగా set నషా reaction హ హెల్ reaction హర్ people heart ఖాలీ హు దుష్ట రా reaction నవలిక రహేజ నషా కరణ్ ఇవ్వాలో solo మైకల్ జాక్సన్ teacher reaction ముక్కు పర హే గాలి చోటు పరీక్షను ఆకు మేర hill ఆలీ న శాఖ రాణి వాళ్ళు సులువు మైకల్ జాక్సన్ పాతవా reaction జగదేవి గాలి చట్ట వా reaction నిజం బిడ్డ జాబ్ వేయించాలి అరె న శాఖ అనేవాళ్ళు సులువు మైకల్ junction సత్వ reaction గాం ఘర్ మేర head tension ఆట వ reaction మేలే బి మరియు ఒక patient నషా కరణి వాళ్ళు సులువు మైకల్ జాక్సన్ nova reaction బలాత్కారం అది attention దస వే నషా చూడు మనో హరీష్ suggestion నషా కరణి వాళ్ళు solo michael junction

कविता 263

కవిత్వ దోస తినే set జల లోతు జయ తుర్క రాదే తో తో సద్గురు దేవ్ కు ధ్యా లేనా టు జి behave తీరా జగ్గు భూమికే పొద్దునే సమా లేనా మా అనుష్క నన్ను మూల మీలా హే beer చిన్న గబా దీన్ని జబ్బులో గుర్తు చే తుర్క రాదే తో too సద్గురు దేవి కూడా త్యా లేనా జబ్బు e తేరా మన భ్రమే తో శత సంగతి మే చిత్త దేనా లాఖుజి చౌ రాసి భ్రమ ఐతే ఆయా కాల సేపు వంద చూడాలే నా జబ్బు లోకి తూచే ఇటుక రాదే తో తు సద్గురు దేవుడికో తేలే నా సంసార హే ఆ సారిక ద అందాయి స్ మేన అతిశయ చిత్త దేనా హరే ష! కవితతో ఆత్మ దర్శన్ కర్ర భవసాగరం సే ఉత్తర లేనా జబ్బులో గుర్తు చేతులకు రాదే తో తో సద్గురు దేవతకు ధ్యా లేనా

कविता 264

हूँ प्रवित्र दो सौ चौंसठ झूठी महिमाओं की अब तो ठेकेदारी चलती है भाव भक्ति का मार मन जाने बस रंगदारी चलती है धर्म दीन के नामों पर बस दुकानदारी चलती है झूठा दिखावा त्याग का करते हुकुम दारी चलती है तैयार रहने की बात करें क्या गोली बारी चलती है मठ मंदिर का वह जानने को अब फौजदारी चलती है बस दिखावा करते हैं विषयों की धारी चलती है बलात्कारी भ्रष्टाचारियों कि अधिकारी चलती है देखा हमने घूम घूमकर जोर दादी चलती है हरीश कभी विचार है कहता जो लाचारी चलती है जो ठीक महिमाओं की अब तो ठेकेदारी चलती है

कविता 265

हूँ और कवित दो सौ पैसठ देख कर इन भ्रष्टों को मन में तक्लीफ ऐसी होती है जो पवन भूमि कहलाती वह भारत भूमि रोती है । जहाँ मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरूद्वारे में पाठे होती हैं वही देश की बहन बेटियों की इज्जत नीलाम होती है । न्याय की देवी जो कहलाती वही घूस ले देकर सोती है । जहाँ नेता रक्षक कहलाते जज वकीलों की होती है वहाँ गरीबों की मजदूरी की तब खूब फजीहत होती है जहाँ चोला पहनते भक्ति का वहीं पर रंगदारी होती है । जहाँ समता की बातें होती वहीं छुआछूत होती है खरीद कभी मैं सात सौ वो कहता घर घर बलाएं रोती है देखकर रेन भ्रष्टों को मन में तकलीफ से होती हैं ।

कविता 266

हूँ कवित्व दो सौ छियासठ भ्रष्टाचार खत्म हो गया समता नहीं वह विचारों में एक सत्य सदगुरु कबीर जंग छेडी हैं साडियो में अब वह बात नहीं वह दम है इन भ्रष्टाचारियों में अब ना वो वे रात के त्याग है माया के पुजारियों बस अपनी जेब हुए हैं भरते सिस्टम के लाचारियों में बांट दिया कवीर को देखो धन के भूखे भिखारियों में बनना चाहे कवीर सभी लोभियों की बाजारों में इन के कर्म को देख के घृणा आ गई संसारियों में हरीश कभी हम को नहीं रहना । अब इन दुराचारियों में भ्रष्टाचार खत्म हो गया । समता नहीं विचारों में

कविता 267

with those no sir set దేఖ దేఖో ఈమే ధన్య డిగ్రీ ప్రయోగించాం కు సంగతి ఆమె అప్పటికే నా పాయువు విశ్రామ భావ భక్తి కమర్ మన జా నే పూజ న లాగే మాసాన్ ఆత్మజ్ఞాన వినా సభ బయటకే కోటిన తెస్తూ కోటిన ధా సత్య దయా పడే చౌరా ఖాన్!

कविता 268

हूँ कवित्व दो सौ अडसठ है हो सले बुलंद जिनके वह राहु में कब रुकते हैं आगे कदम बढा दिया तो वापस कभी नम उडते हैं लाखों आंधी तूफान आएँ सेना ताने चलते हैं है हो सले बुलंद जिन के वो राहु में कब रुकते हैं खुद को कर समर्पण वो मशाल बन के चलते हैं दर्ज कर के निजी का स्वार्थ परमार्थी बनते हैं है हो सले बुलंद जिनके वह राहों में कब रुकते हैं जिस देश ने उन को जन्म दिया उसके लिए जीते मारते हैं हरीश अब कभी हम ऐसे वीरों को कोटि नमन करते हैं है हो सले बुलंद जिनके वो राहु में कब रुकते हैं

कविता 269

कथित दो सौ उनहत्तर नहीं यहाँ पर लगेगी तेरी तो छोड दे हेरा फेरी मानुष तन अनमूल मिला है का ही कर रहे तो देरी ये अवसर तुझे फिर न मिलेगा बात मान ले मेरी सत्र संगत में आकर क्यों ना तजे हैं विषय घनेरी जो गन जुगन से तो भटकते आया बांध विषयों की ढेरी अब भी समय सचेत मेरे मन जतन करो यही बेरी हरीश कवि तो बज सद्गुरु को कर ले आप ने वेरी नहीं पार लगेगी तेरी तो छोड दे हेरा सीधी

कविता 270

हूँ और गवित दो सौ सत्तर पद पाये कर बहुरा या एहतेराम मर्म नहीं पाया धनसंपदा संग्रह के कारण सत्य दया को बुलाया जज वकील नेता सिपाही बनकर जगह को सत्ता या पद पाए कर फोर आया रहते राम उमर मन नहीं पाया धम्मन पंडित मुल्ला काजी बनकर जगह भरमाया ए श्वर अल्लाह वाहेगुरु गोल्ड का झगडा जगह नहीं बढाया पद पा एक कर बहुरा या हृदय राम मर्म नहीं पाया जिनके लिए अपराध क्या वह हूँ उनसे ही दुख फिर पाया जैसी करनी वैसी भरनी साथ सी कहे हरीश पाया पद पाए कर बहुरा या रहते राम अमर नहीं पाया ।

कविता 271

हूँ और हूँ कवित्व दो सौ इकहत्तर हमें जात बात मत पंथों में मत बांध नहीं की कोशिश करना हम तो पाँच ही मत वाले हैं ना बांटने की कोशिश करना मिलना है तो मानवता रखने लो वरना हम से तुम मत मिलना अपनी तो पुरानी याद अत है सबसे घुलमिलकर रहना ये भारत ने हमें सिखलाया हर एक करों से प्रेम करना हरीश हमने बस ये सीखा हर एक जीवों पर करो ना करना हमें जात पात मत पंथों में मत बांधने की कोशिश करना अच्छा

कविता 272

ఒక విత్ those no bath been ప అంకే వూరు జాము దాక నగరి మేర హన నహీ హై చల హంస నిజం ప్రీతం కే pass been ఆసక్తి సంఘ జ్ఞాన హోతే దేఖో వేద పురాణ జోక్ ఖాస్ దీన్ని పంక్ కి ఉద్యమం ఒక జబ్బు టక్కున దయా హూ సత్ గురుకి కవుల కమిట్ ఏన తృష్ణ మద్రాస్ పాంచ్ చోరుడు సేత ఘోరమే ఉచ్చ నరహరి బెంగే తెర పసి విన్నపం దేవుడు జామ క బిర్యానీ నగిరి మే too que le గాయ h duty as too don't age say one పర్వత ఉన్నాయి పంపాయి చూసే up పని tell కే pass bill పంక్ కే మూడు జాం భూమే రాక భేదం మిట సము జవ సే వాహ్ ఆత్మ గాన్ హరీష్! ఆ కవి భవతరణం చావు మనకి రాహు గురు చరణ్ కాదా? బెన్ పంచి ఇప్పుడు job రాక

कविता 273

कवित दो सौ तिहत्तर मेरे दोस्त मेरे जानी जी गए थे तो मुझे याद आता है बहुत तेरे जैसा जहाँ में न दूजा मिला जो मिला वो मुझे दे गया है तो कर याद आता है वो याराना से रहा देख कर के मुझे मुस्काना तेरा तेरे जैसा जहाँ में न दूजा कोई तेरे जैसा किसी तो न मेरी फिकर तो ही तो याद आता है जहाँ हूँ जिधर क्यों तू देख कर गया मुझको दर्द जीगर दुनिया की भीड में वो अकेला खडा लोगों की नजरों में बन गया बे कदर क्यों अकेला हरीश को तो छोड गया टाॅम तनहा ही रहता हूँ नहीं रे हम नजर मेरे दो है मेरे ऍम

कविता 274

कवित्व दो सौ चौहत्तर मैं तो चली सजन के देश फोर नहीं घर का कलेज गगन मंडल पे पिया जी का वासा सूरत मेरे रत प्रवेश सत्य के सिंदूर से मांग भरी है श्रद्धा का का जल लगाई लवलेश मैं तो चली सजन के दे ट्रेन की बिंदिया माँ थे लगी है मोहित हो गए हम विष्णु महेश बहुत विभाव की बाली फील संतोष कंगना खनके हमेश मैं तो चली सजन के देश विवेक विचार की ओर चुनरिया फिरूं मत वाली हमेश ज्ञान का हार्वे रान की की बिछियां पहिन सत्य लोग में करूँ प्रवेश मैं तो चली सजन के दे सद्गुरु पूर्ण धम्मा लखा या नेता हर एक देश हरी शक कवि सद्गुरु की दया से तब से मुक्ति मिली यही देश मैं तो चली सजन के देश

कविता 275

हूँ और कवित दो सौ पचहत्तर दो दिन की जिंदगी में ई कईसन गुमान देखा कलयुग में राक्षस बना ले इंसान मार्टि के देहिया मार्टी मिली गई है पवन में जाए के पवन समय दो दिन की जिंदगी में एक कईसन गुमान अग्नि में अग्नि मिली है पानी में पानी अहम का अंत में खत्म जिंदगानी दो दिन की जिंदगी में कईसन गुमान उवा मतलब के संघीय साथ ही मतलब के संग भाई मतलब के माँ पिता सुन तो लोग आ ही बात दो दिन की जिंदगी में कईसन गुमान नारी जमीन रुपया के कारण देखा सब कोई बनल बेईमान बाद दो दिन की जिंदगी में एक कईसन गुमान हुआ हरीश दास के साथ सुना बतिया अपने कुकर मोवा से सब कोई परेशान बात दो दिन की जिंदगी में कईसन कुमार नोवा

कविता 276

okay క విత్ దోస లో చేత్త హమ్ విజయ తో హర్ భారత నామాన్ని సునా by గాని been ఆఖరి దర్శన్ వినా గుండు కావా been ఆ నాసిక్ ఆకి గంధ లేదే కావా అర్థం విజయ త్వ హార్బర్ రత్నమా ని సునా భాయి గాని విన పక్కే తు చల్లకే ది కావా been ఆహ్ ఆత్మ సబ్బు ఒకరికే దేఖ బావ కామ న చుట్టే క్రోధ ఉన్నచోటే లోభము మోసే bus కే దే కావా హమ్ విజయ్ తూర్ హార్ బాతు నామాన్ని సున్నా భై గాని రాగ ద్వేష సే బతికే దే కవా డబ్బు బాంబ్ ఆత్మా నీస్ ఆ చవతి యాక్ ఏక బహుమానం ఆనే curry లో h ఆతని హమ్ విజయ తో హార్ట్ పాత అన్న మాని సున్నా బ ఐక్యాన్ని అహంకార ణ కా హు హిత్ కారి లేచా వే చౌ రాసి ఖాని కర్మ బ్రహ్మము కుచ్ ఆవు ఉన్న జానీ స్ ఆ చదువుతావా అన్న కర ఆనా కానీ అర్ధం ఐదు చేత్తో హార్బర్ తన మాని సున్నా భై గాని తుద రే జయ సన్ బంధుత్వం దేఖ లి బోలెడన్ని బడి బానే హరీష్ కవి ఇక హే జో నదే దైవ లో బోర్ హంస గడ తోసే తానే హమ్ విజయ తో హార్బర్ ఆత్మా ని సున్నా బ ఐక్యాన్ని

कविता 277

కవిత్వం those suspected చాదర్ఘాట్ అమృత్ కి కానీ బజారు ఎస్ కి అక్క త్ కహాని కొవ్వుగా యే చౌదరికి మహిమ సద్గురు క వీరు గాని ధ్రువ ప్రహ్లాద విభీషన్ సేవ రి రత్న మీర దివాని h father మృతి కి కానీ అభిమాని పోయి భేద నలపై విషయం బ్రతుకు పోసాని కాము. కృతులు మధ్యలో ఒకే కారణం విష్ణు అమృత్, పోసాని చాదర్ఘాట్ అమృత్ కి. కానీ బడి బడే వుండే చాలా దరకు ఇసుక మరణం ఉన్న జానీ హరీష్ శక వ్య స. చౌదరికి మహిమ కోయి కో బిడ్డలే జానీ each ఆదార్ మృతి కి కానీ, అయ్యారో, whisky అక్క, తుర్క హాని okay.

कविता 278

हूँ और हूँ कवित दो सौ अठहत्तर मेरी तुम संगलाई है लगन समरिया प्रेम नगर की राह कठिन है उसमें मेरी ये बाली उमरिया पांच चोर लगे मोर्य संघ में एक एक करके ये रोक के डगरिया मेरी तुम संगलाई है लगन संवरिया संघ में बैरन घूमती सहेली हर पल भटका वे हम को डगरिया दुविधा में यह जन्म गवाया निकल पडी अब तेजी डगरिया मेरी तुम संग लागी है लगन समरिया जुगन जुगन से ढूंढते आई मिली न एक को खबरिया लागी लगन ये झूठे ना ही हरीश छोटे चाहे माया नगरिया मेरी तुम संग लागी है लगन समरिया

कविता 279

ఒక విత్ హోసోర్ నాసి ధామము ఫతే సాగర్ క వీరపన్ అంతకి జోన్ ఇవ్వ కాశీ సే రామ్ సాహెబ్ వై భూత్ సంత్ i జీవ హింస జోధ్పూర్ రాజస్థాన్ సభ సే ప్రాచీన దూర్జటి గురు శ్రీహరీ సాహెబ్ పరం సంత సుజన హే తినకి క రేఖ మ్ వంద నాజీ ఉ జ్ఞాన ధ్యాన నిదాన ఐతే డీజే గురు శ్రీ జీవన సాహెబ్ జీవన ముక్త స! రూప తే తినకి క రేఖ హమ్ వందన జో ప్రేమ భావ కి భూపతి చదివితే గురు శ్రీకాంత్ ఆశీస్సుల హే కాశీ కాయకు మానితే తినకి కరేణు హమ్ వందన జోన్ జీవో పేద య వాంతి ఆ చ వేసి శ్రీ ముక్కున సాహెబ్ మోక్ష పద హర్షా వత్తే తినకి కరేణు హమ్ వందన జో సత్య సత్య గుహ రావత్ e చట్ట వే గురు శ్రీ అమర సాహెబ్ అమర్ ధ్యాన లక్ ఆ వత్తే తినకి కరే! వందన జు అహింస ధర్మ శిఖా వత్తి శాత వేగులు శ్రీ యుక్తి సాహెబ్ యుక్తి కే బండారి ఐతే తినకి క రేఖ మ్ వంద నాజీ ఉ కలిపితే భవ కే పార్ ఐతే ఆట వేసి శ్రీ గురు విరాజిత ప్రహళ్లాద సాహెబ్ జానీ తినకి సేవా మే తత్పర హే రాజేంద్ర సాహెబ్ అమ్మ అని పరీక్ష కవి వంద నాక రే జోడీ నిష్ఠ భావ సే ప్ ఆ వేంగి ఏవో భక్తి అసలు నహీ భవం. ఆ వత్తే రామ సాగర్ వీరపన్ okay

कविता 280

हूँ और हूँ हूँ हूँ कवित्व दो सौ अस्सी सद्गुरु की महिमा भारी है सारी दुनिया से तैयारी है काशी में जो कबीर चौरा है पंथ की मूलधारा हैं समता मूल्य एक साहेब कबीर जाने सब संसारी है रविदास दादू ओ तरिया सबने ही से कार्य है गंगा नदी में बहते जाते कोई न निकालन हार ही था साहेब कवीर अभय मतदाता कमाल अजीवित कर डायरी है मृतक जीवित क्या कमाली से खतरे की की बेटी प्यारी है हर्षित होकर से खतरे की ने बेटी दान देनदारी है लो ही को है । पत्नी कहते बडे बडे पंडित ज्ञान नहीं है लो ही में लपेट मिली थी तब वही लोई नामधारी हैं । सर्वानंद कहे सुन माता सबको हरा हम ये तिलक का लगाओ सर्वानंद का सर को चरण झुकाएं हैं । माता कहे सुनु सर्वानंद बात तो तुम्हारी न मानने है साहेब कबीर को हरा के आओ तब वहीं तिलक लगाते हैं आए थके हुए कबीरचौरा में अपनी प्यास बुझाएं हैं । लागी जोट शब्द की ऐसी कुल अभिमान ऑफिसर आए हैं मांस के व्यापारी थे सदना बकरा मुर्गी नित्त मारी है सत्संगति में जाकर सब वही हो गए शाह का हाल ही हैं लेके गंडासी सदना चल दिया कभी रोने धंदा बिगाडी हैं रात में पहुंचे साहेब को मारने आप ही हो गए घायल ही है दया वान ने रख देखा बहता निजी धोती पट्टी बांधी है सदना हुई ग्लानि मन में मन ही मन स्वच्छता आते हैं रो रो सदना कसाई कहते हम गुनाह बहुत कर आए हैं हम को अपनी शहर में रखो धंडा छोड सब आए हैं भारत देश पे शासनकर्ता सिकंदर लोदी अहंकारी है दर्शन से ही पाप मिटा सब तनमन सब दिया वर है भक्ति की महिमा है भारी जाने सकल संसारी है बावन कसनी लिया साहेब का से खतरे की गए हार ही है, जाए शिकायत माता लगाई भ्रमण का जी हरीश चाहते हैं वीर देव गुराह कर साहेब को मिलवाते हैं चूर चूर विमान हुआ सब क्षमा मांगने आते हैं शमा न करी हो साहेब कबीर तो नर नारी जल के मर जाते हैं तत्व जीवा सूखा वट ले घट की ये बहुत भारी है सूखी लकडी हरी भरी तीन फंसी संतों की भारी है कहने लगे कोई सन्तना जगह में डूब मारे चलो भाई है अंत समय जब साहेब पहुंचे दोनों खूब हर्ष आहते हैं चरण धोए चरणामृत डारे अंकुर निकशा भरी है गोरख जी की बात क्या कहीं रिद्धि सिद्धि में भारी है धरती में त्रिशूल को गाडी बेठे तापर आसन हमारी है साहेब कवीर ने सूत निकली दिया गगन में बहाई है तो ऊपर असन लाभ बैठे गोरख लज्जा भरी है हम्म सन्या से मुल्ला काजी झूठा न्योता दे आते हैं कवीर के घर में भंडारा रहा है कबीर के भेजे हम आए हैं सत्य कबीर का गूंजा नारा अंत सभी स्वच्छता आते हैं जो जो जय जय कार लगे हैं धम्मन मुल्ला घबराते हैं काम क्रोध हो कृष्णा कारण शांति कभी नहीं पाते हैं लाखों झुकती लगा के हारे अहंकार में मानते हैं आई काशी बिजली खान अपनी व्यथा सुनाते हैं लोग कहे जो मगहर मारेगा उनका थे का तब पाते हैं काशी छोड के मगहर जाते करनी को दर्शाते हैं पापी पडी है लाख चौरासी साथ से मुक्त हो जाते हैं राम रहीम का झगडा भारी दोनों जगह में बढाते हैं साहेब कबीर की महिमा भारी मूरख भेदना पाते हैं जो जन आते हैं गुरु शरण में अपनी बिगडी बनाते हैं हरीश कवीर जो गफलत नए हैं लख चौरासी जाते हैं सद्गुरु की महिमा भारी है सारी दुनिया से न्याय रही है

कविता 281

हूँ और कवित दो सौ कैसे लडत पन याद आता है पिता का प्यार कंधों पर घुमाना याद आता है तो मां की लोरियां सुनकर सुलाना याद रहता है भाई बहनों का प्यारा जमाना याद आता है वो मित्रों के संग जाकर नदियों में नहाना याद आता है वो बचपन का यारों का घराना याद आ जाता है । हरीश जो बीत जाते हैं न वो पल लौट आता है । लगभग पाँच याद आता है ।

कविता 282

हूँ और कवित दो सौ बयासी मानना होता के मसीहा सब गुरु कबीर थे हिंदू के देवता मुसलमानों के पीते थे ज्ञानी और बैरागी विवेकी विचार थे सत्यता यार शर्माओ शील की खान थे निरवैर ई निर्लोभी निरभिमानी थे छल्लो कपट से रहे थे निर्धन ही वीर थे जान एकता के मशाल कायम कबीर थे काजी आओ पंडितों के लिए ठीक ही तीर्थ थे उनकी जो मस्ती पाया फिर वो वापस आया । ज्ञान और भक्ति के सिंधु हरीश थे मानवता के मसीहा सदगुरु कबीर थी ।

कविता 283

ఒక విత్ దోస్త్ పోతయ్ ఆసీ అప్పుని దున్నే దివానా యోగిగా ఇక కొత్త జుకర్ వేరే బావు అప్పుడు ని ఆపు మేస్తా మా ఇక చూడ కి ఉంటె జగన్కి చతుర్ ఆయి okay! మగ న్ సద్గురు గుణ గాయనిగా నా హిందూ న ముస్లిమ్స్ ఎక్కి సాయి బంద్ రూపాయి ఇక జాతీయ పాతి too చూతు మిటాయి గా అప్పన్న పర్ ఆయా మేర తీరా దుఃఖ రాయి ఇక touch బికర్ హరీష్ సారి విషయం కి ఆశ సాహిబ్ భజన కర్ పరము పద్దతి పైగా అప్పుని హిత్ మే దివానా వ్యూహంగా ఇక okay?

कविता 284

हूँ कवित दो सौ चौरासी मिटा कर के खुद को हमने साहेब तुमको पाया यही बात को नये जगह समझ पाया अपने कुकर्मों का बीज खुद वो या उसी का मिला फल जो ये जगह रोया मोहन की नींद में जो मुझ से सोया अनमूल अवसर को बार बार हो या इसी बेखुदी में हमने बहुत दुःख पाया एक पल कहीं न जगह में शांति को पाया ये कैसी अगर जिसमें सबकुछ जलाया, हरीश कभी की सारी दुविधा मिटाया मिटा कर के खुद को हमने साहेब तुमको पाया

कविता 285

कवित दो सौ पचासी गाडी बंगले बनाए तूने महल हजार न बनाएं तो उन्हें लोगों से प्रेम व्यवहार खडी की तूने नफरत भरी दीवार धन संपदा का ऋण तो भूला शिष्टाचार गाडी बंगले बनाए तो उन्हें महल हजार न क्या सत्रह संगत वजह विचार जातूपात भाषा की खडी क्या दीवार गाडी बंगले बनाए तो उन्हें महल हजार नाती पोतों की खूब लगाया हम बार हरीश शांति न पाया गया बाजी हार गाडी बंगले बनाए तो नहीं महल हजार न बनाएं तूने लोगों से प्रेम व्यवहार

कविता 286

కవిత్వం హోసోర్ జుకర్ కి వేరు బావు కపటి కుచ్ సత్ సంగతులు మే i ఆఖరు మంచ అంచెల్లో బట్టి ఖాతా సదా కబీర్ బయటకి సే సమన్యాయ అక్క రు తాజ్ దగ్గరికే దు విధా వోదు చత్ తురాయి మన మస్త్ ఓహో! రూమ్ జాయ్ ఆఖరు కుర్చుని పలు భూమి బుద్ధుని యాక్ ఏకం! హరీష్ బుద్ధి సే మేలు జాయ్ ఆఖరు touch బికర్ కి వేరే భావ కపట కుచ్చు సత్త సంగతి ఆమే i ఆకర్ హ్మ్ తుక్కు f emperor happiness ని భక్తి భారత్ మిషన్ హే మరి భారత్ కి వచ్చాను just తేలిక హే హరిశ్చంద్రుని మేహం r j అర్జున్ దే బుక్కు f n సున్నే జు మంఛి